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________________ किरण २] सोमनाथका मन्दिर ६५ हजही अनुमारिकाकी राजदीपर शिलालेख (सन ४५७ का) छोड़ा है जिससे पता हमारा सम्बन्धचलता है कि इन महाराजने भी मील सुदर्शनको जनागढसे हमारा न केवल राजनैतिक सम्बन्ध जिसका बांध फिर टूट गया था, मरम्मत करवाई ही है, बल्कि इससे कहीं अधिक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक थी। इन तीन उपरोक्त शक्तिशाली राजाओंने जहां तथा धार्मिक सम्बन्ध भी है। अपनी धर्म-लिपि और कीर्ति-द्योतक लेख शिलाश्रॉपर सौराप्रका दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्वीय प्रदेश ही अंकित करना उचित समझा, उस स्थानका उस समय विशेष कर पौराणिक युगके इतिहासका क्रीडास्थल कितना अधिक महत्व होगा, इसका सहज हो अनुमान रहा है। यहीं पर भगवान श्रीकृष्णने मथुरासे आकर किया जा सकता है। द्वारिकाकी रचना की, यहीं पर यादवों सहित अनेक गुप्त वंशके पीछे बल्लभी राजाओंने सौराष्ट्र पर लीलाएँ की. और यहींपर श्रीकृष्णने मदोन्मत्त विशाल अपनी सत्ता जमाई। ये शिव-भक्त थे। बहत सम्भव यादव कुलको अपनी लीलासे विनाश कराया, और है कि सोमनाथ मन्दिरको स्थापना बल्लभी राजाओंके यहीं पर प्रभास-पटन नामक पवित्र नगरके निकट शासनकाल (सन् ४८० से ७६४) में हुई हो। इन अमावधानोसे जरत्कुमार (व्याध)-द्वारा आहत होकर राजाओं के स्वयं शिव-उपासक होने के कारण इस अपनी जीवन-लीला समाप्त की थी। मंदिरकी विशेष ख्याति इन्हीं के समयमे हुई हैं। इन्हीं (१) बल्लभी, राजाओंने सोमनाथ-मन्दिरके निर्वाह के लिये सहस्रों (२) मूल द्वारिका (प्राचीन द्वारिका) जो भगवान ग्राम दान दिये। गुजरातके अन्य राजाओंने भी सहस्रों । सहस्रा कृष्णके निधनके पश्चात् समुद्र निमग्न हो गई, गांव सोमनाथके नाम किये थे। (३) माधवपुरी (जहां भगवान कृष्णने रुक्मिणीका फिर सौराष्ट्र में चूड़सम वशको स्थापना (सन ८७५ के लगभग) हुई, जिसका राज्य ६०० वर्षे तक रहा, (४) तुलसी श्याम, और उसके बाद मुसलमानों के आक्रमणाका तांता बंध (सदामापरी (जिसको भगवान कृष्णने अपने गया । इस वंशका अन्तिम स्वतन्त्र राजा राव मंडलीक मित्र सदामाके लिये बनवाकर उसके दरिद्रताके पाश हुआ, जिसको यवनाने परास्तकर मुसलमान बना काटे थे और जिसका आधनिक नाम पोरबन्दर है। लिया (सन् १४७० में) और उसका नाम खांजहां (६) श्रीनगर. रक्खा गया और जूनागढ़का नाम मुस्तफाबाद रक्खा, (७) वामस्थली, (वनस्थली) इत्यादि प्राचीन नगर परन्तु यह नाम अधिक दिन तक न चल सका। भी इसी दक्षिण-पूर्वीय प्रदेश में हैं। जैनियोंके गिरनार काठियावाड़(सौराष्ट्र)की राजधानी गत १८०० वर्ष व पालीताना(शत्रुञ्जय)नामक प्राचीन और प्रसिद्ध तीथ से अधिक कालसे जूनागढ़ रही है। १५ वीं शताब्दीसे यहीं हैं। यहीपर बौद्धोंके गुहामन्दिर जूनागढ़, तलाकाठियावाड़के मुसलमान शासक या फौजदार जूनागढ़ जा, साना, धांक और सिद्धेश्वरमें हैं। यहांके अनेक में रहते थे। ये शासक पहले गुजरातके सुल्तानोंके, अतिकलापूर्ण पाषाणनिर्मित मन्दिरोंके ध्वंसावशेषांसे और फिर अहमदाबाद के मुग़ल सूवेदारों के अधीन रहे जो कि सेजकपुर, थान, आनन्दपुर, पवेदी, चौबारी परन्तु मुग़ल माम्राज्य के पतनके साथ साथ १८वीं तथा बढ़वानादि स्थानों में मिलते हैं, इससे यह बात शताब्दीके पूर्वार्धमें यहांके शासक स्वतन्त्र हो गये और प्रमाणित होती है कि मध्यकालमें मध्य सौराष्ट्र एक अन्तमें अंग्रेजों के अधीन हुए। अब भारतके स्वतन्त्र पूर्ण वैभवशाली और अति-जनाकीर्ण प्रदेश था। होनेपर यहांका नवाब किस तरहकी चालसे पाकिस्तान सन्६४० में ह्यू येन स्यांग नामक चीनी परिव्राजक से भिला, और प्रजाके विरोधसे किस तरह उसे पला- बल्लभीमें आया, और उसने भी यहांकी समृद्धिका यन करना पड़ा यह सब तो श्राप लोग जानते ही हैं। वणन करते हुए लिखा है कि-यहांपर बौद्धों के सैकड़ों
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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