SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त [ वर्ष १० ही है । पर चारित्र भी सच्चे मार्ग वाला ही ठीक है । भ्रममार्ग एवं ढोंग और आडम्बर व्यर्थ तो है ही हानिकारक भी है । चारित्र हो तो ज्ञानप्राप्तिका सर्वप्रथम उद्योग या चेष्टा करके जितना भी हो शुद्ध ज्ञान उपलब्ध कर लेना चाहिए तभी आत्माकी शुद्धि उत्थान और कल्याण हो सकेगा । अपना सच्चा कल्याण ही लोक कल्याण है और लोक-कल्याण ही अपना सच्चा कल्याण है। हिंसात्मक साम्यवाद (communism ) से गुत्थियों को नहीं सुलझाया जा सकता है, केवल यहिमात्मक 'समतावाद' (Equalism) से ही संसार के दुःखों और अशान्तिका अन्त होना संभव है । 'समतावाद' (Equalism) साम्यवाद (communism ) का ही पूर्ण अहिसात्मक रूप और नामकरण है। जब तक सामाजिक विषमता रहेगी एक शोषण करने वाला तथा दूसरा शोषित रहेगा ही । यथासंभव आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक 'समता' (Fquality) व्यक्ति, देश एवं संसारकी उन्नति के लिए परम आवश्यक है । ऐसा होनेने ही विश्व में सच्चा सुख एवं स्थायी शांति स्थापित हो सकती है । १६६ अर्जित किया धन ही मुख्य कारण होता है । यह धन नहीं रहता तो उसका रहन-सहन जीवन दूसरा ही होता। इस तरह उसके जीवन या कार्योकी नींव न जाने कितने वर्षों पहले ही पड़ गई थी। उसी तरह देशों के भाग्य के साथ भी बात है और देशोंका भाग्य विश्वके उतार-चढ़ाव के साथ ही संबन्ध है । आज एक साधारण भारतवासी आधा पेट भी खाना नहीं पाता है और इंगलैंड वाला उससे तिगुना खाता है और मौजें भी करता है । इसका कारण तुरन्तका श्रम या कामना नहीं है पर सैकड़ोंहजारों वर्षोके वातावरण - इतिहास और श्रमका संयुक्त फल ही है । (१८) व्यक्ति आदिकी उन्नति में आवश्यकीय भविष्य की बातें लोग बतलाते हैं या ज्योतिषी काफी ठीक-ठीक गणना कर देते हैं- - यह कि सब आखिर क्या साबित करते है ? - यह कि भब कुछ गणित अङ्कों के जोड़, घटाव या गुणनफल या भागफलके निश्चित परिणामके समान ही निश्चित है । न एक अंक इधर हो सकता है न उधर । हां, किसीकी गणना गलत हो तो दूसरी बात है— पर विश्वकी व्यवस्था में कोई गलतीकी संभाबना नहीं । कोई भी व्यक्ति इन बातोंको समझकर और अधिक अध्यवसायी एवं सचेष्ट हो जाता है न कि निष्क्रिय, लापरवाह, श्रालसो और ढीला-ढाला । निष्क्रियता किसी कमी ( defect) गलती या भ्रमकी सूचक है । किमी मनुष्यमें जब ऐसे भाव उत्पन्न हों तो उसे हटाने की चेष्टा करनी चाहिये क्योंकि सक्रि यता ही जीवन और निष्क्रियता ही विनाश है । विश्वकी व्यवस्थाओंक निश्चत रूपका ज्ञान होजाने पर तो आकुलता, उद्वेग और उत्तेजनादिकी कमी होकर निराकुलता, शातता एवं 'समता' को वृद्धि होनी चाहिए । ज्ञानके साथ चारित्रका विकास ही वांछ नीय है । बिना ज्ञानके चारित्र ढोंग और अहंकार को ही उत्पादन करता है। फिर भी चारित्रका शुद्ध होना तो हर हालत में अच्छा, वांछनीय एवं जरूरी (१६) संतानादि के भविष्य की उज्ज्वलतामें आवश्यक कर्त्तव्य - जिस समय कोई जीव गर्भमें आजाता है उसके ऊपर अक्षरण रूपने माताके रहन-सहन, खान-पान, व्यवहार और भावनाओंका असर पड़ता है। उस जीवके शरीर में भी उसी अनुरूप वर्गणाओंका सृजन होता है । अतः माताके लिए देह परम आवश्यक है कि ऊंचे उन्नतिशील - शुभ्र भाव रखे एवं खानानादि ठीक रखे। तभी संतान उन्नतिशील होगी । पिताका वीर्य होनेसे पिता के स्वभावका असर तो रहता ही है- पर माता के सहयोग में इस तरह खराब असरोंको कर और बुरी वर्गणाओं को भी परिवर्तित कर अच्छा बनाया जा सकता है। अतः व्यक्ति या संसारके उज्ज्वल भविष्य के लिए यह परम आवश्यक है कि स्त्रियोंको पूरा सुविधाएं एवं हर एक साधन इसके
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy