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चतुर्थ वाग्भट्ट और उनकी कृतियां
[ लेखक-पण्डित परमानन्द जैन शास्त्री]
ग्भट नामके अनेक विद्वान हाए हैं।
और सकलशास्त्रों में पारङ्गत तथा सम्पूर्ण लिपि उनमें अष्टाङ्गहृदय नामक वैद्यक भाषाओंसे परिचित थे और उनकी कीर्ति समस्त कर्षिप्रन्थके कर्ता वाग्भट सिहगुमके पुत्र
कुलोंके मान, सन्मान और दानसे लोकमें व्याप्त हो और सिन्धुदेशके निवासी थे। र
रही थी। और मेवाड़ देशमें प्रतिष्ठित भगवान नमिनिर्वाण काव्यके कर्ता वाग्भट
पाश्वेनाथ जिनके यात्रा महोत्सवसे उनका अद्भुत " प्राग्वाट या पोरवाड़वंशके भूषण
यश अखिल विश्वमें विस्तृत हो गया था। नेमितथा छाहड़के पुत्र थे। और वाग्भट्टालङ्कार नामक
कुमारने राहडपुर में * भगवान नेमिनाथका और ग्रन्धके कर्ता वाग्भट सोमश्रेष्टोके पुत्र थे। इनके अति
नलोटकपुरमें वाईस देवकुलकाओं सहित भगवान रिक्त वाग्भट नामके एक चतुथ विद्वान और हए हैं
आदिनाथका विशाल मन्दिर बनवाया था + I नेमिजिनका परिचय देने के लिये ही यह लेख लिखा
कुमारके पिताका नाम 'मक्कलप' और माताका नाम जाता है।
महादेवी था, इनके राहड और नेमिकुमार दो पुत्र
थे, जिनमें नेमिकुमार लघु और राहड ज्येष्ठ थे। ये महाकवि वाग्भट नेमिकुमारके पुत्र थे; व्याकरण
नेमिफुमार अपने ज्येष्ठ भ्राता गहडके परमभक्त थे छन्द, अलङ्कार, काव्य, नाटक, चम्प और साहित्य के
__ और उन्हें श्रादर तथा प्रेमको दृष्टिसे देखते थे। ममन थे; कालीदाम, दण्डी, और वामन श्रादि
बाद राहडने भी उसी नगर में भगवानआदिनाथके मन्दिर की
। विद्वानोंके काव्य-ग्रन्थोंसे खुब परिचित थे,और अपने
दक्षिगा दिशामें वाईस जिन-मन्दिर बनवाए थे, जिस समय के अखिल प्रज्ञालुओंमें चूड़ामणि थे, तथा नूतन
से उनका यशरूपी चन्द्रमा जगत में पूर्ण हो गया काव्य रचना करने में दक्ष थे। * इन्होंने अपने पिता क्या हो गया था। नेमिफुमारको महान् विद्वान् धर्मात्मा और यशस्वी
कवि वाग्भट्ट भक्तिरसके अद्वितीय प्रेमी थे, बतलाया है और लिखा है कि वे कान्तेय कुलरुपी उनकी स्वोपन काव्यानुशासनवृत्तिमें आदिनाथ कमलों को विकसित करने वाले अद्वितीय भास्कर थे।
भगवान पानाथका स्तवन * नव्यानेकमहाप्रबन्धरचनाचातुर्यविस्फूजित
-जान पड़ता है कि 'राहहपुर' मेवाड़देशमें ही कहीं स्फारोदारयशः प्रचारमततव्याकीर्ण विश्वत्रयः । नेमिकमारके ज्येष्ठ भ्राता राहडके नामसे बसाया गया है। श्रीमन्न मिकुमार-सूरिरविलप्रज्ञालुचूड़ामणिः।
+ देवो, काव्यानुशामनटीकाकी उत्थानिका पृष्ट१ काव्यानामनुशासनं वरमिदं चक्र कविर्वाग्भटः ।।
नाभयचैत्यसदने दिशि दक्षिणस्या। छन्दोनुशासनको अन्तिम प्रशस्तिम भी इस पद्यके ऊपर द्वाविशति विदधता जिनन्दिराणि । के तीन चरण ज्योंके त्यो रूपमे पाये जाते हैं। सिर्फ चतुर्थ मम्ये निजाग्रजवर प्रभु राइडस्य । चरण बदला हुश्रा है, जो इस प्रकार है
पूर्णाकृतो जगति येन यशः शशाङ्कः। 'छन्दः शास्त्रमिदं चकार मुधियामानन्दकृटाग्भट:'।
काव्यानुशासन पृष्ठ ३४