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________________ १३६ अनेकान्त वर्ष १० ब्राह्मण गुफाओंमें अंतिम, डूमर लेणसे उत्तरकी कोई असुर रौद्ररूपमें अपने शस्त्रास्त्रों सहित ओर करीब २०० गजपर है। ये ईस्वी सन्की ८वीं आक्रमण करता हुआ दिखाया गया है। ऊपर कोई शतीसे १३ वीं शती तककी हैं। इन्द्रसभा और शंख बजा रहा है, कोई बरछ। लिए आक्रमणको जगन्नाथ सभा एक-एक गुफा नहीं बल्कि गुफा उद्यत है। दाहनी ओर सिंहपर सवार कमठ समूह हैं। इनका विस्तार और अलंकरण कैलाश आक्रमण करनेकी स्थितिमें सिंह दहाड़ रहा है मंदिरके सिवाय किसी भी ब्राह्मण गुफामंदिरसे और सामने खड़े व्यक्तिको टुकड़े २ कर देनेके होड कर सकता है। इन गफाओंके मंडप भी बड़े २ लिए उछल पड़ा है । नीचेकी ओर दो भक्त एक विस्तार वाले है जिनमें यात्रीसंघ मुविधापूर्वक पुरुप और एक स्त्री। दृश्य बिलकुल सजीव है, बैठ सके। आकृतियोंके मुखपर जो भाव अंकित किए गए छोटा कैलारा-ब्राह्मणोंके कैलाशमंदिरके आधार है वे बिलकुल सजीव हैं और एक क्षण को ऐसा पर ही इसका निमोण-कार्य प्रारम्भ किया गया था प्रतीत होता है कि उक्त घटना हमारी आंखों के जो दुर्भाग्यसे कभी पूरा नहीं हो सका । इसे भो ही सामने हो रही है। कैलाशमंदिरकी ही तरह ठीक उसीके अनुरूप एक दक्षिणी छोरपर बाहुबलि हैं, लताए उनके ही शिलाका तराशा जा रहा था इसलिए इसे छाटा शरीरपर छा गई हैं। गर्भगृहमें पद्मासन महावीर कैलाश कहते हैं। इमका मंडप करीब ३५-३६ फुट ध्यानमुद्रामे विराजमान है. ऊपर दुदभि तथा का है और उसमें १६ स्तंभ हैं, पीछे की ओर गर्भ. अन्य वाद्य बजाए जा रहे है । गृह है जिसका विस्तार१४।।११।। है । ममूचा मंदिर पीछे की ओर वृक्षके नीचे हाथीपर बैठे किसी एक ही शिलाका है और८० फुट चौड़ा तथा करीब यक्षकी मूर्ति है जिसे सभी विद्वानोंने एकमतसे १३० फुट ऊचा है। बाहरसे इसकी बनावट द्रविड इन्द्र माना है। वास्तव में महबीरका यक्ष मातंग है। शैलीकी है लेकिन शिखर उतना ऊंचा नहीं है दुसरी ओर यक्षी सिद्धायिकाकी मूर्ति है जिसे अभी डिजाइन तो कैलाश जैसी है ही। सफाई करते मिठी तक इन्द्राणी या अम्बिका माना जा रहा है। आदि हटानेपर इसमे बहुत-सी खंडित मूर्तियां कोर्ट में प्रविष्ट होनेपर मंडप मिलता है जिसमें प्राप्त हुई थी। उनमेसे एक मस्तकविहीन मूर्तिपर चौमुख महावीर हैं । सिंहासनपर धमचक्र और शक सं० ११६६ (ई० १२४६) का लेख मिला था सिह है । मंडप और उसके द्वार बिल्कुल कैलाश जिसके अनुसार वह श्रीवर्धनापुरके किसी निवासी जैसे ही हैं और इसो शैलीके आधारपर वीं शतीके द्वारा दान की गई ज्ञात हो सकी थी। माने जा सकते हैं। कोर्ट के बाएँ भी हॉल है, उसमे ___इन्द्रमभा-इस गुफासमहमें दो-दो मजिली, दक्षिणी दीवालमें पार्श्वनाथ और उनके सामने ही एक एकम जिली गुफा तथा अनेक छोटे-छोटे मदिर वाहुबलि खुदे है । यहां ये बाहरकी मूर्तियोंसे अपेमम्मिलित है। इन्द्रसभाके कोर्ट के बाहरकी दीबाल क्षाकृत बड़े हैं । पिछली दीवालमें पूर्ववत् यक्ष के उत्तरी छोरमें पार्श्वनाथपर कमठ द्वारा किए गए मातंग और यक्षी सिद्धायिका (इन्द्र-इन्द्राणी) एवं उपसर्गकी घटना उत्कीर्ण है। नग्न पार्श्वनाथ गर्भगृहमें सिंहासनपर महावीर विराजमान हैं, कायोत्सगे आसानमें ध्यानस्थ खड़े है, ऊपर उनके मस्तकपर त्रिछत्र हैं नीचेके हॉलमें प्रविष्ट सप्तफण सर्प छाया किए हुए है, एक नागी छत्र होनेपर बरामदा मिलता है और उसके आगे १८ लिए हुए है। छत्रबालीके नीचेको ओर दो अन्य खंभों वाला हॉल, जिसके कुछ खंभे तो चट्टानमें ही नागी एक हाथ जोड़े और दूसरी आश्चर्यभरे कटे है। खंभोंपर मनुष्यकायप्रमाण दो तीर्थकर दुखी मुद्रामें है। इसी ओर ऊपर भैंसेपर सवार मतियां हैं जिन्हें लेखके आधारपर शान्तिनाथ
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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