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________________ किरण २] महात्मा गान्धोके निधनपर शोक-प्रस्ताव त्याग नामके दो ग्रन्थोंका समल्लेख किया है। उनमेंसे अब रही 'रचना समयकी बात' सो इनका समय नेमिनिर्वाणके व सर्गमें बलकीड़ा और १०वें सगैमें विक्रमको १४ वीं शताब्दीका जान पड़ता है। क्योंकि मधुपानसुरतका वणन दिया हुआ है। हां, 'राजीमतो काव्यानुशासनवृत्तिमें इन्होंते महाकवि दएडी वामन परित्याग' नामका अन्य कोई दूसरा ही काव्यग्रन्थ और वाग्भटादिकके द्वारा रचेगये दश काव्य-गुणोंमेंसे है जिसमें उक्त दोनों विषयोंके कथन देखने की सूचना सिर्फ माधुये ओज और प्रसाद ये तीन गुण हो माने की गई है। यह काव्यग्रन्थ सम्भवत: पं० श्राशाधर हैं और शेष गुणोंका इन्हीं तीनमें अन्तर्भाव किया जीका 'राजमती विप्रलम्भ' या परित्याग जान पड़ता है। इनमें वाग्भट्टालकारके कर्ता वाग्भट विक्रमकी है; क्योंकि उसी सोलहवें पृष्ठ पर 'विप्रलम्भ वर्णनं १२ वीं शताब्दीके उत्तरार्धके विद्वान हैं। इससे राजमतो परित्यागादौ वाक्य के साथ उक्त ग्रन्थका नाम प्रस्तुत वाग्भट वाग्भट्टालङ्कारके कर्तासे पश्चात् वर्ति है 'राजीमती परित्याग' सूचित किया है। जिससे स्पछ यह सुनिश्चित है। किन्तु ऊपर १३ वीं शताब्दीके मालूम होता है कि उक्त काव्यग्रन्थमें 'विप्रलम्भ विरह विद्वान पं० श्राशाधर जीके 'राजीमती विप्रलम्म या का वर्णन किया गया है। विप्रलम्भ और परित्याग परित्याग' नामके प्रन्थका उल्लेख किया गया है शब्द भी एकार्थक है। यदि यह कल्पना ठीक है तो जिसके देखने की प्रेरणा की गई है। इस प्रन्योल्लेख प्रस्तुत प्रन्थका रचना काल १३ वीं शताब्दीके विद्वान से इनका समय नेरहवीं शताब्दीके बानका सम्भवत: पं० श्राशाधर जीके बादका हो सकता है। विक्रमकी १४ वीं शताब्दीका जान पड़ता है। इन सब प्रन्थोल्लेखोंसे यह स्पष्ट जाना जाता है । वीरसेवा मन्दिर ता०१४-२-४८ कि प्रन्थकर्ता उल्लिखित विद्वान् प्राचार्योंका भक्त और ... उनकी रचनाओंसे परिचित तथा उन्हीं के द्वारा मान्य - इति दण्डिवामनवाग्भटादिप्रणीता दशकाव्यगुणाः। दिगम्बरसम्प्रदायका अनुसर्ता अथवा अनुयायी था। वयं तु माधुयोजप्रसादलक्षणास्त्रीनेव गुणा मन्यामहे, शेषस्तेअन्यथा समन्तभद्राचार्यके उक्त स्तवन पद्यके साथ प्वेवान्तर्भवन्ति । तद्यथा-माधुये कान्ति: सौकुमार्य च, भक्ति एवं श्रद्धावश 'पागम और प्राप्तवचन' जैसे श्रीजसि श्लेपः समाधिरुदारता च । प्रमादेऽर्थव्यक्तिः समता विशेषणोंका प्रयोग करना सम्भव नहीं था। चान्तर्भवति । काव्यानुशासन २, ३१ महात्मा गान्धीके निधनपर शोक-प्रस्ताव ! "महात्मागांधीको तेरहवी दिवसपर २२ फरवरी सविशेषरूपसे संलग्न, उसकी महाविभूति महात्मा १६४८ को वीरसेवामन्दिर में श्रीमान पण्डित जुगल- मोहनदास गांधीकी ३० जनवरीको होनेवाली निर्मम किशोरजी मुख्तार सम्पादक अनेकान्त' की अध्यक्षता हत्याका दुःसमाचार सुना है और साथही यह मालूम में शोक-सभा की गई जिसमें विविध वक्ताओंने हुआ है कि उसके पीछे कोई भारी पडयन्त्र है जो गान्धीजीके प्रति अपनी हार्दिक श्रद्धांजलियां प्रकट की देशमें फासिष्टवादका प्रचार कर तबाह व बर्बाद और उपस्थित जनताने निम्न शोक-प्रस्ताव पास करना चाहता है तबसे बीरसेमामन्दिरका, जो कि किया रिसर्च इन्स्टियूट और साहित्य सेवाके रुप में जैन विश्वके महान् मानव, मानव समाजके अनन्य समाजकी एक प्रसिद्ध प्रधान संस्था है, सारा परिवार सेवक अहिंसा-सत्यके पुजारी और भारतके उद्धारमें दुःखसे पोरित और शोकाकुल है और अपनी उस
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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