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________________ किरण २) सम्प्रदायवादका अन्त पर, हमारी समाज में प्राय: छोटे बड़े सभी एक रहना, निश्चय ही भात्मघातसे भी अधिक जघन्य सिरेसे मृत्यु-समय महोत्सव मना रहे हैं। मृत्यु पाप है। उनके सर पर नाच रही है, पृथ्वी उनके पांचोंके पोलेण्ड और फिनलैंडका वही हश्र हुआ जो नोचेसे खिसकी जारही है। प्रलयके थपेड़े चप्पत निर्बल राष्ट्रों और अल्पसङ्ख्यक जातियोंका होता है। मारकर बतला रहे हैं कि रणचण्डीका तांडव नृत्य इस घटनासे शंकित आज कमजोर और असहाय राष्ट्र प्रारम्भ होगया है। उसका घातक प्रभाव आँधीको मृत्युवेदनासे छटपटा रहे हैं। निबेल राष्ट्र ही क्यों ? वे तरह संसार में फैल गया है। संसार के विनाशकी सबल राष्ट्र भी-जिनको तलवारोंके चमकनेपर बिजली चिन्ता और अपने अस्तित्व मिट जानेकी आशंका कौन्दती है, जिनके सायेके साथ साथ हाथ बान्धे हुए दूरदर्शी मनुष्योंके कलेजोंको खुरच-खुरच कर खाए विजय चलती है, जिनके इशारे पर मृत्यु नाचती हैजारही है। पृथ्वीके गर्भ में जो विस्फोट भर गया है आज उसी सतृष्ण दृष्टिसे अपने सहायकोंकी ओर वह न जाने कब फूट निकले और इस दीवानी दुनिया देख रहे हैं। जिस तरह डाकुओं से घिरा हुआ काफिला को अपने उदर-हरमें छुपा ले। एक क्षण भरमें (यात्री दल)। क्योंकि उनके सामने भी अस्तित्त्व मिट क्या होनेवाला है-यह कह सकनेकी आज राजनीति जानेको सम्भावना घात लगाये हुए खड़ी है । इस के किसी भी पंडितमें सामर्थ्य नहीं है। संसार समुद्र प्रलयंकारी युगमें जो राष्ट्र या समाज तनिक भी असामें जो विषैली गैस भर गई है वह उसे नष्ट करने में वधान रहेगा, वह निश्चय ही प्रोन्धे मुँह पतनके कालसे भी अधिक उतावली है।। गहरे कूपमें गिरेगा । अत: जैन समाजको ऐसी परिकिन्तु, जैनसमाजका इस ओर तनिक भी ध्यान स्थिति में अत्यन्त सचेत और कर्तव्यशील रहनेकी श्रा. नहीं है। वह उसी तरहसे अपने राग रङ्गमें मस्त है वश्यकता है। दख. चिन्ता, पीड़ा आदिके होते हुए भी आनन्द- ३-सम्प्रदायवादका मन्तविभोर रहना. मुसीबतोंका पहाड़ टूट पडनेपर भी जब भारत स्वतन्यानो मुस्कराना नमुष्य के वीरत्व साहस और धैर्यके विषम परिस्थितियोंने घेर लिया है। पाकिस्तानी, रिचिह्न हैं। पर जब यही क्लेश, दुख. चिन्ता आदि यासती और अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओंके हल करने में तो दसरेको पीड़ित कर रहे हों. तब उनका निवारण न वह चिन्तित है हो, अपने आन्तरिक मामलोसे वह करके अथवा समवेदना प्रकट न करके आनन्द रत और भी परेशान है। जिन रूदिवादियो, प्रगतिविरहना मनुष्यताका द्योतक नहीं। गाना अच्छी चीज रोधियों, पोंगापन्थियों, जी हजुरों, पूंजीपतियों आदि है, पर पड़ौसमें आग लगी होनेपर भी सितार बजाते ने स्वतन्त्रता प्राप्तिमें विन्न डाले और हमारे मार्गमें रहना, उसके बुझानेका प्रयत्न न करना आनन्दके पग-पग पर कांटे बिछाये, वही आज सम्प्रदायवाद, बजाय क्लेशको निमन्त्रण देना है। जहाजका कप्तान प्रान्त बाद और जातीयतावादोंके मरहे लेकर खड़े हो अपनी मृत्युका आलिंगन मुस्कराते हुए कर सकता है, गये हैं। जिन भलेमानुषों (?) ने गुलामीकी जंजीर पर यात्रियोंको मृत्युको संभावनापर उसका श्रानन्द में जकड़ने वाली ब्रिटिशससाको हद बनाने के लिये विलीन हो जाता है और कर्तव्य सजग हो उठता है। लाखों नवयुवक फौजमें भर्ती कराके कटा डाले,भ हम भी इस संसार-समुद्र में जैनसमाज-रूपी जहा- संख्य पशुधन विध्वंस करा डाला और यहांका अनाज जमें यात्रा कर रहे हैं। जब संसार सागर विक्षुब्ध बाहर भेजकर लाखों नर नारियों और बालक बालिहो उठा है और उसकी प्रलयकारी लहरें अपने अन्त- काओंको भूखे मार डाला. वही आज "धर्म इबा धर्म स्थल में छपाने के लिये जीभ निकाले हए दौड़ीपारही इवा" का नारा बुलन्द करके सम्प्रदायवादका पवार हैं तब हमारा निश्चेष्ट बैठे रहना, रागरण में मस्त उठा रहे हैं।
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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