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किरण २]
अद्भुत बन्धन
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फिर श्री माधोप्रसादजी बिड़लाने अपने उन बोरे बाजारके दलालोंकी भी एक अलग सोममित्रोंके नामका उल्लेख किया, जिनसे सहायताके नाथ-मन्दिर-कोष-सबकमेटी बनाई गई जिसमें निम्न वचन उन्होंने प्राप्त कर लिये हैं और उपस्थित सज्जनों लिखित सदस्योंके नाम हैं-श्रीयुत परमेश्वरीलालजी से चन्दा लिखवानेकी अपील की। ।। डेढ़ लाख गुप्ता, जानकीदासजी बेरीवाला, बद्रीप्रसादजी परसरुपयेसे अधिककी सहायता सोमनाथ मन्दिर-कोषके रामपुरिया, बनारसीलालजी फमारनिया, हरिकिसन लिये हेशियन बोराके व्यापारियोंसे प्राप्त हो चुकी है। जी आचार्य। इस सब-कमेटीको भी अन्य सदस्य चन्दा लिखाने के लिये एक सोमनाथ मन्दिर-कोष- लेनेका अधिकार है। समिति भी बनाई गई जिसमें निम्नलिखित सदस्योंके हमें पूर्ण विश्वास है कि सभी हिन्दु भाई इस नाम हैं-श्रीयुत माधोप्रसादजी बिड़ला, केसरदेवजी कोपमें प्रचुर सहायता प्रदानकर अखण्ड-हिन्दु जालान, देवीप्रसादजी गोयनका, छोटेलालजी कानो- (राष्ट्र) को सुदृढ़ बनायेंगे। डिया, रामसहायमलजी मोर, जयलालजी बेरीवाला, अन्तमें हम श्री बिड़ला बन्धुओंको धन्यवाद देते भागीरथजी कनोडिया, बिलासरायजी भिवानीवाला, हैं कि इस हिन्दु जागरणके कायमें वे सबसे आगे छोटेलालजी सरावगी। इस सब कमेटीको अन्य आकर इस फण्डकी सफलताके लिये तन, मन, धनसे सदस्य लेनेका अधिकार है।
पुणे प्रयत्नशील हुये हैं।
अद्भुत बन्धन ! बता बता रे ! बन्दो ! मुझको,
बता ! बनाई किसने तेरी, बांधा किसने आज तुझे ?
यह अटूट अति दृढ बेड़ी ? बोला-"मेरे स्वामीने हो,
बोला बंदी-"बड़े यत्नसे, ___ कसकर बांधा आज मुझे ॥
__ इसको मैने स्वयं घड़ी॥ सोचा था धन-बल ही से मैं,
सोचा था करलेगा बन्दी, ला सकू सारा संसार ।
जगको मेरा प्रबल प्रताप । और धरा धन निजी कोष वह,
सदा भरूंगा शान्ति-सहित मैं, था जिसपर नृपका अधिकार ।।
एकाकी स्वाधीनालाप ॥ निद्राके हो वशीभूत मैं,
अतः रात दिन अथक परिश्रम, लेट गया उस शय्यापर ।
करनेका सब भार लिया। जो मेरे मालिककी प्यारी
भट्टी और हथोड़ों द्वारा, थी मनहर अति ही सुन्दर ।।
बेड़ीको तैयार किया । ज्ञात हुई मुझको सब बातें,
कडियां पूर्ण अटूट हुई सब, जब निद्रासे जाग चुका।
सभी कार्य सम्पूर्ण हुआ। हा ! मैं बन्दी बना हुआ हूं,
ज्ञात हुआ इनहीने मुझको, अपने ही कोशालयका ॥"
___ हा ! बन्धनमें बांध लिया। [ रचयिता-रवीन्द्रनाथ ठाकुर, अनुवादक-अनूपचन्द जैन न्यायतीर्थ ]