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________________ किरण ५] जीवन और विश्व के परिवर्तनोंका रहस्य १८१ आत्मा जबतक मुक्ति नहीं पाता पुद्गलके साथ उठा हुश्रा समझ ले तो यह दूसरी बात है। आज ही रहता है। और इस पुद्गलशरीरसे छुटकारा इंगलैंड या अमेरिका वगैरह देश या वहांके देशवापानेके लिए मानवशरीर और उसके पहले अनंता- सी अपनेको उन्नतिशील समझते हैं तो यह उनका नंत पर्यायों द्वारा शाश्वत विकासकी परम आवश्य- कोरा भ्रम है और इसे सिवा अज्ञानतिमिर या अन्धकता एवं निर्भरता है। इसके बगैर यह मोक्ष संभव कारके और कुछ नहीं कहा जा सकता। किसी पेड़ नहीं। संसार द्वारा ही श्रात्मा या यह शरीधारी पर चढ़कर यदि कोई अपनेको संसारसे ऊचा समझ मानव इस शरीरके आधारसे कोई अभ्यास, तपस्या ले तो यह नादानी नहीं तो और क्या ? यही हालत या चेष्टा कर सकने में समर्थ है। इसलिये यह संसार आज चारों तरफ सचमुच हम देखते या पाते है। और शरीर मिथ्या या व्यर्थ न होकर पुरुषार्थकी सच्ची इतना ही नहीं बाकी लोग भो देखा-देखी इसी भ्रमको और असली सिद्धि के लिए परम आवश्यक है। इनका असल समझकर उसके पीछे दौड़ते है। पर अब लाभ जो नहीं लेता उसका दुर्भाग्य ही समझना समय आगया है जब हम सबोंको असली उन्नति चाहिये । लाभ भी तभी ठीक लेना हो सकता है जब और उत्थानको जानना चाहिये और सबको-सारे तत्वोंका ठोक-ठीक ज्ञान हो । अन्यथा सारी चेष्टाएं संसार और सारे विश्वको एक, निकटतम रूपमें एक विपरीत दिशामें किए गए अमके समान ही विफल दुसरेसे संबन्धित और अन्योन्याश्रयी समझकर ही या हानिकारक हैं। कोई समाज-व्यवस्था ऐसी स्थापित करनी चाहिये मनुष्य अपनेको अकेला समझकर अनादिका जिससे व्यक्ति भी उठे, समाज भी उठे, देश या राष्ट्र लीन अज्ञानवश या कर्मोंके वशीभत किसी बातकी भी उठे और सबके साथ संसार ऊपर उठे और इस सिद्धिमें या किसी वस्तकी प्राप्तिमें या सांसारिक तरह मंसारके ऊपर उठनेसे सचमुच ये व्यक्ति, धनके लाभमें अपना स्वार्थ समझकर उसके लिये समाज, देश या राष्ट्ररूपी इकाइयां भी ऊपर उठे। नाना प्रकारकी चेष्टाएं नीची और ऊंची सब तरहकी ऐसा करके ही सच्चा सुख सभीको उपलब्ध होगा और करता है और दूसरोंको हानि पहुँचाकर भी उस स्थायी, शान्ति सब जगह स्थापित होगी। अभी तो अपने ओछे स्वार्थकी सिद्धिका हरएक उपाय करता जिसे सुख मानकर पश्चिमीय देश आगे बढ़ रहे हैं है, लेकिन यह नहीं जानता कि सचमुच वह अन्तमें वह मृग-मरीचिका मात्र ही है-जितना जितना वे या फलस्वरूप अपनी ही बड़ी भारी हानि इस तरह आगे बढ़ेंगे उन्हें यही पता लगेगा कि सुख अभी और करता है। सदा पापपंकमें लीन रहनेसे या सांसा. आगे है। इस तरह अज्ञान एवं भ्रमके कारण उनका रिक निम्न स्तरपर रहनेसे वह ऊपर कभी भी नहीं दिन-पर-दिन नैतिक एवं आध्यात्मिक पतन होता जा उठ पाता है और इसीमें अज्ञानवश अपना सुख __ रहा है-जो एक समय पूर्ण विनाशका ही उत्पन्न और स्वार्थसिद्धि समझता है । जब संसारका करने वाला हो सकता है। अभी घमंडमें ये लोग इस उत्थान होगा-उन्नति होगी तभी संसारमें रहनेवाले भावष्यका दख नहा पात, जा ठाक नहा । देश, समाज या व्यक्तिका भी सचमुच उत्थान या इतना ही क्यों आधुनिक वैज्ञानिकोंने 'एटमबम' उन्नति होगी अन्यथा संसार यदि निचली स्तरपर (atomic bomb) बनाए- पर उन्हें सब कुछ ही रहे तो उसके अन्दर रहनेवाला या उसीमें युक्त मालूम होते हुए भी वे यह भूल गये कि जिस समय व्यक्ति, समाज या देश कैसे उन्नति या उत्थान कर एटम टूटेगा उस समय परमाणुओंकी जो बाद उस सकता है या ऊपर उठ सकता है। हाँ, भले ही कोई से निःसृत होगी या निकलेगी वह रूसमें होनेपर भी एक सीमित दायरे या वृत्त (sphere) के अन्दर अमेरिका तक पहुंचेगी और अमेरिकामें होनेपर भी पछल-कूदकर अपनेको ऊँचा चढ़ा हवा या ऊपर रूसमें पहुँचेगी और किसी बड़े पैमानेपर इस तरह
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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