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________________ साहित्य परिचय और समालोचन [हम स्तम्भमें समालोचनार्थ आये नये ग्रन्यादि साहित्यका परिचय और समालोचन किया जाता है । समालोचनाक लिये प्रत्येक ग्रन्थादिकी दो-दो प्रतियां प्राना जरूरी है। -सम्पादक ] आमर-शास्त्रभण्डार जयपुरकी ग्रन्थ-सूची-म- और एक वदीपरका मोनका कार्य दोनों ही दर्शनीय म्पादक पं० कस्तूरचन्द्रजी शास्त्री एम० ए०, प्रकाश- है। इसी मन्दिरमे भट्टारक महेन्द्रकीनिका उक्त शाक रामचन्द्रजी-खिन्दका मत्री श्रीदि जैन महावीर स्त्रभंडार है जिसे मैने सन् ५४ में देखा था और नीर्थक्षेत्र कमेटी महावीरपार्करोड, जयपुर । पृष्ठ- जिमके मब ग्रन्थोंको महावीरतीर्थक्षेत्रकमेटीके मंसंख्या २१८. मृल्य पांच रुपया। त्री और पं० चैनमुम्बदामजीकं मौजन्यसे आमेरम प्रस्तुत ग्रन्थका विषय उसके नाम म्पष्ट है- लाकर जयपुर मंठ बधीचन्दजीकं मकानके एक कइममे भारकमहेन्द्रकीति-आमरशास्त्र-भंडारके मम्मे रकवा थे। उन्हींपरम तथा अतिशयक्षेत्र हलिग्वित ८०० तथा महावीरक्षत्रभंडारकं ३०० महावीरजीक शास्त्रमण्डार ग्रन्थोंपर ही इस ग्रन्थोंकी मचीका संग्रह किया गया है। प्राचीन समय- सचीका निर्माण किया गया है । यद्यपि इम में आमरको जयपर गज्यकी राजधानी बननेका भी नका भा सूचीमे ग्वटकने योग्य त्रुटियाँ है परन्तु फिर भी मकी । मौभाग्य प्राप्त हुआ था; परन्तु खेद है कि आज वह हावीरतीयत्रकमटीकी औरमे माहित्य प्रकाशनअनक जीर्ण-शीर्ण खंडहरोंको लिये हुए कालकी विचित्र का यह कार्य अभिनन्दनीय है। परिणतिकी और संकेत कररहा है। यह नगर पहाड़ों मचीमे उल्लिवित अपभ्रंश भापाका जो भी अकी त्रिकोणमे नीचे जयपुरमे ७ मीलकी दूरीपर वमा प्रकाशित साहित्य है कमटीको चाहिये कि वह उसे हा है। अनेक बडी-बड़ी अद्रालिका धराशायी पड़ी प्रकाशित करनका शीध्र प्रयत्न कर, जिमम अपभ्रंश है और व खंडहर नगरकी प्राचीनताक मद्योतक तथा- भाषा उत्थान-पतन इतिवृत्त लिम्वनमें सहायता उत्थान-पतनक स्पष्ट प्रतीक है । यहाका किला भी मिल सके । साथ ही, हिन्दीकी जननी देशी-भापाका. कलाकी दृष्टिम बड़े महत्वका है। यहां कई जैनमन्दिर जिसे 'अवहद या अपभ्रश कहा जाता है, प्रामाणिक और एक शियां जी भी है। उन सब मन्दिरोंमे एक इतिहास जनताक मामन आसके । सूचीकी सफाई मन्दिर प्रमुख है जो जैनियोंके वाईमवे तीर्थकर भग- माधारगा है परन्तु मूल्य ५) रुपया कुछ अधिक प्रवान नेमिनाथका है जिसे 'मांवला' जीके नाममे पका- तोत होता है। पुस्तक अन्वषक विद्वानोंके बड़े रा जाता है । इम मन्दिरकी भीतरी शिम्बरका भाग कामकी है। -परमानन्द जैन ।
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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