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________________ किरण ४] डा. अम्बेडकर और उनके दाशनिक विचार १६५ .00000.00 मस्त-समस्तावमुदकं प्रश्नकोतिमुन्मीलित-पङ्कम् । जयनाथं जयजय-रव-महितं श्रीविमलं त्रिभुवनपरमहितम् । जयजयशब्द-नुत-जयसंशं पूर्णबुद्धिमुन्मीलितसंज्ञ॥३॥ दिग्यवादमति-दिव्य-निनादं वन्देऽनन्तवीर(य)मविषादम् ॥ निष्कषायमत्यस्तकषायं विमलप्रभममलप्रभकायम् । इति नमति जिनेशान् भूत-सद्भाविनो यबहुलबलं चहलं जिनराजं निर्मलमतिनिमल-गण-भाजम् ॥४॥ रचरण-नत-महेशान् सप्तति युग्मयुक्ताम् । चित्रगुप्तमत्यन्तसमाधि बोधि-निगप्तान्त-समाधिम् । प्रथमममर-सौख्यं दीर्घकालं स भक्त्वा , स्वयमादिभुवममायमदपं कन्दर्प सुख-जित-कन्दर्पम् ॥२॥ विविध-विबुध-सेव्यः स्यात्पुनस्तीयकर्ता ॥१॥ ॥ इति द्वासप्ततितीर्थकरजयमाला समाप्ता ।। डा० अम्बेदकर और उनके दाशनिक विचार गत १४ नवम्बर (१९४८) को सिद्धार्थ कालेज सिद्धान्त है, जिसका अर्थ नानाधर्मात्मक वस्तु बम्बईके प्रोफेमर और अनेक ग्रन्थोंके रचयिता है-अनेकका अर्थ नाना है और अन्तका अर्थ सर्वतंत्र स्वतन्त्र पं० माधवाचार्य विद्यामार्तण्डके धर्म है और इसलिये दोनोंका सम्मिलित अर्थ माथ मुझे डाक्टर अम्बेडकरसे, जो स्वतन्त्र भारतकी नानाधर्मात्मक वस्तु होता है। जैनदर्श नमें विश्वविधान समविदा समितिके अध्यक्ष है और जिन्हें के समस्त पदार्थों को नाना धर्मात्मक माना गया है। स्वतन्त्र भारतके विधान-निमोता होनेसे वर्तमान एक आत्मा पदार्थको लीजिए, वह द्रव्यकी अपेक्षा भारतमें 'मनु' कहा जाता है तथा जो कानूनके सदा विद्यमान रहता है-उसका न नाश होता है विद्वानों में सर्वोच्च एवं विख्यात विद्वान् माने जाते और न उत्पाद । किन्तु पर्यायोंको अपेक्षा वह परिहै, भेंट करनेका मौका मिला। वर्तनशील है-उत्पाद और विनाश होते हैं । जिसे डा० साहबसे मिलकर और यह जानकर बड़ी हम डाक्टर या वकील कहते हैं उसे उनका पुत्र प्रसन्नता हुई कि वे कानूनके पण्डित होनेके सिवाय 'पिताजी' कहता है और उसके पिताजी 'पुत्र' कहते दर्शनशास्त्रके भी अच्छे विद्वान हैं और विभिन्न हैं, भतीजा चाचा और चाचा भतीजा तथा भानजा दर्शनासा उन्होंने गहरा एव तुलनात्मक अध्ययन मामा और मामा भानजा कहकर पुकारते है ।ये किया है। जैन दर्शन और बौद्ध दर्शनका भी सब धर्म डा. साहब अथवा वकील साहबमें एकउन्होने अच्छा परिशीलन किया है। साथ एक-कालमें विद्यमान रहते हैं। भले ही मिलनक समय मेरे हाथमे 'अनेकान्त' के प्रथम डाक्टर या पिताजी कहनेके समय वे सब धर्म वर्षकी फाइल थी, जिसमें उक्त प्रोफेसर साहबका गौण हो जायें, परन्तु वे वहाँ उस समय हैं अवश्य'भारतीय दर्शन शास्त्र' शार्षक महत्वका एक लेख केवल उनकी विवक्षा न होनेसे वे गौण होजाते हैं। छपा है और जिसमें प्रोफेसर सा० ने जैनदर्शन वस्तुके इम नाना धर्मात्मक स्वभावरूप अमेकान्त के स्याद्वाद तथा अनेकान्त सिद्धान्तपर उत्तम सिद्धान्तका सूचन अथवा ज्ञापन करनेके लिये इस विचार प्रदशित किये है । डा०साहबने बड़े सौजन्य- अखवारका नाम 'अनेकान्त' रखा गया है। से मुझसे कुछ प्रश्नोत्तर किये, जिन्हे महत्वके होनेसे डाक्टरसाहब-दर्शनका अर्थ तो जगतमें शांति नीचे दिया जाता है का मार्ग दिखाने का है, किन्तु वर्तमानमें जितने दर्शन डाक्टर सा०-आपके इस अखवारका नाम है वे सब परस्पर विवाद करते हैं। उनमें खण्डन 'अनेकान्त' क्यों है ? और एक-दूसरेपर आक्षेप तथा आक्रमण करने के मैं-'अनेकान्त' जैनदर्शनका एक प्रमुख सिवाय कुछ नहीं मालूम पड़ता ?
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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