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________________ ६६ अनेकान्त [ वर्ष - - मठ, ६००० बौद्ध भिक्षु, और सैकड़ों देव मन्दिर थे। रानियां सती हुई गें। यहां एक गोपी तालाब है, और इसी प्रदेशमें लोक-प्रसिद्ध प्रभास-पट्टनका जिसकी मृत्तिकाका रामानन्दी वैरागी, और दूसरे सोमनाथ मन्दिर है।" वैष्णव भक्त मस्तकपर लगाते हैं और इस मृत्तिकाको सोरठ देश (सौराष्ट्र) हिन्दुओंके लिए सदा ही गोपी-चन्दन कहते हैं। आकर्षक रहा है। उनके लिए यह देश भमिपर स्वगके गिरनार पर्वतसे ४० मील दक्षिणकी ओर सोमसमान है। यहां निर्मल-नीर-बाहिनी नदिया है, नाथका प्राचीन मन्दिर समुद्र के पूर्वी कोनेपर अब प्रसिद्ध(जातिके) घोडे मिलते हैं और यहांको रमणियां तक स्थित है। इस मन्दिरकी दीवाराके कोई चिन्ह सुन्दरता लिए प्रसिद्ध है। किन्तु इन सबसे ऊपर यह नहीं मिलते मन्दिरकी नींवके आस-पासको भूमिको पवित्र स्थान है क्योंकि जैनियों के लिए यह तीर्थकर समुद्रको तरङ्गोंसे बचाने के लिये एक सुदृढ़ दीवार आदिनाथ और अरियनेमि (कृषणके चचेरे भाई)की बनी हुई है। दीवारोंकी खाली जगहको पत्थरोसे भर भूमि है और हिन्दुओं के लिए महादेव और श्रीकृष्ण कर मसजिद बना ली गई है। वर्तमान मन्दिरका जो का देश है। अवशिष्ठांश है वह मूलत: गुजरातके महाराज कुमार पाल द्वारा निर्मित किये गये मन्दिरका है। जिसका सोमनाथ पट्टन निर्माण सन् ११६८ में हुवा था । जिस नगर में सोमनाथमन्दिर है उसे पटन, पट्टन सोमनाथ मन्दिरपाटन प्रभासपट्टन, देवपट्टन, सोमनाथ पट्टन, रेहवास पश्चिमी भारतके मन्दिरोंमें, जिनकी संख्या अगपट्टन, शिव पट्टन और सोरठी-सोमनाथ भी कहते हैं। शित है. हिन्द धर्म के समस्त इतिहास में काठियावाड़ के इस अति प्राचीन नगर में अतीत गौरवके अनेकों चिह्न दक्षिणी सागर तट पर स्थित भेरावल बन्दर के निकट मिलते हैं यहां उजड़े हुए प्राचीन सोमनाथमन्दिर और सोमनाथ पटनका सोमनाथ मन्दिर सर्व-प्रसिद्ध है। आधुनिक सोमनाथ मन्दिरके अतिरिक्त अन्य भग्नाव- यह सर्व भारतमें प्रसिद्ध १२ ज्योतिलिडों में से प्रथम शेषों में जामा मस्जिद भी है। यह मस्जिद एक प्राचीन है । और न ही किसी अन्य मन्दिरका इतिहास विशाल सूर्य मन्दिरको जो इसी स्थानपर पहले था, इतना प्राचीन है जितना कि सोमनाथका । अनेकों ही नष्ट कर. मन्दिरके सामानसे बनाई गई है। इसी जामा बार इसकी दीवारोंने युद्ध के परिणामको देखा, और मस्जिदके थोड़ी दूर उत्तरमें पार्श्वनाथ (जैन तीर्थकर) कितनी ही बार पिशाची आक्रमणकारियों द्वारा यह का एक बहुत पुराना मन्दिर था जो आजकल एक मन्दिर धराशायी कर दिया गया, परन्तु ज्यों ही शत्रुरहनेके मकानके रूपमें व्यवहृत होरहा है। इस नगरके ने पीठ मोड़ी त्यों ही एक अमर प्राणीकी तरह इसकी पश्चिममें ( पट्टन और बेराबलके बीच में ) माइपुरी दीवारें फिर खड़ी हो गई। शङ्करको ध्वजा फिर मसजिद है जो कि एक मन्दिरको मसजिदके रूप में आकाशमें फहराने लगी, और घण्टा शङ्खों और डमरू रूपांतरित कर दी गई प्रतीत होती है। यहां भाटकुण्ड के शब्दसे शिवकी पूजा प्रारम्भ होती गई। भी है जहां, कहा जाता है, भगवान श्रीकृष्णने शरीर इतिहास में सोमनाथका मन्दिर मुख्यत: महमूद छोड़ा था। इस नगरके पूर्वकी ओर तीन सुन्दर सरिताओंका त्रिवेणी सङ्गम है, जो भगवान श्रीकृष्ण के * १२ ज्योतिलिङ्गोंके नाम-श्री शैल (तिलङ्गना) शरीरका दाह-संस्कार-स्थान होने के कारण पवित्र है का मल्लिका जुन, उज्जैनका महाकाल, देवगढ़ (विहार) का यह सारा स्थान भगवान श्रीकृष्णकी लीलाओंसे वैद्यनाथ, रामेश्वरम् (दक्षिणभारत) का रामेश्वर, भीमानदीके सम्बन्धित है। इस स्थानको "वैराग्य क्षेच' कहते मुहानेपर भीम शङ्कर, नासिकका त्रयम्बक, हिमालयका हैं, क्योंकि यहां पर श्रीकृष्णको रुक्मणी श्रादि महा- केदारनाथ, बनारसके विश्वश्वर, गौतम (अज्ञात)।
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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