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________________ किरण ३] वर्णीजी और उनकी जयन्तो ११६ आंसे प्रकट है। उनकी करुणाकी न सीमा है, और हरेक अवसरपर प्राणिमात्रको अपना आत्मन पार है । जो अहिंसक और सन्मार्गगामी है उन- कल्याण करनेके लिये वे प्रेरणा करते है और अपना पर उनका वात्म ल्यभावरहता ही है किन्तु जो ममस्पशी उपदश देत है। विहारप्रान्तसे मध्यप्रांत. अहिंसक और सन्मागंगामी नहीं हैं-हिमक तथा ' यू० पी० और दहली तक पैदल यात्रा करके जा कुमार्गगामी है उनपर भी उनकी करुणाका प्रवाह उन्होंन लाग्बों व्यक्तियोंको धर्मोपदेश किया है और मविशप वहा करता है। वे देशके ही नहीं। उन्हें सदाचारक मार्गमे लगाया है वह उनकी जगमारी दुनियाके किसी भी व्यक्निको द खी देख कर कल्याणकी भावनाका ही सुफल है। आज जब एक दुःख-कातर हो जाते है, उसके दुखःमाचनकी भा- जगहसे दूसरी जगह जानेके लिये अनेक माधन है वना करने लगते है। गत विश्वयुद्धकी विनाशपूर्ण उम समय उन्हान पैदल चलकर भारतीय प्राचीन खबरको सुनकर उन्हें मर्मान्तक दु:ग्य होता था मन्तांका ही आदर्श उपस्थित किया है। इतिऔर उनकी करुणाका प्रवाह वहने लगता था। मन हासमे यह उल्लेखनीय इतनी लम्बो पैदल यात्रा और ४५ मे जब आजाद-हिन्द-फौजक मंनिकांके विरुद्ध ने भी की हो, यह ज्ञात नहीं। पर पृज्य वर्णीजीको गजद्रोहका अभियोग लगाया गया और उन्हें फांसी यह लम्बी पैदल-यात्रा इतिहाममे सदा स्मरणीय के तस्तपर चढ़ाया जाने वाला था उस समय मार रहगी। माथमे उनकी यह जगत्कल्याण की भावना भी। आज विश्वको त्रम्त देखकर वे हमेशा कहा दशम मरकारके इस कार्यका विरोध हो रहा था और उनकी रक्षाक लिये धन इकट्ठा किया जा रहा करते है कि 'एक हवाईजहाज लो, और माथम था। जबलपुरम एक मावनिक सभाम, जो इमी दस-पन्द्रह मर्मत विद्वानांको और यरोपमे जाकर लिय की गई थी, पृज्य वर्गीजीका हृदय करुणाम अहिंसा और अपरिग्रह धमका प्रचार करो। माथम भर आया और बोले--जिनकी रक्षाक लिये ४० करोड़ हम भी चलने को तैयार है । जहां शगव और मांम मानव प्रयत्नशील है उन्हें कोई शक्ति फांसीके की दुकान है और नाचघर बने हुए है वहां जा तन्तपर नहीं चढ़ा सकती। आप विश्वास रखिये, कर मदाचार और अहिंसाका उपदेश करो। आज मग अन्त करण कहता है कि आजाद-हिन्द-मैनिको लोगोंका कितना भारी पतन हो रहा है। देशके लाग्यां मानवोंका चरित्र बिगड़ रहा है उन्हें मचा मार्ग का बाल भी बांका नहीं हो सकता है।' इतना कहा और अपनी चादर भी उनकी सहायताक लिये दिखाओ।' यह है पूज्य वर्गीजीकी जगत्कल्याणकी द डाली जिसका उपस्थित जनता और अध्यक्ष मध्य भावना और हार्दिक ममम्पर्शी उपदेश । प्रान्तकं गृहमन्त्री पं० द्वारकाप्रसाद मिश्रपर बड़ा प्रज्य वर्णीजीम एम-एस अनक गुण है जिनही प्रभाव पड़ा। कहनका तात्पर्य यह कि पूज्य वर्णी- का यहां उल्लेख करना शक्य नहीं है। पंक्षपम. जीका हृदय करुणास भरा हुआ है और इसलिये उनका जीवनचरित्र महापुरुपका जीवनचरित्र है व करुणाके आगार है। वास्तवमै जिमका हृदय और इसलिये उन्हें करोड़ों नर-नारी महान् मन्त इम प्रकारकी करुणास भरा हुआ होता है वही एवं महापुरुप मानते है और अपनी श्रद्धाञ्जलि उनक अपार्यावचय धर्म यानका चिन्तवन कर पात है चरणोंमे अपित करत है। हम भी उनके चरणमि और वही तीर्थकर (जनताद्धारक) बनते है। अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते है। और भावना जगन्कल्याणकी सतत भावना करत है कि वे चिरकाल तक हम लोगोंक मध्यम पज्य वर्णीजीम अपार करुणाके मिवाय जग रहकर हम श्रात्मकल्याणकं मागेम लगाते रहे। स्कल्याणकी भी मतत भावना रहती है। हर समय -दरबारीलाल कोठिया।
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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