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________________ किरण ३] वीजी और उनकी जयन्तो ११७ हिन्द-मैन्यकी रक्षा करने, चादर तुम दे डाली हो। कम-वीर कमठ जन-नायक, महा मान्य कहलाय हो ।। श्रावकके ग्यारह दरजे चढ़कर भुल्लक पद तुम पाये हो । मंघ महिन कल्याण मार्गमे मतत लगे औ लगाये हो ।। तुच्छ भेट भावोंको लेकर चरणों शीप झकाये हो। करनेको कल्याण मबोंका इन्द्रप्रस्थमे आये हो।। नोट --वर्णी जयन्तिके उपलक्ष्य में यह कविता रची गई। वर्णाजी और उनकी जयन्ती श्राजके आध्यात्मिक संसारम श्री १०५ आनन्दकं संवादमे एक उल्लेखनीय प्रश्नोत्तर वल्लक पूज्य गणेशप्रसादजी वर्णी न्यायाचायका आया है। यानन्दन' बुद्धमे प्रश्न किया कि अग्र-स्थान है । आश्विन कृवाण ४ वीरनिवागग- “महापुरुप किम कहत है और उसका क्या लक्षण मंवत २१७५, ११ मितम्बर १९४६ को दहलीमे है" बद्धने उत्तर दिया कि "जो लोकापवादस आपका ७५ वां जन्म-दिवम बड़ी धूमधामक माथ नही डरता है, मत्यका अनुयायी है, अपार करणामनाया गया । आपके व्यक्तित्व और वाणीम कितना का आगार है और जगतका कल्याण करनेके लिये प्रभाव एवं आकर्षण है वह इमीन मालूम हो मत यह भावना भाता है कि 'मै जगतका हित जाना है कि आपके उपदशमं ममाजन लाखों करनक लिय बद्ध बन''--'बुद्धा भवयं जगता रुपयोका दान किया है और अनेक विद्यालय, हिताय'। वह महापाप है।" यही बातें पूज्य गुरुकुल तथा पाठशालाएं स्थापित की है। हालमे वर्णीजीम पाई जाती है। आपके जन्म-दनपर भी महामना दानवीर मठ लोकापवादपर विजय शान्तिप्रसादजी जैन डालमियानगग्ने आपके कोई पच्चीम-तीस वर्ष पहलेकी बान है। दाग संस्थापित म्याद्वादमहाविद्यालय बनारमके पूज्य वजीन ममाज-सुधारका एक आन्दोलन यह लिये एक लाम्बका उल्लेखनीय महत्वपूण दान उठाया कि विवाहम-बरात और फैनागेमे औरते किया है। इमी प्रकार दहली ममाजके प्रमुग्ब और न जाये, क्योंकि यह एक अच्छी प्रथा नहीं है और वर्णीसंघको उत्तरप्रान्तमे लानबालीम अग्रणी उममे व्यथ अपव्यय होता है । परन्तु वर्णीजीक ला० राजकृष्ण प्रेमचन्दजी जैनन भी छात्रवृत्तिफंडके मदभावनापा इम आन्दोलनके विरुद्ध नीमटो. लिये क्यावन हजारका आदर्श दान दिया है। रिया (झांमी)मे एक बगतमे औरने गई। जब वर्गीहमारे कितने ही जिज्ञासु पाठकोंके हृदयमे जीको मालम हुआ ना व वहां पहुंचे और सारी यह जिज्ञामा होगी कि वर्गीजी क्या है ? और औरतोंको वापिम कगया। इमकी औरतीक चिनक्यों उनका इतना प्रभाव है? पर बुरी प्रतिक्रिया हुई। उन्होंने विवेक बोकर वर्णी___ इसका एक ही उत्तर है और वह यह कि जीको भारी गालियां दी, भला-बुरा कहा और खूब पूज्य वर्णीजी महा मानव है। जिन विशेषताओं कोसा। किन्तु वर्णीजीके मनपर उसका कोई असर और बातांस मानवको महा मानव कहा जाता है वे सब विशेषता और बाते पूज्य वीजीमें पाई १ अानन्द महात्मा बुद्धका प्रिय बार प्रधान जाती है । बौद्धोंक एक प्राचीन ग्रन्थमे बुद्ध और शिष्य था।
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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