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अनेकान्त
[ वर्षे
फटकार बरसेगी। नाथ गोडसे पर थूकना भी लोग मरते-मरते अभय दे गया, हिंसासे भी खिलखिलापसन्द नहीं करेंगे। कौन ऐसे वंशपर थूक कर अपने कर छेड़कर गया। थूकको अपवित्र करेगा?
और हिंसाके भक्त जो दिन-रात लाठी-बर्छ ओ दुर्देव! तू अपने भयानक चक्र में फंसाकर दिखाते फिरते थे। आसुरी बलपर जिन्हें घमण्ड था, हमारे समुचित अपराधोंकी सजा देना। पर हमारे वही आज प्राणभयसे कुत्तोंकी तरह भागते फिर रहे देशमें, प्रान्तमें, समाजमें. वंशमें, ऐसा कलंकी उत्पन्न है। जो निशस्त्र गान्धीका मखोल उड़ाते थे, वे आज न करना ! भले ही हमारा पुरुषत्व और नारियोंका भेदोंकी तरह मिमया रहे हैं। एकसे भी सुखरू जनन अधिकार छीन लेना; परन्तु हमें इस अभिशापसे होकर जनताके सामने आते नहीं बना। पचाना। देव ! हम तेरे पांव पड़ते हैं, हमने इतना बापूके अहिंसक अनुयाइयोंपर गवर्नमेण्ट भी हाथ दीन हो कर त्रिलोकीनाथ जिनेन्द्रसे भी कभी कुछ न डालते हुए सहमती थी। गिरफ्तार होते थे तो मांगा, आज हम गिड़गिड़ाकर यह भीख मांगते है कि जेलखानोंको इस शानसे जाते थे कि देखनेवालाको हमारे देश में फिर ऐमा कलङ्की उत्पन्न न करना। उनके इस बांधपनपर गर्व होता था। शत्रु भी हृदयसे
बापूको मृत्यु इस शानसे हुई जिसके लिये बड़े २ इज्जत देते थे। इसके विपरीत आसुरी बल और महारथो तरसते है। मगर नसीब नहीं होती- हिंसाके गीत गानेवालोंका जो हाल हुआ वह जो मरजावे खटिया पड़कर उसके जीवनको धिकार। दयनीय है।
बचपनमें पालडाखण्डका यह पद्यांश सुना और राष्ट्रपिताने अपनी शानके योग्य ही मृत्युका अभी तक विस्मरण नहीं हुआ। विस्मरण होनेकी वरण किया, परन्तु हमें रह-रहकर एक कलमलाहट चीज भी नहीं है। बचपनसे ही देखता आ रहा हूं बेचन किये देती है। हजारों बपकी दुद्धर तपश्चर्याके कि सचमुच अधमसे अधम, गये बीतेसे गया बीता फलस्वरूप हमें जो निधि प्राप्त हुई, उसे हम सम्हालभी खटियार नहीं मरना चाहता, वह भी मरनेसे कर न रख सके। हम ऐसे पावले हो गये कि खुलेआम पूर्व खटियासे पृथ्वीपर ले लिया जाता है। रणक्षेत्र उसे रखकर खुर्राटे लेने लगे। हम अपनी इस या कार्यक्षेत्र धर्मक्षेत्र न सही पृथ्वीपर लेटकर प्राण मुर्खतापर उसी तरह उपहासास्पद हो गये हैं जिस देनेसे उसका तसव्वुर तो नेत्रों में रहता है। जिसका सरह एक मजदूर डीकी लाटरीको बांसमें रखे घूमता जोवन इतना संघर्षमय और व्यस्त हो, उसे खटिया- था। और लाटरी पानेकी खुशोमें उसने बांसको पर मरनेका अवकाश कहां? वह तो चलते-चलते, समुद्र में इस खयालसे फेंक दिया था कि जब इतना ईश्वर नाम लेते-लेते गया। एक नहीं, दो नहीं, रुपया मिलेगा तो बांसको रखकर क्या करूगा ? चार-चार गोली सीनेमें मर्दाना वार खाकर भी तो गिराधागेकी ओर। जिसने जीवन में कभी पीछे मृत्यु-महोत्सवइटना नहीं जाना वह अन्तिम समयमें भी पीछे क्यों नशास्त्रों में जितना महत्व मृत्युमहोत्सवको दिया गिरता ? कर्तव्य पथपर अग्रसर, जिह्वापर भगवान. "गया, है उसमें भी कई गुणा अधिक महत्व हमने का नाम, हृदयमें विश्व-कल्याणको भावना, मुखपर उसे अपने जीवनमें दे रक्खा है। मृत्यु-समय हँसते समाकी अपूर्व भाभा-बताइये तो ऐसी शहादतका हुए प्राण-त्याग देना, ममता-मोह लेशमात्र भी न दर्जाबापूके अतिरिक्त और किसको मयस्सर हुआहै? रहना और मृत्यु-वेदनाको सान्यभावसे सहन करने
अहिंसाका पुजारी हिंसकद्वारा शहीद किया गया, भादिके उदाहरण साधु महास्मा, शूरवीर, धर्मनिष्ठ पर, हिसक क्या सचमुच विजय पा सका। विजय एव. देशभक्तों आदिके मिलते हैं। सर्वसाधारणसे तो बापूके ही हाथ लगी। यह क्षमाका अवतार ऐसी पाशा बहुत कम होती है।