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अनेकान्त
[वष १०
__ दम प्रकार गांधार मूतिका कमन्सन्कम
(३ )पटना
वीपर्व ३री शनी
इस्त्रीमें विजित किया।
(२) ईम्वी पूर्व दृमरी शतीकी लिपिमें अभिइम प्रकार गांधार मूर्तिका कम-से-कम प्रथम शती लिखिन मृति-मथुरासे प्राप्त । ई० पूर्वका प्रारम्भ होना ही चाहिए और वह मथु
(३)पटना संग्रहालयमें प्रदशित मौयकालीन राके बुद्धसं कम-से-कम एक शती प्राचीन है।
पालिसयुक्त नग्न तीर्थकरमूर्ति ( ईस्वीपर्व ३री शती ।
(४) हाथी गुफा लेखमे उल्लिखित कलिंग आद्य बुद्धमतिका समय हम जान चुक इसा जिनकी मर्ति, जिसे नन्द अपने माथ मगध लगया पर्वकी पहली शती है । लेकिन यदि हम जैन-नि- था और फिर ग्यारवल वापस लाया था (ईम्वी पृव । निर्माण को देखे तो वह इमम कई शताब्दी पूर्व थी शती)। तककी मिलेगी।
इस प्रकार एतिहामिक भारतकी अबतककी बात (१) कुशाणवशी राजाओंक कालकी मथुगम मृतिकलामे ममयकी दृष्टिम जैन नीथकगेको प्रथम प्रान ( ईस्वा शती प्रथम)।
स्थान प्राप्त है।
वर्णी बापू। (रचियत्री सौ. चमेलीदेवी जैन, हिन्दीरत्न)
- - वर्णी बापू ! तुम समाजके महा प्रतिष्ठित मानव हो।
करने को कल्याण सबों का इन्द्रप्रस्थ में आये हो ।। धन्य मान वह धन्य तात वह जिनने तुम्हे जनाया है।
धन्य देश वह धन्य ग्राम वह जहां जन्म तुम पाया है।। मात चिरोंजा-उजियारीके, हीगपूत कहाये हो।
ग्राम हंसेरा झांमी मे जनि, जग आनन्द बढ़ाये हो ।। आश्विन वदि की पृत चौथ को, मान-पिता हर्षाये हो।
दिया बड़ों ने आशिष तुमको, धर्मवीर कहलाये हो। वैष्णव कुल मे जन्म लिया पर, जैनधर्म तुम पाया है।
मात चिरोजा ने पाकर तुमको विद्वद्ररत्न बनाया है. ।। बाबा भागीरथकी संगति से चारित्र बढ़ाया है।
श्रद्धा-ज्ञान-चरित्र-त्रयीका, उत्तम पथ तुम पाया है । लोक-जाति-उत्थान करण को, अपना ध्येय बनाया है।
___ व्याप्त हुआ अज्ञान तिमिरिको, तुमने ही तो हटाया है ।। खोले गुरुकुल खोली शाला, विद्यालय बहु खोले है।
घूम घूम कर तुमने सबको, ज्ञान महत्व बताया है।। फैल रही थीं रूढ़ि-रीतियां उन्हें तम्हों ने भगाया है।
दे उपदेश मधुर-वाणी का, पान तुम्हीं ने कराया है ।।