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किरण ४7
जैन गुहामन्दिर
पश्चिमीय समूह
बादामी - यहां तीन ब्राह्मण गुफाओं के साथ एक जैनगुफा भी है जिनके निर्माणकाल में विशेष अंतर नहीं है। जैनगुफाका निर्माणकाल ६५० ई० होना चाहिए। गुफाका बरामदा ३१४६|| फुटका है और १६ फुट ऊंचा है। सामने चौखटे स्तंभ है जो एलीफेन्टा शैली से मिलते जुलते हैं। पीछे भी चार स्तंभ हैं। गर्भगृह में चार सीढ़ियां चढ़कर जाते है । यहां पोछेकी दीवाल में सिंहासनपर महावीर स्वामी विराजमान है, दोनों ओर दो चंवरधारी है। बरामदकं दोनों छोरोंपर क्रमशः पार्श्वनाथ और बाहुबलि करीब || फुट ऊंच उत्कीर्ण है । इसीप्रकार स्तंभों और अन्य दीवालों में भी तीर्थकरमृतियां उत्कीर्ण है।
धारामिव – पूनासे मद्राम रेलमार्ग द्वारा जाते, सोलापुरमे ३७ मोल उत्तर में यह स्थान है। गांव से करीब दो मील ईशान कोण में जैन गुफाओं का समूह है । अब तो उनके सामने महादेव मंदिर भी बन गया है। बाएं छोरपर जो गुफा है वह छोटी-सी और अनी है किन्तु उसके बाद की गुफा विशाल और सचमुच सुन्दर है । उसका बरामदा ७४१० फुटका है, और उसमें स्तंभोंके ऊपर तीर्थकर - मूर्तियां, अलंकरण, चैत्यद्वार आदि सभी कुछ है । बत्तीस वंम छतको सम्हाले हुए है । मण्डपमे चारों ओर बाईस कोठरियां और पीछे के हिस्स मे भगृह है जहां सप्तफरणयुक्त पद्मासन पाश्र्श्वनाथ ध्यानमुद्रा में विराजमान है । उनके सिरपर त्रिछत्र है, कंधों के ऊपर दोनों ओर गंधर्व आदि उत्कीर्ण है । सर्पफणों में प्रत्येक पर छोटा सा मुकुट जैसा है । मूर्तिके चारों ओर प्रदक्षिणामार्ग हैं। तीसरी गुफाका मंडप ५६ वर्ग फुट है और वह ११ फुट ऊंचा है, उसमें बीस खंभे और पांच द्वार हैं। बरामदे छह सादे अठकोण बभे हैं। चौथी गुफाका मण्डप २४ फुट ऊंचा और २६ फुट चौड़ा है। इसमें चार खंभे हैं। दीवालों में चार कोठरियां तथा पिछली दीवाल
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में गर्भगृह है। दीवालोंपर कोई कारीगरी न होने एवं खंभोंकी शैलीसे यह एलोरासे भी प्राचीन अनुमानित की जा सकती है अर्थात् ७ वीं शती के मध्यकी ।
ऐहोल - यहांकी गुफा बादामीकी गुफासे अधिक लम्बी है । उसका बरामदा ३६४७|| फुट है और उसमें चार खंभे है, छत मकर, पुष्प से अलंकृत है । बाईं दीवाल में बादाम की ही तरह पार्श्वनाथ की मूर्ति है जिसके एक ओर नाग और दूसरी ओर नागी स्थित है । दाहने छोर हैं और उनके पीछे एक वृक्ष है जिसकी शाखाओ एक ओर जिन है जिसके दोनों ओर दो स्त्रीमूर्तियां पर दो आकृतियां उत्कीर्ण है हालका प्रवेशमार्ग आठ फुट हैं और दो ग्वंभांसे त्रिधा विभक्त है । हालका माप १५x१८ है, उसके दोनों ओर १४४५ के दो प्राथनागृह भी हैं । छतके ठीक बीच एक विस्तृत कमल तथा चारों कोनोंमें चार छोटे कमल एवं
बीच-बीच मे मकर, मत्स्य, पुष्प आदि चित्रित है । गर्भगृहका प्रवेशद्वार भी दो खंभों त्रिधा विभक्त है। यहां भी बदामी जैमी पद्मासन नीर्थकर मूर्ति है। बाएं ओर की दीवालमें सिंहासनपर महावीर तथा दजन करीब अन्य पुरुष - उनमें से कुछ हाथियों पर आरूढ़ - वंदना के लिए आते हुये दशीये गए हैं।
एलोरा की गुफाएं - पश्चिमीय समूह में एलोरा की गुफाए सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। ये संख्या में भी अधिक है और विस्तार में भी, इनकी कला पूर्णविक्रमित होचुकी है। इनसे प्रभावित होकर आखिर फर्गुसनको स्वीकृत करना ही पड़ा कि “कुछ भी हो, जिन शिल्पियोंने एलोराकी इन दो मभाओं ( इन्द्रसभा और जगन्नाथ सभा) का निर्माण किया, वे सचमुच उनमें स्थान पाने योग्य हैं जिन्होंने अपने देवताओंके सम्मानमें जीवित पाषणको अमर मंदिर बना दिया" । एलोराकी जैन गुफाएं
१. विशेष विवरण के लिए देखें, श्रार्क सर्वे श्रष वेस्टर्न इंडिया प्रथम रिपोर्ट पृष्ठ ३७ ।