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अनेकान्त
[ वर्ष१०
विषमतापर ही साग दारोमदार है । दो पुरुषोंकी (३) वर्गणाओंकी बनावट आदिपर स्वभा. वर्गणाओंकी बनावट एवं संख्यामें जितनी अधिका
वादिका आधार-एक ही तरहकी बनावटवाली धिक समानता होगी उनके रूप, बनावट और स्वभावादि तो समान होंगे ही उनके शरीरके अन्दर वगणााका अलग-अलग गुट्ट, समुदाय या संगखून वगैरहमें भी काफी समानता वगेणाओंकी ठन होता है। हर संगठनका असर किसी भी जीव समानताके अनुरूप कमोवेश होगी या होती है। या मानव-स्वभावपर उनकी संख्याके अनपातके यही कारण है कि एक खानदान या वंशके लोगोंमें या
अनसार ही कमोवेश होता है। जैसे किसी व्यक्तिमें
अनुसार पिता-पुत्र और भाई-भाईमें प्रायः काफी समानता होती
विज्ञानकी तरफ झुकाव लानेवाली वर्गणाओंकी है। दो यमज (युगलिया) भाइयोंमें तो इतनी अधिक
संख्या काफी होनेसे उसकी दिलचस्पी विज्ञानकी समानता पाई गई है कि यदि एकको सर्दी या जानकारी या आविष्कार इत्यादिकी तरफ ज्यादा बुखार होता है तो दूसरेको भी हो जाता है। हां, दो ।
होगी। उसी तरह-दर्शन, संगीत, राजनीति, व्यापार, भाइयोंके एक ही माता-पिताकी संतान होनेपर भी।
परेलू प्रबन्ध, खेती, पशुपालन, मंतानपालन इत्यादि. उनकी प्रकृतियोंमें काफी फर्क भी इसी तरह हो
इत्यादिकी वर्गणाएं अलग-अलग बनावटवाली सकता है। जैसे एककी सौ वर्गणाओंमें पचहत्तरकी
होती हैं । कोई पुरुष और उसकी पत्नी दोनों दूरसमानता पिताके साथ है जिनमें पचास तो 'सम, दूर देशाक और भिन्न-भिन्न संस्कृतियोंके होनेसे प्रकृति की हैं और पञ्चीस 'विषम' प्रकृतिकी। ये कुल
उनकी मनोवृत्तियों एवं झुकावोंमें काको विभिन्नता
होगी। उनकी योग्यताओं और रुचियोंमें भी वैचित्र्य पचहत्तर पिताकी प्रकृतिसे समानता रखती हैं, बाकी
होगा। इन सबका समन्वय समुचित परिमाणमें पञ्चीस वर्गणाएं जो पुत्रमें वची वे यदि समप्रकृति की हुई तो उसके अन्दर समप्रकृतिकी वर्गणाओंकी
उस संतानमें पाया जायगा जो इनसे उत्पन्न होगी।
अतः किसी सन्तानमें तरह-तरह के गुण एक साथ संख्या पचहत्तर हो जाती है और विषमकी सिर्फ
पाए जाय इसके लिये आवश्यकता है कि सुदूर और २५ ही रह जाती है। अब दूसरे पुत्रको भी इमी
विभिन्न विचारोंवाले स्त्री-पुरुषोंमें वैवाहिक संबन्ध तरह देखें तो ठीक इसके विपरीत उसमें विषम
स्थापित किया जाय। प्रकृति वाली वर्गणाओंकी संख्या पचहत्तर हो सकती है और समप्रकृतिकी केवल २५। ऐसी हालतमें पिता और माता र्याद एक ही कुटुम्बके हो तो दोनोंका स्वभाव एकदम विपरीत होना स्वाभाविक जो सन्तान होगी वह और अधिक उनके अनुरूप है । ऐसी हालतमें एक दुष्ट हो सकता है और दूसरा होगी । ऐसी हालत में वर्गणाओंकी समानता बड़ी एकदम भलामानस । यद्यपि ऐसा कम होता है पर आसानी या मोटे तौरपर ही मिल जाने लड़का यह भी असंभव नहीं। यह स्वभावोंकी विपरीतता या बजाय चलता-पुर्जा-तीव्र बुद्धिवाला-विलक्षण होने विभिन्नता वर्गणाओंकी संख्याकी अधिक या कम के कम बुद्धिवाला हो सकता है । मूर्खता या खानविभिन्नता और समानतापर निर्भर करती है। दानी मदता अधिक मात्रामें सन्तानमें परिलक्षित इसके अलावा भी जैसे-जैसे बच्चे उम्रमें बढ़ते जाते होनेकी संभावना रहती है। यदि पिता-माता दूरहैं उनकी वर्गणाओं में परिवर्तन होता रहता है- दरके या दूर देशोंके हों या दो वर्ण (Race के किसीमें किसी एक तरहको वर्गणाओंकी संख्या बढ़ी, हों तो वर्गणाओंकी समानता माता-पिता और पुत्रकिसीमें दूसरी तरहकी-इत्यादि । इस तरह भी में काफी संख्याकी वर्गणाओंको शामिल करनेपर स्वभावमें फर्क पड़ता चला आसकता है।
ही उपलब्ध होगी । इस तरह सन्तानकी प्रकृतिमें