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अनेकान्त
सन् १३६८ ( वि० सं० १४५५ ) में तैमूरलंगने भारतपर जब श्राक्रमरण किया. तब अवसर पाकर तोमरवंशी वारसिंह नामके एक सरदारने ग्वालियर पर अधिकार कर लिया और वह उक्त वंशके आधीन सन् १५३६ ( वि० संवत् १५६३ ) तक रहा। इसके बाद उक्त दुर्गपर इब्राहीम लोदीका अधिकार हो गया। मुमलमानोंने अपने शासनकालमें उक्त किलेको कैदखाना ही बनाकर रक्खा । पश्चात दुर्गपर मुगलोंका अधिकार हो गया. जब बाबर उस दुगको देखने के लिये गया, तब उसने उरवाही द्वारके दोनों ओर चट्टानोंपर उत्कीर्णे हुई उन नग्न दिगम्बर जैन मृतियोंके विनाश करनेकी आज्ञा दे दी । यह उसका कार्य कितना नृशंस एवं घृणापूर्ण था. इसे बतलानेकी आवश्यकता नहीं ।
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सन् १८१५ में दुगेपर मराठोंका अधिकार हो गया, तबसे अबतक वहां पर उन्हींका शासन चल रहा है।
जैन मन्दिर और मूर्तियां
यह किला कलाकी दृष्टिसे बहुत ही महत्वपूर्ण है। किले में कई जगह जैन मूर्तियां खुदी हुई हैं । इस किले में शहर के लिये एक सड़क जानी है, इम सड़क के किनारे दोनों ओर विशाल चट्टानोंपर उत्कीर्ण हुई कुछ जैन मूर्तियां श्रत हैं। ये सब मूर्तियां पाषाणों का कर्कश चट्टानोंको खोदकर बनाई गई हैं। किले में हाथी दरवाजा और सासबहूके मन्दिरोंके मध्य में एक जैन मन्दिर है जिसे मुगलशासनकाल में एक मस्जिद के रूपमें बदल दिया गया था। खुदाई करनेपर नीचेको एक कमरा मिला है जिसमें कई नग्न जैन मूर्तियां हैं और एक लेख भी सन् ११०८ ( वि० सं० ११६५ ) का है । ये मूर्तियां कायोत्सर्ग तथा पद्मासन दोनों प्रकारकी है। उत्तरकी वेदीमे सात फऱण सहित भगवान श्री पार्श्वनाथकी सुन्दर पद्मासन मूर्ति है । दक्षिणकी भीतर भी पांच वेदियां है जिनमेंसे दोके
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स्थान रिक्त हैं, जान पड़ता है कि उनकी मूर्तियां विनष्ट करदी गई है। उत्तरकी वेदीमें दो नग्न कायोमग मूर्तियाँ अभी भी मौजूद है । और मध्यम ६ फुट आठ इंच लम्बा आसन एक जैन मूर्तिका है. दक्षिणी वेदीपर भी दो पद्मासन नग्न मूतियां है।
किलेकी उर्वाहीद्वारकी मूर्तियों में भगवानआदिनाथ की मूर्ति सबसे विशाल है, उसके पैरोंकी लम्बाई नौ फुट है और इस तरह पैरोंमें तीन चार गुणी ऊंची है। मूर्तिकी कुल ऊंचाई ५७ फीटसे कम नहीं है । श्वेताम्बरीय विद्वान मुनि शीलविजय और सौभाग्यविजयने अपनी अपनो तीर्थमाला मं इस मूर्तिका प्रमाण बावन गज बतलाया है " । जो किसी तरह भी सम्भव नहीं है । और बाबरने अपने आत्म-चरितमें इस मूर्ति को करीब ४० फीट ऊंचा लिखा है जो ठीक नहीं है। साथ ही, आत्मचरितमें उन मूर्तियांक खंडित करानेका आदेश भी निहित है । यद्यपि अधिकांश मूर्तियां खंडित करा दी गई है, और कुछ मूर्तियोंकी बादमे सरकारकी ओरसे मरम्मत भी करा दी गई है, फिर भी उनमें की अधिकांश मूर्तियां अखंडित मौजूद है । किले से निकलते ही उरवाही द्वारकी भगवान आदिनाथकी उस विशाल मूर्तिका दर्शन करके दर्शकका चित्त इतना आकृष्ट हो जाता है कि वह कुछ समय के लिये सब कुछ भूल जाता है और उस मूर्तिकी ओर एकटक निनिमेष देखते हुए भी तबिय त नहीं हटती । सचमुच में यह मृनि बहुत दी सुन्दर, कलात्मक और शान्तिका पुंज है। इसके दर्शनसे ही परम शान्तिका स्रोत बहने लगता है । यद्यपि भारतमे श्रमणों (जैनियों) की इस प्रकारकी और
१ 'बावनगज प्रतिमा दीसती, गढग्वालेरि सत्रा सोभती' | - शीखविजय तोर्थमाला पृ० १११ ।
'गढ़ ग्वालेर बावनगज प्रतिमा बंदू ऋषभ रंग रोली जी" 'सोभाग्यविजय तीर्थमाला १४-२०१८ ।
२ देखो, बावरका आत्मचरित ।