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________________ किरण५] जीवन और विश्वके परिवर्तनोंका रहस्य १६७ लिए उपलब्ध बनाए जाएँ तथा उन्हें हर तरह ऐसा छोटापना, तुच्छता एवं प्रात्माको नीचा ले जाना योग्य बनाया जाय कि भावी सन्तान उन्नतिशील ही वाला अकल्याणकारक है। हर एक बात या विषय हो। संसारको उन्नतिके लिए स्त्रियोंकी उन्नति सर्व पर स्वयं अपने आप मनन करके उससे समुचित प्रथम आवश्यक है। निर्णय निकालनेकी आदत डालकर स्वतन्त्र बुद्धिके व्यक्ति समाज और देश या राकी उन्नतिक विकासका सिलसिला उनमें उत्पन्न करना आवश्यक लिए माताओं (स्त्रियों) की महत्ता पुरुषोंसे कई है। वर्तमानमें धर्मोका जो रूप हो गया है वह इस गुनी है । स्त्रियां उन्नत-शील विचारों वाली होंगी बुद्धिक विकासको एक-दम संकुचित कर देता है, जो तो संतान भी स्वाभाविकतः वैसी ही या उन्नति आगे चलकर सारे द्वन्द्वों, उत्पातों, संघर्षों और युद्धोंका मूल कारण हो जाता है । धार्मिक संकुचितता शील झाकाववालो होनेसे असानीसे तरक्कीकी दूर करना आवश्यक है यदि विश्वशान्ति सचमुच सरफ बढ गी-अपनी भी तरक्की करेगी-शुभ्र इष्ट हो तो । ज्ञानकी वृद्धि हो जानपर स्वयमेव आचारणों और उंचे विचारों वालो होगी एव उसक व्यक्ति अपना मार्ग और धम, विश्वास और सिद्धांत सहयोग या संगतिमें आनेवाले भी उसके प्रभावसे चन लेगा। एसा करके हो लोककल्याण और शुद्धता प्राप्त करेंगे और उसकी अगली संतान भी व्यक्तिका सच्चा कल्याण हो सकता है । स्वयं उठों अच्छे वीर्यसे होने के कारण उत्तरोत्तर अच्छी होगी। और दसरोंको भो उठाओ तभी हमारा उठना भी इसी तरह समाज देश या राष्ट्र उन्नतिशील और स्थायी हो सकता है। किसीको तुच्छ, छोटा, नीच शुद्ध आचारणों वाला हो सकता है। इसके लिए वगैरह समझना स्वयं अपने भावोंको ऊपर उठने स्त्रियोंकी शिक्षा और उन्हें सुनंस्कृत करना पुरुषों- नहीं देता न शुभ्रता ही लाने देता है। हम अहकार की अपना पहले और अधिक आवश्यक है। पर में सच्ची उन्नति और उसका ठीक सत्य मार्ग भूल अभी तो सभी कुछ उलटा ही होता आया है और कर ढांग और मायाचारको अपना लेते हैं। यह अभी भी हो रहा है । मंसारके सच्चे उत्थानके अन्त में आत्माको गिरानवाला अकल्याणकारी ही लिए इस व्यवस्थाको बदलना होगा और स्त्रियोंको है। अपने प्रात्माकी विशद्धिके लिए अपने भावोंको उचित सुयोग्य शिक्षा द्वारा उन्नतिशील बनाना उन्नत रखना ही एक मात्र उपाय है । भाव जितनेहोगा। जितने शुभ्र एवं उन्नत होंगे हमारी कार्माण वर्गणाओंमें गर्भमें नौ महीने रहने के उपरान्त जन्म हो जाने भी समुचित परिवर्तन होकर हमारे आत्माके ज्ञान पर बालक जो दग्धपान करता है, जिस धायक का विकास भी होगा और शुभ्रता आकर हम हाथमे खेलता है उन सबका असर तो पड़ता ही है अधिकाधिक सच्चे मुख और मोक्षके परम सुखका और उसके बाद में भी जैसी मंगति और वातावरण नजदीक होते जायंगे । आज जो चारों तरफ में वह पाला जाता है उमोके अनुरूप वह हो जाता विडम्बनाए दृष्टिगोचर होती हैं उनका कारण तत्वों है । और बाद में शिक्षाका बड़ा भारी प्रभाव उमके की ठीक-ठीक जानकारीका व्यापक अभाव ही है। भावोंको बदलनमें होता है। इस लिए यह परम आत्माका जो रूप जैन सिद्धांतोंमें निरूपित किया आवश्यक है कि संसारमे शिक्षा जो दी जाय उसमें है वह व्यक्तिको सबसे ऊपर और सबसे अधिक शुद्धता, स्फूति एवं आत्मविश्वास तथा उत्थानकी सीधे तौरसे या शीघ्रता पूर्वक उन्नत करने में समर्थ बातें और शाश्वत अविरल कर्ममें श्रद्धा उत्पन्न की है। पर विभिन्न मानवोंका स्वभाव विभिन्न परिजाय । कोई काम छोटा नहीं बल्कि किसी कामको स्थितियों, वातावरण और समाज एवं व्यवस्था न करना या घृणा करना या छोटा समझना ही में पले होनेके कारण बहुत ही भिन्न है। इसलिए
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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