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________________ १८६ अनेकान्त [वर्ष १० अलग रंगोंकी रेखाएं (spectrum) धारियां बन वर्गणाएं निःसृत होती रहती है जो नजदीकके वायुजाती है-इसका कारण भी यही है कि शीशेकी मंडल वातावरणमें हल-चल उत्पन्न करती है-ठीक वर्गणाओंकी बनावट कुछ ऐसी है कि प्रकाश-किरणों उसी तरह जैसे हमारे बोलनेसे हवामें या आकाशको बनानेवाली अलग अलग किस्मकी वर्गणाओंको मार्गमें हल-चल (wavce) उत्पन्न होती हैं। इन अलग-अलग रास्तेसे होकर ही गुजरने देती है जिससे शब्दों द्वारा उत्पन्न हलचलों (Disturbanles) को सब इकट्ठी न रहकर अलग-अलग हो जाती हैं। हम बेतारके तार रेडियो (wiiecess) से बड़ी-बड़ी विषय बहुत ही विशाल और सचमुच अभी और दूर तक पकड़ कर ठीक ठीक उन्हीं शब्दोंको अपने वहत अधिक अनुसंधानकी अपेक्षा रखता है। मतलब यहां यन्त्रों में उत्पन्न कर सुन लेते हैं। वह समय भी यह कि संसारमें जो कुछ भी दृश्य या अदृश्य होरहा आसकता है जब इसी तरहके यन्त्रों द्वारा हम यहां है वह सब वर्गणाओंकी ही आपसी क्रिया-प्रक्रिया भारतमें घर बैठे बैठे इंगलैन्डके किसी मानवके हृदयके फलस्वरूप है । और हर वस्तुका प्रभाव हर वस्तु तलमें होनेवाले अंतद्वन्द्वका पूरा पूरा पता यन्त्रों पर अवश्य पड़ता है। द्वारा लगा लें। कहनेका मतलब यह कि इंगलैन्डका (१४) हर वस्तुकी हर समयकी स्थिति-हर निवासी जो कुछ भावना या कार्य करता है उसका एक वस्तुओंपर चारों तरफकी बाहरी शक्तियां या भी असर संसार के वातावरणमें मौजूद है और इस चारों तरफकी वर्गणाओंका हमला और आकर्षण- तरह हर एकका असर इकट्ठा होकर हमारे ऊपर प्रत्याकर्षण एवं क्रिया-प्रक्रियाओंका इतना अधिक भी पड़ता है और हमारी पथ्वीसे उमी अनरूप असर पड़ता है कि इन शक्तियामें हेर-फेर या पुद्गलोंका निष्क्रमण होकर और दूसरे ग्रहो-उपकमती-वेशी होनेके कारण ही हर वस्तु हर ग्रहोंपर पड़ता है। यही बात दूसरी तरफसे भी है वक्त कम्पन या प्रकम्पनकी दशामें रहती कि इन सभी ग्रहों-उपग्रहोंका कुल सम्मिलित असर है। दि स्वक्तियां स्थिररूपसे एक-सा बराबर जो हमारी पृथ्वीपर या हमारे ऊपर पड़ता है वह रहती होती तो कोई कम्पन या प्रकम्पन नहीं वहाक रहन वाल र वहांके रहने वाले हर एक निवासी या हर वस्तुका होता-सब कुछ शान्त ही रहता, कोई गति कहीं (sumtotal) कुल इकट्ठा प्रभाव ही होनेसे हम यह नहीं होती, सब कुछ निर्जीव हो जाता। गतिका होना भी कह सकते है कि उन उपग्रहोंके रहनेवाले हर ही जीवनका प्रमाण है । परन्तु हर वस्तु परिवर्तन एक प्राणीका असर हमारे ऊपर पड़ता है। चाहे करती रहती है-बदलती रहती है, इस लिए उनके अलग अलग इतना कम क्यों न हो कि उस हम प्रभावोंमें भी कमी-वेशी होती रहती है और इसी शून्यके बराबर ही समझे। पर उनका मिल-मिला लिए हर वस्तु बरावर (vibration) या कम्पनकी कर इकट्ठा असर तो बहुत ही बृहत हो जाता है। अवस्था (हालत) में रहती हैं। ये ही कम्पन वस्तुओं और इस बृहत असरमें उस क्षुद्र प्राणीका भी कछया उनकी देहोंसे पुद्गलोंके निकलनेमें कारण हैं और न-कुछ भाग या हिस्सा या अंश है ही। इस तरह हर वस्तुके आंतरिक मौलीक्यूलर या वर्गणाओंके हम देखते हैं कि मनुष्य अकेला नहीं है। इसी आंतरिक गठनमे तबदीलियोंको करनेवाले होते है, संसारमें कौन कहे अखिल विश्वका असर उसके इत्यादि । ऊपर पड़ता है और वह भी अपना असर अखिल (विचाराका असर-और तो और विश्वके उपर हर समय डालता रहता है। जो लोग इंगलैंडमें बैठा हुआ एक आदमी जो मनोभावनाएं अपने अज्ञानमें अपना स्वार्थ सबसे अलग होने में अपने अन्दर बनाता बदलता रहता है उसके कारण सोचते हैं वे गलती करते हैं और अन्त में स्वयं अपने उसके शरीरसे उसीके अनुसार स्वाभाविक रूपमें परम स्वाथकी ही हानि करते है पर यह बात हमारी
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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