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________________ किरण २ । सोमनाथका मन्दिर - ग़ज़नवीके सन् १०२५ के हमलेके कारण बहुत प्रसिद्ध शिखरपर चौदह सुवर्ण कलश थे जो सूर्य प्रकाशमें है। इसलाम धर्मकी कुत्सित शिक्षाके प्रभावसे महमूद जगमग २ करते थे और दूरसे दिखाई पड़ते थे। गज़नवीने मूर्ति-पूजाको मिटानेका म दृढ विशाल शिवलिङ्गपर शृङ्गारके लिये बहुतसे रत्नसङ्कल्प किया। और हिन्दु मन्दिरोंमेंसे प्रचुर धनराशि जटित आभूषण रहते थे। के उपलब्ध होनेके जघन्य लालचने इसको बिलकुल महमदका आक्रमणअन्धा बना दिया। ___सोमनाथ के मन्दिरका धारावाहिक इतिहास अभी से प्राचीन मुसलमान लेखकोंने इस मन्दिरके संबन्ध तक सन्तोषप्रद नहीं लिखा गया है। इस मन्दिरको । में बहुत कुछ लिखा है। उन लेखोंके आधारपर, स्थापना और ख्याति शायद बल्लभी राजाओंके। जिनको अंग्रेज इतिहास-वेत्ताओंने संशोधित किया, समयसे हुई है (सन ४८० से सन ७६४ तक)। - यह सारा लेख लिखा गया है। * इस मन्दिरके दर्शनार्थ दूर २ से हिन्दु यात्री श्राते थे। , जूनागढ़में मक्काका एक फकीर रहता था जिसका इस मन्दिरके निर्वाह के लिये १०,००० ग्राम बल्लभी नाम मंगलूरी शाह था (जिसे हाजी महमूद भी कहते थे।) इसी फकीरने बार बार महमूदको सूचना दी और अन्य राजाओद्वारा दान दिये गये थे। और कि सोमनाथके मन्दिरमें अथाह धन राशि है, और उस समय इस मन्दिर में इतनी प्रचुर रत्न राशि थी यहाँकी मूर्ति इस्लाम धर्मको चुनौती है। महमूद कि किसी भी बड़ेसे बड़े राजाके पास उसका दशांश गजनवीको इसी फकीरने इस मन्दिरके विषय में भी नहीं था। सोमनाथकी सेवाके लिये २००० ब्राह्मण नियुक्त आवश्यक सब सूचनाएँ दी। धनकी लालसासे प्रेरित होकर, महमूद ग़ज़नवी थे। इस मन्दिरके भीतर २०० मन सोनेकी जन्जीर ने सोमनाथ मन्दिरपर आक्रमण करनेका निश्चय से एक विशाल घड़ाबल लटकती थी, जिसको निश्चित धत किया और १२ अक्तूबर सन् १०२५ में महमूद समयोंपर बजाकर भक्तोंको पूजाके लिये आह्वान ग़ज़नवी राजनी (अफगानिस्तात स्थित) से ३०,००० किया जाता था। यात्रियोंके मुण्डनादिके लिये इस चुने हुवे तुके नौजवान घुड़सवारोंको हथियारोंसे पूरा मन्दिर में ३०० क्षौरकार (नाई) थे। ५००'नतेकियां, सुसज्जित करके मुलतानकी ओर रवाना हुआ, और और ३५० सङ्गीत विशारद और सुनिपुण बाधकार मध्य नवम्बर में मुलतान पहुंचा। मुलतान में जब उसे देव-सेवाके लिये नियुक्त थे जिनका निर्वाह पूजाके मालूम हुआ कि मुलतान और सोमनाथके बीच में निमित्त अर्पित गांवों और राजागरण तथा यात्रियों के एक विस्तीर्ण निजैल तृण रहित मरुभूमि है, तो उसने दानपर आधारित था। यद्यपि सोमनाथसे श्रीगङ्गाजी हर सवारके साथ दो दो ऊंट पानीसे लदे हुवे लगा १२०० मील दूर रही हैं, तथापि अभिषेकके लिये दिये। और उनके अतिरिक्त २०,००० ऊंटोंपर नित्य गङ्गाजल लान के लिये यात्री नियुक्त थे। महमूद . खाद्य पदार्थ और पानी लेकर सोमनाथकी ओर बढ़ा। द्वारा ध्वस्त सोमनाथका यह मन्दिर ईट और काष्ठका मागमें मुढेर या मुढेरा पड़ा जहां २०,००० बना हुआ था, जैसी कि उस समय गुजरातकी प्राचीन हिन्दुओंने महमूदको आगे बढ़नेसे रोकने के लिये मन्दिर निर्माण प्रणाली थी। कठिन युद्ध किया, पर महमूदको रोक न सके। इस मन्दिरमें ५६ सागवानके विशाल स्तम्भ थे ___ जब वह अजमेर पहुंचा तो वहां के लोगोंने इसका जिनपर होरा माणिक पन्नादि रत्न जड़े हवे थे। ये सामना नहीं किया तो भी महमूदने कत्लेआम, लूट, स्तम्भ भारतके विविध राजाओं द्वारा निर्मित किये सा गये थे और उनके नाम उन उन स्तम्भोंपर अङ्कित * देवा, (१) इवनी द-अमीर (सन् ११२१, (२) मीर थे। यह मन्दिर तेरह मञ्जिल ऊँचा था, और इसके खौडका गैजत उस्मफा (मन् १४६४)।
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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