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साहित्य-परिचय और समालोचन
इस स्तम्भमे समालोचनार्थ श्राये नये ग्रन्थादि माहित्यका परिचय और ममालोचन किया जाता है। समालोचनाक लिये प्रत्यक प्रन्यादिकी दो-दो प्रतियां श्राना जरूरी है।
-सम्पादक]
शासन-चतुस्त्रिंशिका-मल रचनाकार श्री श्रीपुर-पार्श्वनाथ स्तोत्र-मूल रचनाकार, मदनकीति । सम्पादक और अनुवादक, न्यायाचार्य श्रीमद्विद्यानन्दस्वामी । संपादक और अनुवादक पं० दरबारीलाल जैन कोठिया, शास्त्री । प्रकाशक- श्रीन्यायाचार्य प० दरवारोलाल जैन कोठिया, वीरसेवामंदिर सरसावा, जिला महारनपुर । पृष्ठ शास्त्री। प्रकाशक, वीरसंवामंदिर सरसावा, जिला मंख्या ५६४ २१ । लागत मूल्य बारह आने । महारनपुर । पृष्ठसंख्या, ८६४०४। लागत मूल्य
श्रीमदनकीर्ति मुनिने दिगम्बर जैन शासनका बारह आन।। व्यापक प्रचार और प्रभाव दर्शाने के लिए उक्त चतु- मलम्तोत्र ३० पद्योंमे है और इतनेमे ही रचयिता स्त्रिंशिकाकी रचना की है। हरएक श्लोकके अन्तमें ने आपकं गुणोंका विवेचन और परीक्षण करते 'दिग्वामसां शासनम' पद इमका समर्थन करता हुए, भगवान पार्श्वनाथमें उन मबका सद्भाव पाकर है। पुस्तकको मही मानेमें जैन तीर्थोकी परिचय- उन्हें वन्दनीय माना है और उनकी स्तुति की है। पुस्तक कहना चाहिए।
कोई ममय था जब श्रीपुरके पार्श्वनाथके अतिशय प्रस्तुत मंस्करण विद्वान सम्पादकके अनुवाद
और माहात्म्यकी चचा चारों ओर फैली थी। और परिशिष्टमें दिए गए तीर्थपरिचयसे विशेष विद्यानन्द भी उससे प्रभावित हुए और उन्होंने महत्वका बन गया है। ग्रन्थमें उल्लेग्वप्राप्त सभी श्रीपुर-पार्श्वनाथकी स्नतिक बहाने एक नवीन तीर्थोका इतिहास तथा वर्तमान स्थानका परिचय दार्शनिक कृति ही उपस्थिन कर दी। कगनेका मफल और मही प्रयास किया गया है। संपादकने प्रस्तावनामे स्वयं लिम्बा है, "प्रस्तुत फलामक बाग्मे “यह ध्यान रहे कि अष्टापदभी इमी ग्रन्थ 'श्रीपुर पार्श्वनाथम्तोत्र' ......म्वामी ममन्तभद्र कैलामगिरि का दृमग नाम है। जैन तर इम 'गौरी- के 'देवागम ( याप्रमीमामा )' स्तात्र जैमा बड़ी हो शकर पहाड़' भी कहत है।" की सत्यता विचार- मुन्दर और महत्वपूण दानिक कृति है और उमीके गीय है।
ममान जटिल एवं दह है।" इमी जटिल और प्रस्तावनामे सम्पादक महादयन मुनि मदन- दुरूह महत्वपूर्ण दार्शनिक कृतिको मर्वसाधारणक कीतिक समय और उनके स्थानपर अच्छा प्रकाश मम्झन लायक बना दनक उह श्यम विद्वान डाला है।
मंपादकने पद्याथ, भावाथ आदि अनेक प्रकारसं छपाई सफाई उत्तम । पुस्तक सर्वसाधारणके प्रत्येक पद्य का विवंचन किया है। लिए उपयोगी है।
१६ पृष्ठांकी प्रस्तावनाम मपादकने ‘प्रन्धका