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अनेकान्त
। वर्ष
वेदनाको मन्दिरसे प्रकाशित होने वाले 'अनेकान्तः पड़ता है। अतः वीरसेवामन्दिरका समस्त परिवार पत्रको जनवरो मासको किरणमें भारतकी महाविभूति एकत्रित जैन जनता और जेनेतर जनताके साथ स्वका दुःसह वियोग' शर्पिकके नीचे कुछ प्रकट भी कर ीय महात्माजीकी अपनी श्रद्धांजलि अर्पण करता चुका है। भोज महात्माजीकी २३ वीं के दिन जबकि हुआ उनको प्रात्माके लिये परलोकमें सुख-शान्ति उनके शरीरको पवित्र भस्म नदियों में प्रवाहितकी की कामना करता है और उनके समस्त परिवारके जायगी, नगरको सारी जैन जनता वीरसेवामन्दिर में प्रति अपनी हार्दिक समवेदना व्यक्त करता है। साथ एकत्र हुई, और उसने महात्माजीके इस आकस्मिक ही यह दृढ़भावना और भगवान महावीरसे प्रार्थना निधनपर अपना भारी दःख तथा शोक प्रकट किया। भी करता है कि पं. जवाहरलाल नेहरु सरदार साथही यह स्वीकार किया कि श्रापभी महावीरके बल्लभ भाई पटेल, डा. राजेन्द्रकुमार और मौलाना अहिंसा, सत्य और अपरिग्रहवाद जैसे सिद्धान्तोंकी अब्बुलकलाम आजाद जैसे देशके वर्तमान नेताओं मौलिक शिक्षाओंका व्यापक प्रचार और प्रसार करने
को जिनके ऊपर महात्माजी अपने मिशनका भार बाले एक सन्तपुरुष थे। देश आपके उपकारों और छोड़ गये हैं वह अपार बल और साहस प्राप्त होवे सेवाओंका बात बड़ा ऋणी है आपके इस निधनसे जिससे वे राष्ट्रके समुचित निर्माण और उत्थानके भारतको ही नहीं बल्कि सारे विश्वको भारी क्षति कार्य में पूरी तरह समर्थ हो सकें । पहुंची है, जिसकी शीघ्र पूर्ति होना असंभव जान
गाँधीकी याद । लेखक:-मु० फजलुलरहमान जमाली, सरसावी । वह देशका रहवर था, वह महबूबे नजर था ! सच पूछो तो वह हिन्दका मुमताज बशर था !! हिन्दूको अगर जान तो मुस्लिमका जिगर था! गङ्गाको अगर मौज तो जमनाकी लहर था !!
वह सो गया सोया है मगर सबको जगाकर !
रूपोश हुआ पर्दे में, वह पर्दा उठाकर !! तस्वीरे मुहब्बत था, अहिसाका वह पैकर ! बहता हुआ बह रहम व हमीयतका समन्दर !! ऐ आह ! कि वह छुप गया न रशैद मनव्वर । हर मुल्कमें अन्धेर तो मातम हुआ घर घर !!
तबका यह उलट जाय तो कुछ दूर नहीं है !
गान्धीकी मगर रूहको मंज़र नहीं है!! अब कौन है इस डूबती कश्तीका सहारा ! उन लोगोंका या दौर है जो हैं सितम आरा!! यह सदमा तो दिलको नहीं होता था गवारा! क्या डूब चुका हिन्दकी किस्मतका सितारा!!
उम्मीद बढ़ी दिलकी लगे होश ठिकाने!
अब दूसरा गांधी किया 'नहरू' को खुदाने !! जा देके बड़े कामको अंजाम दिया है ! कोमतको अहिसाकी अदा करके रहा है !! M गांधी जिया जिस तरहसे यूकौन जिया है! नाथने मगर हिन्दको बदनाम किया है!!
जो शमा हिदायत थी उसे आह बुझा दी!
जालिमने लगी भागमें और आग लगा दी ! यह उर्द कविता १२ फरवरी सन् १६४८ को सरसावाको सार्वजनिक शोकसभामें पढ़ी गई और पसन्दकी गई.
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