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अनेकान्त
[वर्ष १०
३४३॥ की है। कनिंघमने इस गुफाको ही सप्तप- से इन्हें पूर्वीय समूहके साथ ही जोड़ लिया गया है।
ी गुफा मानाथा जिसमें महाकाश्यपकी अध्यक्षता यद्यपि स्थानकी दृष्टिसे ये मध्यभारतसमूहके साथ में बौद्धोंकी प्रथम संगीति बैठी थी। बेग्लर इस बात हैं । भेलमासे करीब ४-५ मील दूर उदयगिरि मे सहमत तो न था पर वह इन्हें बुद्ध और आनंद पहाड़ीमे बीस गुहामंदिर है और वे सबके सब गुप्तकी गुफाएं मानता था। लेकिन गुफाके द्वारके कालके है। पाषाणकी दृष्टिसे यह पहाड़ी गुफाएं दाहने ३ री-४ थी शतीके अक्षरों में दो पंक्ति- खोदनेके लिये उपयुक्त न थी फिर भी यहां अनेक योंमें खुदे उपजाति छन्दके संस्कृत श्लोकमे उक्त दोनों ऐसी मूर्तियां निर्माण की गई हैं जो अद्वितीय हैं। धारणाए निरर्थक हो जाती है । वह लेख इस प्रकार गुफाओंमेंसे पहली और बीसवीं गुफा जैन हैं।
बीसवीं गुफा पहाड़ीके ऊपरी भागमें है। इसमें १. निर्वाणलाभाय तपस्वियोग्ये शुभे गुहेहत्प्र खुदे हुए लेखसे विदित होता है कि यहां पार्श्वनाथ [ति] माप्रतिष्ठिते [1]
की मूर्तिका निर्माण किया गया था। लेख कुमारगुप्त २.आचार्यरत्नं मुनिवरदेवः विमुक्तये कारय
प्रथमके राज्यकालमें गुप्तसंवत् १०६ में खोदा गया दीर्घ तेज [:] लेखमें गुफाएं निर्माण कराने था। मूल लेख इस प्रकार है:वाले वैरदेवको मुनि कहा है न कि भिक्षु । मुनि
१. नमः सिद्धम्यः [1] शब्द जैन माधुओं के लिये प्रयोगमें आता है(बौद्ध
श्रीसंयुतानां गुणतोयधीनां गुप्तान्वयानां साधुओंके लिए भिक्षु शब्दका ही प्रयोग किया
नृपसत्तमानां। जाता है) वैर शब्द-जो कि वनका जैन प्राकृत रूप ।
___२. राज्ये कुलस्याधिविबर्द्धमाने षड्भिर्युतैः है--से भी ऐसा ही समर्थन प्राप्त होता है। ये गुफाए । निमाण हानेके समयसे ही जैन गफा
वर्षशतथ मासे [1] होनेके ही कारण चीनी यात्रीने इनका उल्लेख भी
सुकार्तिके बहुलदिनेथ पंचमे
____३. नहीं किया। इस लेखके अतिरिक्त गुफाकी भीतरी ।
गुहामुखे स्फटविकटोत्कटामिमां[1]
जितद्विषो जिनवरपार्श्वसंज्ञिकां जिनाकृति शमदमवानऔर बाहिरी दीगलोंपर छोटे-छोटे बहुतसे लेख
चीकरत् [ ] है। जैन लोग इस गुफाका संबंध राजा श्रेणिक
आचार्यभद्रान्वयभूषणस्य शिष्यो ह्यसावार्यबिम्बिसार और उसकी रानी चेलनास जोड़ते है, वह भ्रांति भी उक्त लेखसे निरर्थक सिद्ध हो जाती है।
कुलोद्गतस्य [1]
आचार्यगोश इसी गुफामें द्वारके निकट शिखराकार चतुर्मुख
५. म्ममुनेस्सुतस्तु पद्मावतावश्वपतेन्भटस्य [1] मूर्ति रखी हुई है जिसका गुफासे कोई मौलिक
परैरजेयस्य रिपुघ्नमानिनस्य संघिल संबंध नहीं है। उसमें चारों ओर तीर्थंकर
स्येत्यभिविश्रतो भूविm मर्तियोंके नीचे क्रमशः धर्मचक्रके दोनों ओर जोड़े में हाथी, घोड़ा, बैल और बंदर लांछनरूपमें हैं जिन
स्वसंज्ञया शंकरनामशब्दितो विधानयुक्तं यति
मार्गमास्थितः[] से वे मतियां प्रथम चार तीर्थंकरों की जानी जा सकती हैं।
७. स उत्तराणां सदृशे कुरूणां उदग्दिशादेशवरे ... दूसरी गुफा पहलीके पूर्वमे उसीसे लगी हुई
प्रसूतः [1] है। यह २२।। १७ की है। इसकी छत गिर पड़ी है।
क्षयाय कर्मारिगणस्य धीमान् यदत्र पुण्यं तदयहां भी अनेक जैन तीर्थकर उत्कीर्ण हैं।
९ पाससर्ज [1] . उदयगिरिकी गुफाएं(भेलसा)-समयकी दृष्टि ..फ्लीट कार्पस इन्स्क्रप्सन इंडिकेरम जिल्द ३ ।
सज्ञिकां जिनामिमां।।
४.
लनास जोड़ते