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________________ किरण ४] जन गुहामन्दिर मान सकते है। लेख नागरी लिपिमें है और एक प्राकृतियां हैं। दीवालोंपर महावीर ५०-६० बार, अन्य नागरी लेखसे, जिसे फ्लीटने ६ वी, १० वीं पाश्वनाथ ६-१० बार एवं इनके चारों ओर अन्य शतीका माना है, प्राचीन है। दोनों लेख इस प्रकार जिन तथा भक्तममह उत्कीर्ण हैं। पीछेकी दीवाल पर गक्ष मातंग और यक्षी सिद्धायिका तथा बाहर प्रथम१. सोहिलब्रह्म द्वाररक्षक स्थित है । गर्भगृहमें चार मिहोंक २. चारिणः शान्तिभद्रा आसन पर तीर्थकर, धर्मचक्रको बौना उठाए हुए ३. एक प्रतिमेयं ऊपर त्रिछत्र और मिहामनके निम्न भागमें हरिण द्वितीय- श्री नागवमक्रि (क) ता प्रतिमा लांछन है जिमसे हम इसे शान्तिनाथकी मूनि कह कोर्टके बाए' ओरके हालमे भी कनदी लिपि मकते है। अन्य बातोंमें यह इन्द्रमभा जैसी ही है। के लेखोंके चिन्ह है जिन्हें लिपिके आधारपर पार्श्वनाथ-पहाड़ीके जिस हिस्सेमे ये गुफा फ्लीटने ७५०-८५० ई.का माना है। बरामदा है, उसके मिरपर पार्श्वनाथकी विशाल मूर्ति है। पूर्वी छोरसे उपरली मजिलके लिये सीढियां है। तीर्थकर पाश्वनाथ पद्मामनम मिहामनपर श्रामीन सीढ़ीके ऊपर विस्तृत हॉल है जिसकी छत चित्रित है, नीचे आमनपर धर्मचक्रकी पूजा हो रही है. पूजा है । हालके खंभेलंकेश्वर गुहासे मिलते है इसलिए करनेवालोमे शिव और पार्वती भी सम्मिलित है। इन्हें ८वीं शतीका माना जा मकता है। वरामदमे मति १६ फूट उंची तथा फट चौड़ी है। इसपर हालमे तथा अन्य दीवालोंपर पहले जैसे ही महावीर खुद हुए लेम्बसे विदित होता है कि पहाड़ीका प्राचीन पार्श्वनाथ, बाहुबलि,यक्ष मातंग और यक्षी सिद्धाय- नाम चारणाद्रि था। लेख श्लोकबद्ध है और इम का आदि स्थित है। महावीरकी मति १२ फुट ऊंची प्रकार है.है। छतपर विस्तृत एवं सुन्दर कमल चित्रित है १. स्वस्ति श्री शाके ११५६ जयसंवछरं । जिसके रग आज भी चमकते हैं। चारो कोनोंपर (फाल्गुण मध त्रितिया बुध] दीपक रखनेके छेद है। यहांसे आग्नेय कोणक २ श्रीधनापुर ' जमा ' जनि राणुगिः । द्वारसे एक अन्य गुफामे पहुंचते है । यहां भी तत्पुत्रो म्हालुगि: स्वरवल्लभो जगतोप्यभूत ॥क्षा पूर्ववत मूर्तियां है और चित्रकारी भी लक्षित होती है ताभ्यं व मूवश्चत्वर: * पुत्राश्चक्रेश्वरादयः । बड़े हालस ही एक मार्ग पश्चिमकी ओरकी एक मुख्यश्चक्रेश्वरस्तप ५ दाधर्मगुणोत्तरः । अन्य गुफाको जाता है। यहां प्रविष्ट होते ही दाहनी २.चंत्यं श्रीपार्श्वनाथस्य गिरी वारणसवित । और चतुभुजी तथा दूसरी अष्टभजी देवी स्थित है। चक्रेश्वरो सजदानाद्धता ' हुतों च कमणा ॥३॥ ____ जगन्नाथसभा-इन्द्रमभाके पीछे ही जगन्नाथ- वनि विवानि जिनश्वगण ' महानि । तनैवसभा है। सफाई की जाते समय इममम बहुत-सी विरच्य मर्वतः। मृतियां प्राप्त हुई थीं जिनसे विदित होता है कि यहा श्राचारणाद्रिगमितः मुतीथता कैल मभूभद्रतेन भारी तादादमें मतियांखादी गई थीं। कोर्टक पश्चि. यद्वत ॥४।। मकी ओर मंडप है जिसमे पहले जैसे ही गर्भगृहमं धम्मकमतिः स्थिरशद्धदृष्टिहयो सतीवल्लभ महावीर, दाहने बाहुबलि और बाएं पाश्वनाथको मतियां उत्कोण है। यक्ष मातंग और यक्षी सिद्धायिका १.मंवत्सरे पढे २. श्री वर्धनापर पढे ३. ताभ्या पदे भी उमी प्रकार ही है। दीवालोंपर कनडी लेखोंक ४. चत्वारःपढे ५.दानधर्म०६.चारण. .. दानाधतामंदकुछ अक्षर देखे जाते है जो८००-२५०ई०क होंगे। हास्य जिनेश्वराणा ६. मन्ति सामने दाहने ओर की छोटी कोठरीम भी पूर्ववत् १.५ भगवान लाल इन्द्राजी 'दीनी सती' पढ़ते है।
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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