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फिरण४]
सोलहवीं शताब्दीके दो अपभ्रंश-काव्य
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तव-तेय-णियत्तणु कियउ खीणु,
गरवय जसमलु गुणगणणिहाणु, सिरिखेमकित्ति पट्टहि पवीणु ।
बीयउ लहु बधउ तग्वजाणु । मिरिहेमकित्ति जिं हयउ बामु,
मिरिसंतिदास गंथथ जाणु, तहु' पवि कुमरविलेण णामु ।
चम्बइ मिरिपारसु विगय-माणु । णिग्गधु दयालउ जइ दरिद्व,
इस चरित प्रथका निर्माण कराने वाले सजन जि कहिउ जिणागमभेउ मुह, । रोहतकके निवासी थे। उनका कुल अग्रवाल और तहु पट्टि णिविटिउ बुह पहाणु, गोत्र था सिंघल या सिंगल । उनका नाम था सिरिहेमच'दु मय-तिमिर-भाणु । देवराज जो चौधरी पदमे अलंकृत थे। इनके तं पट्टि धुर धरु वय पवीणु, पिताका नाम साहू महणा था। प्रस्तुत ग्रंथ चूंकि वर पोमणदि जो तवह खीणु । चौधरी देवराजकी प्रेरणासे बना है अतएव वह तं पविवि णियगुरुसीलखाणि, उन्हींके नामांकित किया गया है । प्रथ प्रशस्तिमें
णिग्ग'थु दयालउ अमियवाणि । इनके कुटुम्बका विस्तृत परिचय दिया हुआ है, क्षेमकीर्ति, हेमकीति, कुमारसेन, हेमचन्द्र और इसी कारण उसे यहां नहीं दिया, पाठक महानुभाव
प्रशस्तिपरसे अवलोकन करें। पद्मनन्दी । प्रस्तुत पद्मनन्दी तपस्वी, शीलकी खानि, प्र निम्रन्थ, दयालु और अमृतवाणी थे। यही माणि- इस ग्रंथकी रचना वि. सं० १५७६ के चैत्रसुदी क्कगजके गुरु थे । इन्हींको कविने अपना गुरु पंचमी शनिवारके दिन कृतिका नक्षत्रके शुभ योगमें बतलाकर उन्हें प्रणाम किया है। इस प्रथको प्रण की गई है जैसाकि निम्न पद्योंसे प्रकट है:अन्तिम प्रशस्तिमें भ० पद्मनन्दीके एक और शिष्य
"विक्कम रायहु ववगह कालई, का उल्लेग्य है जिनका नाम देवनन्दी था और जो
लेसु मुणीम विसर अकाला। श्रावककी एकादश प्रतिमाओंके मंपालक, गग-द्रुप
धरणि अक महु चइत विमाणे, मद-मोहके विनाशक, शुभध्यानमें अनुरक्त और सणिवारस्य पंचमिदिवसें । उपशम भावी था। उस समय रोहतकमे उक्त पार्श्व
कित्तिय णवत्त सुहजोए, नाथके मन्दिरमें दो विद्वान और भी रहते थे। ज्येष्ठ हुउ उप्परणउ सुत्त सुहजोए । जसमलु और लघुबांधव शांतिदास । जैसाकि उक्त प्रस्तुत प्रति अपने रचनाकालसे एक वर्ष बादकी प्रशस्तिके निम्न वाक्योंसे प्रकट है:
लिखी हुई है अर्थात सं० १५७७ की कार्तिकवदी 'हेमचंदु श्रायरिउ वरिष्टुर' चतुर्थी रविवारके दिन कुरुजांगल देशके सुवर्णपथ नहु मीसुवि तव-नेय-गरिउ,
(सुनपत)नामके नगरमें काष्ठामंघ माथुरान्वय पुष्करपोमण दि धरण दउ मुणिवा ।
गण के भट्टारक गुणभद्रकी आम्नायमे उक्त नगरके देवणंदि तहु पीस महीवरू,
निवासी अग्रवालवंशी गोयलगोत्रो जिनपूजा परंदर एयारह पडिमउ धारतउ,
व्रतवान साहू छल्हूके पुत्र साहू वाटूने इस अमरसेन राय-रोस-मय--मोह-हणतउ ।
चरित्रको लिखा था। मुहमाणे उपममु भावतउ, _इनकी दूसरी कृति 'नागकुमार चरित्र' है, जिसे रणदउ बभलोल ममवतउ । उन्होंने संवन १५७६ में फाल्गुणमदि नवमीके दिन तह पासजिणेदह गहरवण, पूर्ण की है। यह ग्रन्थ नौ संधियोंमें पूर्ण हुआ है वे पडिय शिवसहिं कणयंवण ।
जिसकी श्लोक संख्या ३३०० बतलाई गई है