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कथा-कहानी
करनीका फल [लेखक:-अयोध्याप्रसाद गोयलीय]
["अनेकान्त"के दसरे और तीसरे वर्ष में इस स्तम्भके नीचे ऐतिहासिक, पौराणिक और मौखिक सुनी हुई ऐसी छोटी-छोटी शिक्षाप्रद और मनोरञ्जक कहानिया दी जाती रही हैं, जो प्रवचनोमें उदाहरणका काम दे सके। इस तरहकी छोटी-छोटी लाखों कहानिया लोंगोंके हृदयोंमें बिखरी पड़ी हैं, जो अक्सर हमारे घरोंमें सुनाई जाती है और सीने बसीने चली पारदी हैं । परन्तु कागजों में लिखी नहीं मिलती। ये कहानिया हमारे देशकी अमूल्य निधि हैं। ये कल्पित उपन्यासों
और कहानियोंसे अधिक रोचक और हृदयस्पर्शिनी होती हैं । ऐसी छोटी-छोटी कहानिया भेजने वालोंका अनेकान्त स्वागत करेगा। कहानियों की आत्मा चाहे ऐतिहासिक या पौराणिक हो अथवा सुनी सुनाई हो, परन्तु उसकी भाषाका परिधान स्वयं लेखकका होना चाहिए । नमूनेके तौरपर हम एक कहानी दे रहे हैं, यद्यपि वह कुछ बड़ी होगई है, अगले अंकोंमें छोटी २ भी देनेका यत्न किया जायगा।
-गोयलीय
क-एक करके पाठ पुत्र-वधुओंके बिलखतोंको देखकर राशनिक अफसर बैठा रहता है। भरी जवानी में विधवा हो जानेपर कुछ दिनों बाद गांव में प्लेगकी बान्धी आई तो भी वृद्धकी आंखोंमें आंसू न आये। उसमें उसका एकमात्र पौत्र भी लुढ़क गया। वृद्धके साम्यभावसे सब कुछ सहन करता धैर्यका बान्ध टूट गया, उसने अपना सर दीवारसे
रहा। अपने हाथों आग देकर इस दे मारा। नारदमुनि अकस्मात् उधरसे निकले तो
* तरह घर आन बैठा जिस तरह वृद्धको टकराते हुये देखकर उसी तरह खड़े हो गये, लार्ड वेवल बङ्गालके अकाल पीड़ितोंको एड़ियाँ जिस तरह अपहृत अबलाओंके धैय बन्धानेको नेता रगड़ते-रगड़ते देखकर दिल्ली आ बैठते थे। पहुंच जाते हैं। या भाग और पानीमें छटपटाते
गाँव के कुछ लोग उसके धैर्यको प्रशंसा उसी तरह मनुष्योंको देखने न्यूज-रिपोटर रुक जाते है। फरते, जिस तरह आज काश्मीर महाराजके साहसकी विपद् प्रस्तको देखकर सूखी सहानुभूति प्रकट कर रहे हैं। कुछ लोग बन हृदय कहकर उसका करने में लोगोंका बिगड़ता ही क्या है? जो कल उपहास करते। श्मशान में जिन्हें शीघ्र वैराग्य घेर दहाड मारकर रोते देखे गये है, वे भी उपदेश देने के लेता है और फिर घर आकर सांसारिक कार्यो में उसी इस सुनहरी अवसरसे नहीं चूकते। फिर नारदमुनि तरह लिप्त हो जाते हैं, जिस तरह पं० नेहरू मुस्लि- तो आखिर नारदमुनि ठहरे! जिस प्रकार आयमलीगी आक्रमणोंको भूलकर व्यस्त हो जाते हैं। समाजका मक्केमें वैदिक धमका मण्डा फहरानेका ऐसे लोग उन्हें जीवन्मुक्त और विदेह कहनेसे न चूकते अधिकार सुरक्षित है या हसननिज्ञामीको सात करोड़ और छिद्रान्वेषी उन्हें मनुष्य न मानकर पशु समझते। हरिजनोंको मुस्लिम बनाने के हकूक हासिल है।
बात कुछ भी हो, एक-एक करके व्याहे-त्याहे ८ ऐसे ही कर्तव्यभारके नाते कण्ठमें मिसरी घोलते हुये लड़के दो वर्षमें उठ गये। उनकी स्त्रियोंके करुण- नारदमुनि बोलेक्रन्दनसे पड़ोसियोंको रुलाई आ जाती, पर वृद्ध "बाबा ! धैर्य रखो, रोनेसे क्या लाभ ?'' खटोलेपर चुपचाप उसी तरह बैठा रहता जैसे भूखसे वद्धने अजनबीसी आवाज सुनी तो अचकचा कर