SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 251
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्पादकीय DOO00000 देहली में हिंसा मन्दिरकी स्थापनाका उत्तम सुझाब - इसी किरण में अन्यत्र डा० कालीदास नागका भाषण मुद्रित हो रहा है । इस भाषण में उन्होंने जैनधर्म और जनसंस्कृति के प्रति जो उच्च और हार्दिक उद्गार प्रकट किये है वे जैनसमाजके जिये ध्यान देने योग्य हैं। उन्होंने कहा है कि- 'जैनधर्म एक प्राचीन धर्म है जिसने भारतको संस्कृतिको बहुत कुछ दिया है । परन्तु आज अभी तक संसारको दृष्टिमें जैनधर्मका महत्व नहीं दर्शाया गया है । उनके विचारमें यह एक २० लाख मनुष्योंका छोटासा धर्म है । परन्तु यदि आप सोचेंगे तो आप इस निष्कर्ष पर पहुँचेंगे कि आपका जैनधमे एक विशा धर्म है और आप जैन जातिको वह महान् धर्म अपने पूर्वजोंस मिला है। हिंसापर जैनियोंका Copy Right सम्पूर्ण अधिकार है ।' आगे अपने भाषणको जारी रखते हुए कहा - 'परन्तु यदि किसी वस्तु की कमी है तो वह है हमारा अपना प्रमाद । अभी हाल में ही जो समस्त विश्वकी विभिन्न धर्मसम्बन्धी कान्फ्रेन्स हुई उसके अन्दर ही एक ऐसा व्यक्ति था जिसने भगवान् महावीर का नाम लिया और यह नाम वहाँके अधिकांश व्यक्तियोंके लिए नया सा ही था।' इससे पूर्व आपने यह बतलाया कि- 'आजके संसार में सबका यही मत है कि अहिंसा के सिद्धान्तका महात्मा बुद्धने श्राज से २५०० वर्ष पूर्व सर्व प्रथम प्रचार किया। किसी इतिहास के जाननेवाले को इस बातका बिलकुल भी ज्ञान नहीं है कि भगवान् बुद्ध से लाखों तथा करोड़ों वर्ष पूर्व एक नहीं बल्कि अनेक जैन तोर्थंकरोंने इस हिंसा सिद्धान्तका प्रचार किया । परन्तु यह सब बातें संसारके ज्ञानमें नहीं है । उनको इस बातका बिलकुल भी ज्ञान नहीं है कि जैनधर्म बुद्धधर्मसे करोड़ों वर्ष पूर्वका धर्म है । वास्तव में इसके लिए उनका कुछ दोष भी नहीं है । जैनियोंने इस विषयमें कुछ भी परिश्रम नहीं किया है । इतिहासके विषय में जनधर्मका अस्तित्व ही कुछ नहीं है' । डा० नाग विश्वके सम्मानप्राप्त विद्वान और भारतीय संस्कृति तथा धर्मोके गम्भीर अध्येता एवं ऐतिहासिक विद्वान माने जाते है। उनके ये जैनधर्मके बारेमें प्रकट किये विचार शत-प्रतिशत तथ्य हैं। जैनधर्मका व्यापक और विशाल रूप । श्राज व्याप्य और संकीर्ण बना हुआ है, इसीसे संसारको इस धर्मके बारेमें कोई जानकारी नहीं है । हमने उन्हें जानकारी करानेका कभी प्रयत्न भी नहीं किया । न अपना उन्हें साहित्य दिया और न ढंगसे अपना पुरातत्व एवं इतिहास बतलाया । अब हमें जागृत होकर संसार के साथ चलना चाहिए और उसे जिस अहिंसा तथा अपरिग्रह सिद्धान्तोंकी जरूरत है उन्हें बताना चाहिए। इसके लिए डा० नागने एक बड़ा ही उत्तम सुझाव उपस्थित किया है वह है देहली जैसे केन्द्रीय स्थानपर 'अहिंसामन्दिर' की स्थापना। उनका यह सुझाव कितना सामयिक और उपयोगी है, इसको बताने की जरूरत नहीं है। आज विश्व शान्तिके लिये लालायित है और उसकी खोज में कृतप्रयत्न है । भारत में विश्वके शान्ति-इच्छुकोंके शान्तिसम्मेलन हो रहे है और इस बातका तेजीमे प्रयत्न किया जा रहा है कि विश्वमें किस प्रकार शान्ति स्थापित की जाय। हाल में हमारे प्रधानमंत्री पं० नेहरूने अपने पड़ोसी पाकिस्तानको एक
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy