SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण ५] जीवन और विश्वके परिवर्तनोंका रहस्य १६६ या दृष्टियोंसे करके और अच्छी समीक्षा करके होते हैं । आत्माको यदि हम यहाँ विद्य त शक्तिके ही उसका कोई निश्चय किया जाय। इसलिए चाहे और नाना प्रकारके यन्त्रोंको शरीरके रूपमें सोचें तो जैन दर्शन हो या बौद्ध दर्शन या वेदान्त, सांख्य हर प्राणीमें एक ही तरहकी और एक समान ही श और चार्वाक सभीकी जानकारी मनन जरूरी हो क्तिमान एवं गुणयक्त आत्मा होनेपर भी हर एक जाता है । जनदर्शन स्याद्वाद या अनेकान्तदृष्टि की शक्ति या कार्यो की भिन्नताका अन्दाज या उनके द्वारा ही किसी विषयका निरूपण और निर्धारण कारणका अनमान हम बड़ी प्रामानीसे लगा सकते हैं करता है, इमीसे संसारकी मूलभूत वस्तुओं और और बात समझने में कठिनता कम हो जाती है। द्रव्योंका अधिक सूक्ष्म रूपमें दिग्दर्शन करने में सभी शरोरोंमें चेतना आत्माका ही लक्षण या ममथे हुआ है । यहां उसके केवल दो प्रधान तत्त्वों गुण है परन्तु यह चेतना समान होते हुए भी हर या द्रब्योंकी आधारभूत वस्तओं या स्वरूपोंपर एक शरीरके कार्यों में बड़ी विभिन्नता है, जिसका विचारविमर्श किया जायगा विशेष विस्तृत मात्र कारण पौदुगलिक शरीरकी बनावटकी आन्तजानकारी तो किसी भी प्रामाणिक ग्रन्थसे उपलब्धहो रिक या बाह्य विभिन्नता ही है । पुद्गल भी अपने सकती है। मूल परमाणुरूपमें अकेला कुछ नहीं करता, पर विषय-प्रवेश-आत्मा और पुद्गल (चेतन जब ये परमाणु आपसमें मिलकर संघबद्ध हो और जड़)- ये ही दो वस्तु' या द्रव्य या तत्व मूल जाते है तब तरह तरह के गुणयुक्त और प्रभाव युक्त उपादान कारण है जिनसे मिलकर हम जीवधारी होनेसे ही कार्यकारी होते है। पुद्गलका परमाणु या शरीरधारी प्राणियोंकी सृष्टि हुई है । संसारके अकेला प्राय: नहीं रहता है । इन परमाणुओंके मभी प्राणियों या जीवों में मनष्य प्रमुख है । इस संघ सूक्ष्म एवं स्थूल रूपमें बनते है। सक्ष्म संघ की बनावट भी औरोंकी बनिस्बत (अपेक्षा) अधिक आंखोंसे देखनेमें नहीं आते जब कि स्थूल संघ मक्ष्म, क्लिष्ट, जटिल या उलझनों वाली (Most हम अपने चारों तरफ देखते या पाते हैं। अतिComplicated) है। जीव या आत्मा और पदगल मम संघ तो यन्त्रोंसे भी नहीं देखे जाते-केवल या जड़का अनादि सम्बन्ध चला जाता है। आत्मा उनकी कारवाई प्रभाव या (manifestation) द्वारा चेतन या जानने और अनुभव करने वाला है जब ही उनका होना या उनकी अवस्थितिका अनमान कि पुदगल रूप और शरीर वाला, कर्मका आधार किया जाता है । इन परमाणुओं (electrons & और परिस्पन्दन, कम्पन अथवा हलन-चलनका Protons ar lons). का सबसे पहला कारण है। हम जो कछ भी गतिशीलता या प्रकम्पन (elementary) संघ जो होता है उसे हम यदि देखते या अनुभव करते है वह मब केवल पुद्गल- 'मृलमंघ (मूल स्कन्ध), जिसे अंगरेजीमें एटम के ही कारण है । ये तरह तरह के हर एक प्राणीक (atoms) कहते हैं, कह तो, आगे वर्णनमें सुविधा शरीर भिन्न भिन्न रूपों और बनावट के कारण भिन्न होगी । इन प्राथमिक (poimary) 'मूल संघों' भिन्न कार्य संपादन करनेकी क्षमता रखने वाले atom) के. मिलनेसे फिर जो द्वितीय श्रेणीका विजलीके यन्त्रोंके समान ही हैं। जो जब तक विजली (secondary) मंघ (स्कन्ध) बनता है उसे 'वर्गणा' या विद्य त-प्रवाह (Electric eurrant) जारी जिसे अगरजीमें मोले क्यूल (inolecule) कहते है. रहता है काम करते हैं । यद्यपि विजली सभीमें कहें तो दोनों नामकरण शास्त्रोक्त वर्णनस भी मेल एक रूपकी ही है पर यन्त्रोंकी बनावट भिन्न भिन्न खायगे और आधुनिक विज्ञानसे भी। हमें यहां होनेसे उनकी कार्य-शक्ति और तज्जन्य कार्य अलग मुख्य संबन्ध पुद्गलोंके उन संघोंसे हैं जिनको अलग विशिष्टता लिये हुए या विभिन्नता लिये हुए हमारे यहां “कार्माणवर्गणा” नाम दिया गया है।
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy