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________________ किरण ५] जीवन और विश्वके परिवर्तनोंका रहस्य १६१ में किसी उपाय-द्वारा विभाजन किया जाय तो ये व रणाम-इस कार्माण शोरर दोनों फिर अपने गैस(gas)के रूपमें आ जावेंगे। के बनाने वाली(Imolecules constituting this इसी तरह गंधकके तेजाबका रासायनिक चिन्ह है Invisible and imperceptible body) वर्ग(H,so), जिसका मतलब है कि इसकी एक णाओंको हमारे यहां आठ भागोंमे विभाजित किया वगणामें दो एटम हाइड्रोजनके, एक एटम गंधकका गया है जिन्हें अध कर्म कहते हैं। इन अष्टकों और चार एटम आक्सिजनके होते है। यदि इस या आठ तरह की पुदगल वर्गणाओं(जिन्हें ही संक्षेप गंधकके तेजाबको तांबेके साथ युक्त करें तो यह होगा में "कर्मवर्गगणा" या उससे भी अधिक संक्षेपमें कि हाइडोजन अलग हो जायगा और तांबेके साथ "कर्म कहते हैं के आने और शरीरके अन्दर लगने गंधक और आक्सिजन वाला भाग तांबे (copper) बनने इत्यादि का तथा उनको आत्मा या शरीरसे के साथ मिलकर एक नई वस्तु (substance) बना अलग करनेका या रोकने इत्यादि का भेदकर आस्रव, लेगा। इस नई वस्तुका स्वभाव, बनावट गुण एवं बन्ध. संवर. निर्जरा और मोक्ष ऐसा विभेद करके प्रभाव सभी कुछ गंधकके तेजाबसे भिन्न होगा। फिर पांच अध्यायोंमे छोटे बड़े प्रथानुकूल विस्तृत तो यह तेजाब भी नहीं रह जायेगा और जो तेजाब और विशद या संक्षिा वर्णन हर जगह जैनकी तेजी पहले वाले द्रव्यमें थी वह एकदम समाप्त हो शास्त्रोंमें मिलेगा। जाएगी। इत्यादि । यह तो हुआ बेजान वस्तुओंकी बाहर आनेवाली वर्गणाओंका शरीरके अन्दर रासायनिक क्रिया-प्रक्रियाका संक्षिप्त दृष्टान्त । जानदार विद्यमान वर्गणाओंके साथ मिलकर रासायनिक वस्तुओं या जानदार शरीरोंके अन्दर जो क्रिया - क्रिया-प्रक्रिया रूपसे कुछ स्थायी परिवर्तन उनकी प्रक्रियाएं होती हैं वे इतनी सरल या साधारण न बनावटमें कर देना ही 'बन्ध' है। यह बात हमारे होकर बहुत ही जटिल एवं क्लिष्ट(complex) होती शारीरिक या मानसिक हलन-चलन-द्वारा भी शरीरक है। जब भी हम भोजन-पान करते हैं तो जो कुछ अन्दर विद्यमान धातुओं या वगणाओंमे क्रियाहमारे शरीरके अन्दर रस जाता है उसकी मूलधातु प्रक्रिया होकर होती रहती है। शरीरके अन्दर विद्यमान वर्गणाओंके साथ क्रिया वर्गणाओंकी बनावटमें संयत आहार-विहार प्रक्रिया द्वारा मिल-मिला या बिछुड़कर काफी परिव- , और भावोंकी शुद्धता-द्वारा इस तरह का तन हर तरह की वर्गणाओंमें ला देती हैं। जिनका परिवर्तन लाते जाना कि उनका प्रभाव धुधलापन असर शरीर एवं मन या बुद्धिपर तुरन्त होता हुआ या अन्धकार उत्पन्न करनेवाला न होकर प्रकाशमय हम देखते हैं। (transparent) होता जाय तो हमारा ज्ञान अधि. जो पुद्गल-मैटर (matter) जीवधारियोक काधिक शभ्र होता जाता है। ये हो वर्गणाएं पूर्णरूप साथ लगा हुआ उनके शरीरका निर्माण करता है में स्वच्छ निर्मल हो जानेपर संसारकी सभी वस्तुएं उसे जैनशास्त्रोंने दो मुख्य भागोंमे विभक्त किया है- ज्या-की-त्यों हमारे अन्दर झलक जाती है और एक तो वह सूक्ष शरीर है जो इन्द्रियों द्वारा देखा या हमारा ज्ञान पूर्णताको प्राप्त कर पूर्ण निर्विकल्प दशा जाना नहीं जाता और जिसे कर्माण शरीर कहते है, को उत्पन्न करता है जब मोक्ष लाभ हो जाता है। । और दूसरा स्थूल शरीर है, जो हाड़ मांस-मय हम जिन वस्तओंको जिस अवस्थामें देखते हैं दिखलाई देता है। यह कामणि शरीर आत्माके उनका बड़ा स्थायी असर हमारे ऊपर अनजानमें ही साथ तब तक रहता है जब तक मुक्ति या मोक्ष पडता रहता है। जिस रूपका हम ध्यान करते है नहीं होता। उसका भी बड़ा प्रबल प्रभाव हमारी वर्गणाओंके (१७ परिवर्तनादिमें पड़ता है। वर्गणाएं जो भी वस्तुसे,
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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