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अनेकान्त
[ वर्ष ।
स्त्री-बच्चोंको कैद करनेका हुक्म दिया, और उनकी इसपर उसके उमरावोंने महमूदको सलाह दी कि एक देव मूर्तियोंको खण्डित किया। और आगे बढ़कर मूर्तिको तोड़कर सोमनाथकी दीवारोंसे मूर्ति-पूजा भूवारा (नहेर वाला अनिहलवाड़ पट्टन) पहुंचा। विलुप्त नहीं की जा सकती। अत: मूर्तिको तोड़नेसे उस समय वहांके राजा भीमदेव प्रथम थे। वहां पर कोई लाभ नहीं होगा। पर इतना प्रचुर धन मिलनेसे
मदने अपना बड़ा बनाया। यहांसे आगे बढ़ते मुसलमानोंको खैरात देकर सवाब हासिल किया जा हवे और मागमें पड़ने वाले मन्दिरों और मर्तियोंको सकता है। इसपर महमूदने कहा कि बात तो कुछ नष्ट करते हवे, और लूट पाट करते हुवे वह सोमनाथ ठीक है, पर वह इतिहासमें “बुतशकुन' कहलाना के निकट बृहस्पतिवार, ६ जनवरी सन् १००६ को चाहता है, "बुतफरोश" नहीं कहलाना चाहता, और पहुंचा। सोमनाथमें उसने एक सुदृढदुग देखा जिसकी मूर्तिको भङ्ग कर दिया। प्राचीरके मस्तक तक समुद्र तरङ्गे उछलती थीं। मूर्ति भङ्ग करते ही पोले लिङ्गों से होरे, मोती,
हिन्दु, दशकोंकी नाई, दुर्गप्रवरपर चढ़कर पन्नादिकी ढेर रत्न राशि निकल पड़ी। मुसलमानी फौजको देखने लगे कि किस तरह बावा इस मन्दिरसे जो धन राशि मिली उसका अनुमान सोमनाथ मुसलमानोंको नष्ट करते हैं। जैसी कि उनकी इसीस लगाया जा सकता हैं कि लूटका कुछ माल धारणा थी। मुसलमानी फौजने दुगकी प्रचीरोंपर उमरावों और सैनिकों में वितरण किया गया। जिसका भयङ्कर तीर वर्षा की, और "अल्लाह-हो-अकबर" का पांचवां हिस्सा महमूदको मिला जिसकी कीमत दो नारा लगाते हवे किलेकी दीवारोंपर चढ गये। करोड़ दीनार थी। महमूदकी सोनेकी दीनारका वजन आक्रमण होते ही हिन्दुओंने मृत्युको हथेलीपर रखकर ६४८ प्रेन था। उस परिमाणसे उसका मूल्य एक घोर युद्ध किया, और शत्रके दांत खट्टे कर दिये। करोड़ पांच लाख पाउंड होता है अर्थात् १५ करोड़ सारे दिनके घमासान युद्ध के बाद हिन्दुओंने मुसल- ७५ लाख रुपये हुवे। (देखो "The life and मानोंको भगा दिया, और मुसलमान आतताइयोंने Times of Sultan Mahmud of Ghazni" अपने शिविरों में शरण ली। दूसरे दिन मुसलमान ने by Mohamed Nazin, Cambridge 1931, जबरदस्त धावा किया, और हजारों हिन्दुओंको काट Page 118) यहां पाउड १५) रुपयेका गिना गया कर मन्दिर में घुस गये, फिर भी हिन्द योद्धाओंने रात है और सोना २४) रुपये तोला लगाया गया है। होने तक दुश्मनका जोरोंसे मुकाबिला किया। जो अलबरूनी इतिहासकारने (सन् १०३०) में लिखा हिन्दु नोकाओंमें चढ़कर प्राणरक्षाके लिये समुद्रपथसे है कि महमूदने लिङ्गक ऊपरके भागको तोड़ दिया रवाना हुवे, उन्हें महमूदने अपनी सेना द्वारा कत्ल और बाकीका हिस्सा अपने नगर ग़ज़ नीमें ले गया। कराकर अथवा समुद्र निमग्न करा कर, अपना कुत्सित और वहां राजनोकी जामा मसजिदके द्वारपर लगवा कार्य सफल किया। इस मन्दिरके समीप ५०,००० दिया, ताकि मुसलमान नमाजी मसजिदमें घुसनेसे हिन्दुओंने अपने आराध्य देवकी रक्षा में प्राण दिये। पहले अपने पांवकी धूलि उमसे पांछ सकें।
७ जनवरी सन् १०२६ को जब महमूद मन्दिरके साथ ही महमद सोमनाथ-मन्दिरको चन्दनअन्दर पहुंचा तो वहां पांच गज़ ऊंचा शिवलिङ्ग निर्मित दरवाजोंको जोड़ियां भी उखाड़कर ले गया। देखा. जिसका दो गज़ भाग भूमिमें था और तीन पाठकोंको मालूम होगा कि आठ शताब्दी बाद लाडै गज़ ऊपर था। जब इस लिङ्गको खण्डित करने के निंबराने जब अफगानिस्तानसे बदला लेने के लिये लिये हथोड़े उठाये गये तो ब्राह्मण पुजारियोंने महमद पलटन भेजी, तो उसके जनरलको सोमनाथ मन्दिरके के साथियोंसे कहा कि यदि वे मूर्तिको खण्डित न करें दरवाजे गजनीसे भारत लौटा लानेका श्रादेश दिया तो बदलेमें करोड़ोंका सोना दिया जा सकता है। था जिससे कि हिन्दु प्रसन्न हों। किन्तु वह जनरल