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________________ १६४ अनेकान्त [वर्ष १० संक्षिप्त परिचय', 'श्रीपुर और उसके अवस्थानका अन्तर्गत ग्रन्थकी महत्ता पर प्रकाश डाला है। विचार', (ग्रन्थसंबंधी) कर्तृत्वविषयक भ्रान्ति और छपाई सफाई उत्तम । पुस्तक विद्वानों और सर्वउसका निराकरण, ग्रन्थकारकी अन्य रचनाएं, साधारणके कामकी है। प्रन्थकारका परिचय और समय, इन शीर्षकोंके -बालचन्द्र जैन हासप्तति-तीर्थकर जयमाल [ कोई डेढ़-दो वर्षका अर्सा हुआ, कानपुरसे मुख्तारसाहब एक पुराना गुटका लाये थे। इस गुटकेमें कई महत्वकी अप्रकाशित रचनाए पाई गई, जिनमेसे कुछ रचनाए 'अनेकान्त' में प्रकाशित हो चुकी है। आज उमी गुट केपरमे एक अप्रकाशित रचना, जिसे उसी समय नोट कर लिया था, यहां प्रकाशित की जा रही है। यह अच्छी, सरल और मधुर रचना है। इसमें भत, वर्तमान और भविष्यत्के बहत्तर तीर्थंकरोंका अठारह पद्योंमें जय-गान किया गया है । रचना कण्ठस्थ करने योग्य है और बोलने में वड़ी प्यारी लगती है। इसके रचयिता ब्र० महेश है। ये संस्कृतके साथ अपभ्रंशके भी अच्छे विद्वान जान पड़ते हैं, क्योंकि इनकी एक अपभ्रंश रचना भी पाई जाती है जिसका नाम 'मदनपराजयगीत' है और जिसमें बड़े सुन्दर ढंगसे मदनके पराजय का वर्णन है। इसके दो पद्य नमूनेके तौरपर इस प्रकार है: “एम मनोभउ जंपइ मोते बलिय न केवि । हरि-हर बंभ जि अतिबल मई जीते हैं तेवि ॥५॥ मोह कम्भु तब भासद एवं मयन म गधि । आथि जिनेसु महाबलु जेन पवाहिय भवि ॥६॥" इस रचनाको भी अगले किसी अङ्कमें पूरा प्रकाशित किया जावेगा. जिससे पाठक उमसे भी परिचित हो सकेंगे। ब्र० महेश कब और कहां पैदा हुए है तथा उनकी और कौन २ रचनाएं हैं. यह एक स्वतंत्र लेखका विपय है जिसपर फिर कभी प्रकाश डाला जा सकेगा। -कोठिया ] किवाणं प्रकटित-निर्वाणं सागरमतिसादर-गीर्वाणम् । सुमति सुमनो-नुत-पद-पद्म पद्मप्रभमत्यद त-पद्मम् । नोमि महासाधुशम-लाभं केवल-विमल विदं विमलाभम् ॥१॥ स्तामि स्पार्श्वमपाकृत-तन्द्र चन्द्रप्रभमाभा-हत-चन्द्रम्॥२॥ श्रीयर-मतुल-श्रीधर देहं शुद्धाभ सुविशुद्धप देहम् । सविधिं भाषित-शुभविधि-रचनं शीतलविभुमतिशीतलवचनं । तत्तमभीप्सित-दान-सुरागं जिनममलाभं गत-वसु रागम् ॥२॥ श्रेयांसं सरपति-कृत-पूजं पूज्यतमं वसपूज्यतनूजम् ॥३॥ उद्धृतमम्युद्धत-परलोकं जिनपनिमग्निं तर्जित शोकम् । विमलं पूरिन-सेवक-कामं श्रीमदनन्तजिन प्रणमामि । संयममुत्तम-संयम-पात्रं शिवमति बहुशिव-लक्षण गात्रम् ॥३॥ [.................. ....................]॥४॥ पुष्पान्जलिमखिलाजन-रहितं शिवगणमुल्वणशिवगणहितं [.......... .................. सोत्सवमत्साहं जिननाथं ज्ञानमनन्त ज्ञान-सनाथम् ॥४॥ मल्लिमशल्यं सरभिशरीरं मुनिसबतमघ-मेघ-समीरम् ॥२॥ परमेश्वरमागम-परमेशं शुकु-विमल लेश्यं विमलेशम्। नमित-सरासरकं नमिदेवं नेमि क्रम-नत-हरि-बलदेवम् । स्तौमि यशोधरमुज्वल-यशस कृष्णमतृष्ण हितकरवचमम्॥॥ पार्श्वम्पाश्रित-धरणमपाशं वर्द्धमानमहन्तमपाशम् ॥६॥ ज्ञानमति नाशित नरकुमनि शुद्ध मनिं मुलभीकृतमुगतिम् । नौमि महापद्म' च पदाऽहं सूरदेवमित-मानस-दाहम् । श्रीभद्र प्रणमामि सकान्ति शान्ति विहित-चतुर्गणशांतिम्॥६॥ सुप्रभमुरु-भामण्डल-शोभं स्वयमादिप्रभमज्झित-लोभम् ॥३॥ बन्दे मनिवृषभं वृषभेशं प्रभुजितं बुध-कैरव-मेशम्। सर्वायुधमखिलायुध-हीनं जयदेवं नतदेवमहीनम् । सम्भवमजरासम्भवविलयं नौम्पभिनन्दनमद्भज्ञानम् ॥॥ जनिन-जनाभ्युदयमदयदेवं प्रभादेवमिन्द्र-विहित-सेवम् ॥२॥ .............
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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