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________________ १८७ फिरण ५] जीवन और विश्व के परिवर्तनोंका रहस्य समझमें इस लिए नहीं आती कि हम अपने अज्ञा- दर्शन या अन्तरदृष्टिका जो ज्ञानकी, शुद्धताके लिए नमें इतने अन्धे हो रहे हैं कि जिसकी कोई हद परम आवश्यक है, ऐसी दशामें अभाव रहता है। नहीं । हर एक आदमी अपनेको अलग अलग सम- इस अभावकी यथोचित और यथासंभव पूर्ति मता है-और हर एक देशवाला तो अपने देशका होजाना हर हालतमें सहायक एवं लाभदायक ही ही स्वार्थ देखता है-पर यह सब-कुछ भ्रम और है और कुछ हो या न हो इसी बहाने कम-से-कम एक गलती है अंतमें सबका नकसान ही होता है। कोई नए ज्ञानकी उपलब्धि तो हो ही जायगी। ज्ञानका भी जीव व्यक्तिरूपसे अलग व्यक्तित्व रखता है विकास हर हालतमें लाभदायक है। जिसका सब-कुछ किसी भी दूसरे प्राणी या व्यक्तिसे (१६) मनकी एकाग्रतादिका आश्चर्यएक-दम भिन्न है पर समष्टि-रूपसे वह सारे अखि- जनक प्रभाव-हम अपने मनकी एकाग्रताद्वारा, ल विश्वक ही एक छोटा-सा ही सही पर सत्ता और मनोयोग द्वारा, तपस्या और ध्यान द्वारा अपनी अस्तित्वधारी अपना अलग प्रभाव करनेवाला वर्गणाओंमे इस तरहकी तबदीलियां ला सकते हैं होता है। जब सब एक दूसरेका विश्वव्यापी लोक- या उत्पन्न कर सकते है जिनका बाह्य असर कल्याण करनेकी भावनासे ओत-प्रोत होंग और आश्चर्यजनक हो। भावोंकी एकाग्रता बड़ी-से-बड़ी रहेंगे तभी उनका भी मचा कल्याण होगा। चाहे शक्तिकी जननी है । जैसे लोहा साधारण हालतमें वह इंगलैड हो चाहे अमेरिका चाहे रूस या भारत चम्बककी शक्ति नहीं रखता। पर वही जब चुम्बकया और कोई भी हो। अकेला किसीका कल्याण न के सामने लाया जाता है तब उस लोहेके अन्दरहान होगा। सच्चा सुख और स्थायी शान्ति वि- की वर्गणाओं (मौलीक्यूल्स) की बनावटमें कुछ श्वभावना द्वारा ही हो सकता है और इसीमें ऐसा हेर फेर या वर्गणाओंमें कुछ ऐसे तरहका हर एक व्यक्ति, समाज और देशका सच्चा कल्याण संगठन होजाता है या एक ही दिशामे सबकी शक्ति संनिहित है। इस तरहसे काम करने लगती है कि उस साधारण मौलेक्यूलर और ऐटोमिक अथवा वर्गणाओं लाहेमे भी बड़ी भारी चुम्बकको शक्ति हम सामने और मूलमंघोंमे जो परिवर्तनादि होते है उन्हें पाते हैं । विजलीके इस तरहके चुम्बकवाले क्रन आधुनिक विज्ञानका जानकार तो जानता ही है-पर टनां बोझा उठा लेते है। इसी तरह हम अपने मनजो लोग नहीं भी जानते है वे किसी भी विज्ञानके की एकाग्रता या किसी एक तरफ या एक विषय या तीसरे वर्षके विद्यार्थीसे आणविक बनावट और एक वस्तुपर ध्यान लगाकर अपने अन्दरकी वर्गउनकी आपसी क्रिया-प्रक्रियाके वारेमें आसानीसे णाओं में ऐसा तारतम्य उत्पन्न कर सकते हैं कि जानकारी प्राप्त कर सकते है। ऐसा करनेसे जैन जिनकी सम्मिलित शक्ति बड़े-बड़े आश्चर्यजनक सिद्धान्तोंमें प्रतिपादित व्यवस्थित कर्मोंका रूप या कार्य कर सकती है। जिसे हम मनोवल या वर्गणाओंके गटन या परिवर्तनादि और उनका असर will power कहते है । इसे बहुत लोग आम बोलअच्छी तरह समझमें आसकते हैं। हर एक जैनधर्मके चालकी सांसारिक भाषामें आत्मबल या आत्मपंडितको, जानकार और जिज्ञासुको, जो तत्त्वोंकी शक्ति भी कहते है । पर आत्मा तो अनन्त शक्तियोंका शुद्ध जानकारी चाहता है इस आधुनिक विज्ञान अक्षय भंडार स्रोत या उन्हें धारण करनेवाला द्वारा निरूपित एवं प्रतिपादित आणविक-ऐटोमिक स्वयं है। उसकी शक्तियाँ केवल इस पार्थिव शरीर व्यवस्थाओंको जानलेना आवश्यक है। अन्यथा की अयोग्यता या कमजोरीके कारणही पूर्ण विकसित उसका ज्ञान कोरा किताबी या जन्मजात श्रद्धा द्वारा नहीं हो पाती या इसकी कायक्षमता सीमित रहनेसे उत्पन्न ऊपरसे लादा हुआ-सा ही होगा-स्वयं प्रत्यक्ष आत्माकी शक्ति भी उसी तरह सीमित हो जाती है।
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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