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________________ १६४ अनेकान्त [वर्ष १० योनियों और जीवधारियोंकी तुलना पर भी वह पाया हूँ। हमारे यहां जीवोंके इन्द्रियोंके विकासाजन्म लेनेवाला जीव केवल एक ही जगह पैदा होगा नुसार पांच भाग किये गये हैं। एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, या जन्म लेगा या उसका गर्भ गमन होगा। विषय तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय । पञ्चेन्द्रियमें बड़ा ही निगूढ़ है और इसकीधारणा(couception) भी असैनो बेमनवाले और सैनी मनवाले हैं। मेरा जरा गम्भीरतापूर्वक विचारनेसे ही होना संभव ख्याल है कि एक दफा जब जीव एकेन्द्रियसे द्वीन्द्रिय है। यहां सब बातोंका ब्योरे वार वर्णन संभव पयोयका शरीर धारण कर लेगा तो पुनः वह एकेनहीं, न शक्ति ही है और न सब कुछ लिखनेका न्द्रिय शरीर नहीं प्राप्त करेगा इत्यादि । एकेन्द्रियमें समय ही है। असंख्यात योनियां या पर्याय है उसी तरह द्वी न्द्रिय वगैरहमें भी अलग-अलग असंख्यात योनियां___ जिस समय किसी जीवका या मनुष्यकी एक पर्याय है । जब जीव एक दफा पञ्चेन्द्रिय शरीर देहका अंत होता है यानि उसकी मृत्यु हो जाती धारण कर लेगा तो वह फिर पन्चेन्द्रिय पर्यायोंमें है तब उस जीवके कर्माण शरीरकी बनावटमें जो ही घमता रहेगा न कि नीचे चला जायगा। हां, देव परिवर्तन पहलेसे हुआ रहता है एवं जो स्थूल पुद्गल एवं नारको अवश्य हो सकता है जो एकदम भिन शरीरको छोड़नेके समय एकदम होता है वही उससे । पर्याएं ही है। जो कुछ भी हो, एक अनेकान्तका (space) क्षेत्रोंके फैलाव (size) का आकार अगले मानने वाला मेरे इस मतभेदको बुरा नहीं मानेगा। भव. जन्म, योनि या पर्यायके अनुकूल बना देता अभी तक तो मेरा ऐसा ही ख्याल है कि संभवतः है । या वर्गणाएं स्वयं परिवर्तित होकर उस अगली तीर्थकरोंके कहे हुएमें बादको लोगोंने अपने मनसे योनि वाले शरीरको धारण करनेके अनकूल रूप इस बातको या इस प्रकारके भयको इसलिए जोड़ एवं अवस्था और आकार (size) फैलावमें बन दिया है कि अज्ञानी या मुढ मानव या थोड़ ज्ञानसे जाते हैं। जब एक बाल (Haii) की नोक असंख्य ही अपनेको पूर्ण समझनवाले लोग स्वेच्छाचारी वर्गणाएं हैं तो फिर एक अदने अणुवीक्षणीय होकर नीचे न गिर जांय । यही नहीं और भी कितने जीवमें भी अनगिनत या बहुत बड़ी संख्या वर्ग- ही विषयोंमें ऐसा हुआ जान पड़ता है। णाएं हुई तो इसमे क्या ताज्जुब । और भी यह कि यह तो निश्चित बात है कि जीव परमसूक्ष्म वर्गणाओंमें परिवर्तन तो होता ही है-मृत्युके समय अपर्याप्त निगोदिया शरीरसे निकलकर क्रमविकास जो वर्गणाएं अधिक होती हैं अपने आप छुट जाती द्वारा ही मानवशरीर या और बड़ा महामत्स्यका हैं-या यदि कम हों तो और जुट जायँगो । एक शरीर धारण करता है। हर समय आत्मा या जीव हाथीका शीरीर एक मानव या चूटो या इससे भी वही रहता है। इसलिए उसमें यह योग्यता तो छोटे जीवके शरीरमें जा सकता है या ठीक इसके बराबर ही बनी रहती है कि इस तरह बड़ा-से-बड़ा विपरीत भी बात हो सकती है। इसमें कोई कठिनाई शरीराकार भी हो जाय और फिर सूक्ष्म-से-सूक्ष्म या असंभवता नहीं। या छोटे-से-छोटा निगोदिया आकारका शरीर भी नोट-पर यहां पर मै स्वयं जैन शास्त्रोंमें वर्णित धारण कर ले । यह योग्यता उसमें अवश्य सर्वदा कुछ बातोंसे अपना मतभेद रखता हूं। मैं तो शाश्वत रहती है । पर ऐसा कहनेका तात्पर्य लोगोंने बादमे क्रमविकास (eternal evolution) में विश्वास गलत लगा लिया जान पड़ता है कि वह पुन: मानवरखता हूँ फिर उनका यह कहना कि एक मानवका भवसे निगोदिया भव या पर्यायमें चला जायगा। जीब भी पुनः निगाद या एकेन्द्रिय वनस्पति पर्याय- यही मेरा मतभेद होता है । में जन्म ले सकता है इसे अभी तक मैं नहीं मान- यदि सचमुच देखा जाय तो गीताका यह वचन
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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