SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 204
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण] जीवन और विश्वके परिवर्तनों का रहस्य १८५ - -- इस तरह हम जो भी कर्म करते हैं या हमारे मंडल में परिवर्तन होता रहता है । इन परिवर्तनों द्वाग शरीर और इंद्रियों तथा मन द्वारा जो भी कुछ होता हमारी वर्गणाओंकी गठन या बनावटमें भी हेर-फेर रहता है अथवा भूतकालमें हुआ उन सबके फल होना स्वाभाविक ही है (resultant) रूप हमारी वर्गणाएं बदलकर विशेष (१२) ग्रहों-उपग्रहोंका असर-प्रहों-उपग्रहों रूपमें बन गई होती हैं या बनती रहती हैं, इसलिये से अनंतानन्त पुद्गल वर्गणाएँ बड़ी तेजीसे निकलकर हम जो कुछ भी कर्म एक क्षणभर पहले तक कर चुके हमारी पृथ्वीपर पड़ती है या इसपरकी हर वस्तुओं होते हैं उन सबका असर-प्रभाव (effect) अंतिम से टकराती है और उनपर अपना परिवर्तनकारी संयुक्त फलरूप वर्गणाओंमें हर समय परिवर्तन स्व- असर डालती ही हैं। इनका प्रभाव निश्चित, अनिरूप ही होता है या पड़ता है। यह बात अन्यथा वार्य और काफी जोरदार होता है। नहीं हो सकती। वर्गणाओंमे जो कुछ भी जब भी सूयमे तो जितनी तरहकी किरणें या धारायें जिस तरहका भी फर्क या हेर-फेर उनकी बनावटमें निकलती हैं वे तो बहुत ही अधिक हैं। असंख्य हैं। होगा या होता रहता है उसका ही असर हमारे केवल कछ-एकको हो वैज्ञानिकोंने पकड़ा या जान ऊपर या हमारी सारी बातों, व्यवहारों, कार्यों या पाया है पर असर तो सबका ही होता है। सूर्य ही अवस्थाओंको उत्पन्न करने, बनाने या उनके हानमं क्यों हरएक वस्त या शरीरसे अनगिनत किस्मोंकी पड़ता है। किरणों और धाराओंका अजम्रप्रवाह हर समय इनक अलावा भी ऊपर जैसा कहा जा चुका है निकलता रहता है जिन्हें हमारा विज्ञान अभी तक उससे यह आगे जानना कठिन नहीं कि किस तरह बहुत ही कम जान पाया है। हमारे खान-पादिका सद्यः असर या प्रभाव हमारे सबसे भी जो प्रकाश-किरणें निकलती हैं वे सबस्वभाव या कर्म बन्धनों या हरएक बात जो हमसे की-सब वर्गणाओंकी तोव्रतम धारा या प्रवाह ही मंबन्धित है उसपर पड़ता है। स्थ औदारिक वर्ग- है। हमारे देशके प्रसिद्ध वैज्ञानिक श्रीरमनने जो इन णाम परिवर्तन होनसे कामोणवर्गणाओं में तथा प्रकाश-किरणोंके फैलने और तरह तरह के रंगोंवाली तेजमवर्गणाओंमें भी साथ ही साथ परिवतन होगा स्पेक्टम (SPectruu) धारियां पर्दे पर बनानेके ही, क्याकि ये एक शरीर, भव या पयायके समय कारणोंके बारेमे जो विशद खोज, अनुसंधान, एवं मब साथ ही साथ हैं। आविष्कारादि किए है वे सब इन वर्गणाओंकी (११) वायुमंडलका असर- वायुमण्डल बनावटके वजहसे ही हैं। जैसे एक तरह की प्रकाशमें या हमार चारों तरफ जो हलचल होती है या किरणों या एक तरह की रंगोंकी वर्गणाओंकी बनावट होती रहती है उससे भी हमारे चारों तरफ जो पुद- एक विशेष तरहकी ही होती है और दूसरोंसे भिन्न । गल भरे पड़े हैं उनमें कम्पन होता रहता है और जब ये ही प्रकाश-किरणें किसी वस्तुविशेष(auyउनकी सन्निकटतासं हमारे शरीरके अंदर भी यह particular substance) से होकर गुजरती है तो कम्पन हर समय होता ही रहता है। और हर वस्तु इन दोनोंकी वर्गणाओं में परमाणुओका आदानम निःमृत जो पुद्गलवर्गणाएं है वे वातावरणमे प्रदान होकर उनकी बनावटमें हेर-फेर हो जाता है विद्यमान रहती है और बहती हुई वायुके साथ दूर जिससे जब किरणें पुनः बाहर निकलती है तो उनसे दरसे तरह तरहकी दूसरे वातावरणों या स्थानोंकी दिखलाई पड़ने वाला रंग भिन्न हो जाता है या दिखवर्गणाए वायु द्वारा एक जगहसे दूसरी जगह पहुँचाई लाई पड़ता है। हरएक रंगकी मिन्न-भिन्न बनावटकी जाती रहती हैं। फिर उनके ऊपर वर्षा और मेघोंकी वर्गणाएँ जब एक त्रिकोन शीशा(prissu) से होकर बड़घड़ाहट या विजलीकी चमक इत्यादि द्वारा वाय- गजरती हैं तब बाहर पर्देपर उन्हें डालनेसे अलग
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy