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________________ १६० अनेकान्त [वर्ष १० का युद्ध चाहे संसारके किसी भी कोनेमें क्यों न हो अपने पास के दूसरे मौलीक्यूलोंमें घुसते रहते हैं संसारका जो आणुवीय (atomic)समन्वय, स्थिति- एवं इनकी जगह पहले मौलीक्यूलमें पासके दूसरे करण, संतुलन(balance) है वह एकदम भंग होकर मौलीवयूलों (वर्गणाओं) से परमाणु श्राकर लेलेते सभी जगह सभी कुछ छिन्न-भिन्न (disintegrate) है। यही बात जब कोई बाहरी शक्ति काम करती है कर सकता है। इन वैज्ञानिकोंका इधर ख्याल क्यों तो अधिक तेजो या परिमाणमें होती है जैसा कि नहीं गया यही ताज्जुबकी बात है-पर यह तो,केवल बिजली उत्पन्न करने में आज-कल हम सामने प्रत्यक्ष "विनाशकाले विपरीतबुद्धिः" द्वाग होना कोई पाते है। इस तरहके आवागमनसे वर्गणाओंके या आश्चर्य नहीं | अबसे भी यदि लोग चेत जांए मूलसंघोंके गुणोंमें कोई हेर-फेर नहीं होता, वे ज्यों-के. तो संसारका विनाश बच सकता है। त्यों रहते है। जब केवल उनकी अन्दरूनी बनावटमनुष्य या कोई जीव या संसारकी कोई भी वस्तु तरतीब या (setting) में फर्क पड़ता है तभी उनके अकेली नहीं है सबका एक-दमरेके साथ अभिन्न गुणों और स्वभाव या प्रभावमें भी परिवर्तन हो या मन्निकट सम्बन्ध (relation) है। हम सब जाता है । अथवा किमी एक वर्गणामें मिलकर उस साथ-साथ चलकर ही ऊपर उठ सकते हैं और वर्गणाका सृजन करने वाले कई एक मलसंघों मेंमे अपना एवं दूसरोंका या मबका भला एक साथ कर किसी एक मलधातु (element) का एक तरह का सकते हैं। बाकी दूसरे तरह का कोई भी विचार मृलसंघ निकल जाय और दूसरी घस्तुओंसे या मिथ्या, भ्रम एवं अज्ञान या अहंकारमय कोरी बहक दृसरी वर्गणाओस दृमरे मृलधातुका मूलमंघ उसमें ही इसे बनाए रखना आविरमें हानिकर और आकर मिल जाय तो दस प्रक्रियाको रामायनिक दूर करना या छोड़ना ही लाभदायक एवं मुग्व- प्रक्रिया (chemical reaction) कहते है और तब कर है। वर्गणाका म्वभाव और प्रकृति एवं गुण बदल जाते (१६) हमारे शारीरिक परिवर्तन—जैसा हैं और हम कहते हैं कि एक वस्तु बदलकर दुमरी आधनिक वैज्ञानिक कहते हैं, मलसंघों ( एटम हो गई या ऐमी दो वस्तुओंको मिलानेपर जिनमे utams) की बनावट या आन्तरिक संगठन और रासायनिक क्रिया हो सकती है उनसे एक तीसरी तरतीब कुछ उसी तरह की है जैसे हमारा सूर्यमंडल नई वस्तु नए गुणों और प्रभावोंवाली उत्पन्न हो है-जिसके बीचमे सूर्य और चारों तरफ ग्रह-उपग्रह गई। यही बात जैसे रसायन-शास्त्रमें है वैसे ही और नक्षत्र मंडल है । कई एक मूलसंघ मिलकर मनुष्यके शरीरके अन्दर भी होती है। सभी जीवएक वर्गणा--(मौलीक्यूल (molecule) का सृजन धारियोंके साथ भी यही बात है। करते है । एक-एक 'एटम' या 'मलसंघ' में कितने- विज्ञान कहता है कि पानी (जल) स्वयं तत्व या कितने परमाणु रहते है इसका ठीक-ठीक अन्दाज मूलधात (element) नहीं है । इसमें दो मूलअभी विज्ञानकी जितनी जानकारी है उसमें नहीं धातओंका संयोग है-एक 'हाईडोजन' और दूसरा हा है। यों भले ही काम चलानेके लिए इकाइयां 'आक्सिजन'-पानीका रासायनिक निशान है (units) मान ली गई है । एक एक 'मौलीक्यूल' या 120-जिसका मतलब है कि पानीको एक वर्गणा 'वर्गणा' में अनगिनत परमाणु होते है या हो सकते या मौलीक्यूलमें हाईड्रोजनका दो मूलमंघ (aton) हैं। ऐसी हालतमें यह होता है कि बाहरसे सब कुछ और आक्सिजनका एक मूलमघ या एटम रहता स्थिर दीखते हुए भी अन्दर कोई ऐसी बात होती है। दोनों गैस या हवाएं हैं। पर दोनोंके मिलनेसे रहती है जिससे किसी एक मौलीक्युलके कुछ परमाणु एक तरल पदार्थ-जल बन जाता है। यदि जलको (electrons) अपनी जंगहम छूटते रहते हैं और बनाने वाले इन दोनों मूलधातुओं (elements)
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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