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________________ सम्पादकीय चार आरा १-राष्ट्रपिताको श्रद्धांजलिट्रपिताके निधनपर हम क्या श्रद्धांजलि इस रोगसे प्रसित कुछ अभागोंको समिपात हो गया। अर्पित करें। हम तो उनकी भेड़ थे। और उसी सन्निपातके वेगमें उन्होंने राष्ट्रपिताका वध जिधरको संकेत किया बढे, जब रोका कर डाला । पुत्र ही पिताके घातक होगये। कके. पर्वतोपर चढनेको कहा चहे. श्रायकुल में आश्चर्य जनक घटनाएँ मिलतो। - और गिरनेको कहा तो गिरे। श्रद्धा- पुत्रने माताका वध किया, माताने पुत्रों को जानोंकी अलि तो हमारी पीढी दर पीढी भर्पित करेगी जिसे खाक छाननेको मजबूर किया। भाईने बहनके स्वतन्त्र भारतमें जन्म लेनेका अधिकार बापूने प्रदान बालकोंका वध किया। देवरने भाभीको नग्न करनेका किया है। बीड़ा उठाया, शिष्यने गुरुको मारा. मित्रने मित्रकी १५ अगस्तको जब समस्त भारत स्वतन्त्रता समा बहनका अपहरण किया। नारियोंने पतियोंके और रोहमें लीन था, तब हमारा राष्ट्रपिता कलकत्ते में । से पतियोंने नारियों के वध किये । परन्तु पत्रोंने पिताका बैठा साम्प्रदायिक विष पी रहा था। समग्र भारतकी । वध किया हो ऐसा उदाहरण आर्य, अनार्य, देश, इच्छा उसे अभिशिक्त करनेकी थी, परन्तु वह कल विदेशमें कहीं नहीं मिलता। गोडसेने यह कृत्य कत्ते से हिला नहीं। और उसने सांकेतिक भाषामें करके कलककी इस कमीको पूर्ण कर दिया है। सावधान कर दिया कि जिस समुद्रमन्थनसे स्वतंत्रता- एकही भारतमें दो नारियोंको प्रसव पीड़ाई। सुधा निकली है, उसीसे सांप्रदायवाद-हलाहल भी एकने बापूको और एकने गोरसेको जन्म दिया। निकल पड़ा है। यह मुझे चपचाप पीने दो। इसकी कितना आकाश-पातालका अंतर है इस जन्म देने में । बूद भी बाहर रही तो सधाको भी गरल बना देगी। एकने वह अमर ज्योति दी जिससे समस्त विश्व दीप्त और सचमुच उस हर्षोन्मादकी छीना-झपटीमें हमारे हो उठा, दूसरीने वह राह प्रसव किया जिसके कारण हाथों जो गरल छलकी तो वह पानी में मिटीके तेलकी आज भारत तिमिराछन्न है। एटम बमके जनकसे तरह सर्वत्र फैल गई। और दसरे पदार्थों के सम्मि- अधिक निकृष्ट निकली यह नारी। क्या विधाता इस श्रणसे उसका ऐसा विकृतरूप हा कि उसके पानसे नारीको बन्ध्या बनाने में भी समर्थ न हो सका। न तो हम मरते ही हैं और न जीते ही हैं। एदियां गोडसेके इस कृत्यने उसके वंशपर, जातिपर, रगड़ रगड़ कर छटपटा रहे हैं फिर भी प्राण नहीं प्रान्तपर कालिमा पोत दी है। गोड़से वंशकी कन्याएँ निकल रहे हैं। बरोंकी खोजमें भटकती फिरेंगी युवकोंकी ओर लालाइस सांघातिक महाव्याधिसे छुटकारा दिलाने यित दृष्टिसे देखेगी। परन्तु युवक क्या खुढे भी उस राष्ट्रपिता दिल्ली पहुंचे, उपचार चल ही रहा था कि ओर नहीं थूकेंगे। सर्वत्र थू थु दुर दुर लानत और
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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