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________________ किरण५] जीवन और विषयके परिवर्तनोंका रहस्य १७१ वस्तुओं (aton) कहा गया है जिसे हमने 'मूलसंघ' नाम तरहकी योनियोंमें जन्म लेता है या तरह-तरह के दिया है। यह 'मलमंघ' (atom) परमाणुओं- शरीर धारण करता रहता है। यह कार्माणशरीर के मिलने या इकट्ठा होनेसे बनता है। तथा औदारिक शरीर मभी कुछ पुद्गलोंकी रचना एक मृलधातुके मूलसंघोंकी बनावट एक तरहकी है और पुद्गल वर्गणाओंका भारी समूह है। ही होती है और गुण भी इसी कारण एक होते है। कहा गया है कि एक अंगुष्ठ प्रमाण किसी इस आन्तरिक बनावटमें फर्क पड़ते ही एक मूल- वस्तुमें अनंतानंत वर्गणाएं हैं। बालकी नोकमें या धातु बदल कर दूसरा मूलधात (Element) हो बालूके एक करणमें अनगिनत वर्गणाए हैं तो फिर जायगा । दो मूलधात ओंके गुणादिकमें भिन्नता समूचे शरीरमें तो इनकी संख्या अपरिमित और उनके मूलमंघोंकी बनावट की भिन्नता के ही कारण असंख्यात-अनंत है ही । यदि यहां गणितके होती है । दो या कई मूलधात (Elements) मिल- आधार पर बातको समझनेके लिए हम एक कर किसी भी 'वम्त' (Subrtice) का निर्माण करते विशिष्ट सीमित संख्या थोड़ी देर के लिए मानलें तो है । किसी वस्तु' का सबसे छोटा अदृश्य मूलरूप दृष्टान्तरूपमें समझना सम्भव हो सकेगा। 'मौलाक्यल' (molecule) या वर्गणा कहा गया संसारम काइ भी वस्तु अकला नहा ह है, जिसमें उस वस्तुके सारे गुण विद्यमान रहते भी एक वस्तु या शरीरके चारों तरफ अनंतानंत है । यह वर्गणा' दो या दो से अधिक मूलधातुओं वस्तु भरी पड़ी है। मभी एक दूसरेके ऊपर अपना (slements) के-मूलमंघोंके-मिलने से कोई भी अक्षुण्ण प्रभाव डालती रहती है। आधुनिक विज्ञाएक विभिन्न गुणों वाली नई वस्तु (Substance) नन आकर्षण एवं प्रत्याकर्षणका सिद्धान्त हमारे तैयार हो जाती है। भिन्न-भिन्न वस्तुओंके पारम्परिक सामने रखा है-उसके अनुसार भी सभी वस्तु गणोंकी विभिन्नताका कारण उनकी वर्गणाओं की एक दूसरेका श्रापित या प्रभावित करती है । ऐसा आन्तरिक बनावटकी विभिन्नता ही है। जैसे यह नहीं कि केवल विजली पैदा करने वाली मशीनोंमें बात निर्जीव वस्तुओं (Inorgane sutstances) ही इलेक्ट्रन (परमाण) उत्पन्न होता हो-इलेकटन में लागू है वैसे ही और उतनी ही (precision) तो हर समय हर जगह हर वस्तुसे बाहर अनंतानंत यथार्थता एवं सूक्ष्मताके साथ जीवधारी वस्तुओं निकलते रहते है और अंदर प्रविष्ट भी होते रहते (organic and animate) या प्राणियोंक शरीरों है। ये पुद्गल परमाण अदृश्य होनेसे दिखलाई के लिए भी लागू है। नहीं पड़ते । ये कुछ तो 'परमाणु' रूपमें कुछ 'मूल___ हमारा शरीर इन पुदगल वर्गणाओं (Mole- मंघ' के रूपमे और कुछ 'वर्गणाओं' के रूपमें ही culcs) का एक बहुत बड़ा बृहत् समूह संघ या निष्कम जर में या निष्क्रमण करते हैं। इनका तारतम्य सतत जारी मंगठन है । इसके भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रहता है; कभी भी नहीं टूटता-चाह हमें इस क्रिया (अदृश्य) मे दो भाग है । प्रत्यक्षको औदारिक (Phemomena) की अनुभूति हो या न हो पर यह शरीर कहते हैं जो हाड़, मास, रक्त इत्यादि मय है सर्वदा स्वाभाविक रूपमे होती रहती है । कोई इसे और दृसर अप्रत्यक्ष भाग तैजस तथा कार्माण शरीर रोक नहीं सकता। इस तरह एक वस्तुका असर हर है । मंसारमे मृत्यु हो जाने पर यह औदारिक शरीर एक दूसरी वस्तु पर कमोवंश-जसा जिसका प्रभाव, तो छूट जाता है पर ये कार्माण और तैजम शरीर विस्तार या शक्ति हो उसके मुताबिक पड़ता है। आत्माके माथ नब तक रहते है जब तक वह इनमे हर एक जीव या आत्मा संसारी दशामें शरीरधारी छुटकारा पाकर मोक्ष अथवा मुक्तिकी प्राप्ति नहीं अवश्य हैं इसलिये हमारे शरीरोंक माथ भी यही कर लेता है। कार्माण शरीरके द्वारा ही जीव तरह- बान होती है। हर दम हर समय इन शरीरोंमे हर का नहीं:
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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