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अनेकान्त
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गया है। जिससे यह सम्भव है कि इन्होंने किसी छन्दोंका कथन विस्तारसे किया गया है। अतएव स्तुति प्रन्थकी भी रचना की हो; क्योंकि रसोंमें रति यहांपर नहीं कहा जाता *। (शृङ्गार) का वर्णन करते हुए देव-विषयक रतिके उदाहरणमें निम्न पद्य दिया है
छन्दोनुशासननो मुक्त्यै स्पृहयामि विभवः कार्य न सांसारिकः, .
जैनसाहित्य में छन्दशास्त्रपर 'छन्दोनुशासन, + स्वयम्भूछन्द, * छन्दोकोप, * और प्राकृतपिङ्गल*
आदि अनेक छन्द ग्रन्थ लिखे गये हैं। उनमें प्रस्तुत
छन्दोनुशासन सबसे भिन्न है। यह संस्कृत भाषाका कान्तारे निशिवासरे च सततं भक्तिर्ममान्तु त्वयि। छन्द ग्रन्थ है और पाटनके श्वेताम्बरीय ज्ञानभंडारमें इस पद्यमें बतलाया है कि हे
म मुक्तिपुरा अयं च सर्वप्रपञ्चः श्रीवाग्भटाभिधस्वोपज्ञ छन्दोकी कामना नहीं करता और न सांसारिक कार्योके नशामने प्रपञ्चत इति नात्रोच्यते।' लिये विभव (धनादि सम्पत्ति) को ही आकांक्षा करता + यह छन्दोनशामन जय फीति के द्वारा रचा गया है। इसे ; किन्तु हे स्वामिन हाथ जोड़कर मेरी यह प्रार्थना
उन्होंने माइन्य, पिगल, जनाश्रय, सेतव, पूज्यपाद (देवनंदी) है कि स्वपमें, जागरणमें, स्थितिमें, चलनेमें दुःख- प्रौर जयदेव श्रादि विद्वानांके छन्द ग्रन्योको देखकर बनाया सुखमें, मन्दिरमें, वनमें, रात्रि और दिनमें निरन्तर गया है। यह जयकीर्ति श्रमलकीर्तिके शिष्य थे। सम्बत् आपकी हो भक्ति हो।
११६२ मे योगसारकी एक प्रति अमलकीर्तिने लिखवाई थी इसी तरह कृष्ण नील पोका वर्णन करते हुए एममे जयकीति १२वीं शताब्दीके उत्तरार्ध और १३ वी राहडके नगर और वहां प्रतिष्ठित नेमिजिनका शता-दीके पूर्वाधिक विद्वान जान पढ़ते हैं। यह ग्रन्थ स्तषन-सूचक निम्न पद्य दिया है
जैमलमेर के श्वनाम्बर्गय ज्ञानभण्डारमे सुरक्षित है। देखो सजलजलदनीलाभाति यस्मिन्वनाली,- गायकवाड़ संस्कृत मागजम प्रकाशिन जैमलमर भाण्टागणिय मरकतमणिकृष्णो यत्र नेम जिनेन्द्रः। प्रत्यागा रची।
ॐ यद अपभ्रशभापाका महत्वपूर्ण मौलिक छन्द ग्रन्थ विकचकवलयालि श्यामलं यत्सराम्भ:- मका सम्पादन एच. दो पलं करने किका है । दग्या प्रमुदयति न चांस्कांस्तत्पुरं राहडस्य ॥ बम्बईयूनिवर्सिटी जनरल मन् १६३३ तथा रायल
इस पद्यमें बतलाया है कि जिसमें वन-पक्तियां एशियाटिक मामा जनरल मन् १६३५ मजलमेघक समान नीलवणे मालूम होती हैं और यह रत्नशेग्मररिद्वारा रचिा प्राकृतमायाका जिस नगरमें नीलमणि सहश कृष्णवर्ण श्री नेमि हन्दकोश है। जिनेन्द्र प्रतिष्ठित हैं तथा जिसमें तालाब विकसित *पिंगलाचायके प्राकृतपिगलको छोड़कर, प्रस्तुत कमनसमूहसे पूरित हैं वह राहडका नगर किन किनको पिंगल ग्रन्थ श्रथवा 'छन्दो विद्या' कविवर राजमलकी प्रमुदित नहीं करता।
कृति हैं जिसे उन्होंने श्रीमालकुलोत्पन्न वणिकपति राजा महाकवि वाग्भट्टकी इस समय दो कृतियां उप- भारमल्ल के लिये रचा था। दम प्रन्धमे छन्दोका लब्ध हैं-छन्दोनुशासन और काव्यानुशासन । उनमें निर्देश करने हर राजा भारमल के प्रसाा यश और वैभव छन्दोनुशासन काव्यानुशासनसे पूर्व रचा गया है। यादि का अच्छा परिचय दिया गया है। इन छन्द ग्रन्योंके क्योंकि काव्यानुशासनकी स्वोपज्ञवृत्तिमें स्वोपज्ञ- अतिरिक्त छन्दशास्त्र वृत्तरत्नाकर और श्र नबोध नामके छन्दोनुशासनका उल्लेख करते हुए लिखा है कि उसमें लन्द ग्रन्ग और है जो प्रकाशित हो चके हैं।