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किरण २ ।
सोमनाथका मन्दिर
महमूद ग़ज नबीके मकबरेपर लगे हुवे दरवाजोंको आक्रमण होते रहे। सन १२९८ में देहलीके बादशाह ही सोमनाथके चन्दन-द्वार सममकर वृथा ही उखाड़ अल्लाउद्दीन खिलजीके सिपहसालार अलफखोंने इस लाया जो अब तक आगरे के किलेके एक कोने में पड़े हैं। मन्दिरको फिर धराशायी किया। लिङ्गको जड़से
महमद लूटका माल ले भागनेकी जल्दी में केवल इस आशयसे उखाड़ा कि नीचे दबा हुवा धन मिलेगा लिङ्ग तोड़ सका। इस अत्याचारसे हिन्दुओंमें रोप जैसाकि धन-लोलुप मन्दिर-ध्वसंक मुसलमानोंकी छा गया, और कई राजा, आबूक राजा परमर्दीदेवके रीति थी। उसने मन्दिरका नामो निशान मिटानेको नेतृत्वमें अरबली पहाड़ियों और कच्छकी रण के चेष्टा की। बीचसे जाने वाले मार्गको रोकने के लिये आगे बढे, राजा महीपाल देवने (१३०८-१३२५) फिर इस ताकि महमूदको रोक लिया जावे, किन्तु महमूद मन्दिरका निर्माण किया। सन १३१८ में सोमनाथ लड़ाईसे बचने के लिये दूसरे मार्गसे अर्थात् पश्चिमकी मन्दिरपर फिर मुसलमानोंका आक्रमण हुवा, और श्रोर कच्छ और सिन्धके बीचसे होता हवा निकल मन्दिर नष्ट कर दिया गया, परन्तु राजा महीपालदेव भागा। वापसी में सिन्ध नदी के किनारे मुलतानको के सुपुत्र श्री खङ्गार चतुर्थने (१३२५-५१) इस तरफ जाट इसकी सेनाके पिछले भागपर टूट पड़े मन्दिरको फिर निर्मित किया और सोमनाथ लिङ्गको जिससे इसके बहुतसे सैनिक और घोड़े ऊट मारे गये। प्रतिष्ठा की। महमूद २ अप्रेल सन १०२६ में ग़ज़नी वापिस सन् १३६४ में गुजरातके शासक स्वधर्मत्यागी पहुंचा।
मुजफ्फरखांने पड़ोसी हिन्दु राजाओंके विरुद्ध भयङ्कर भागनेसे पहले कहते हैं, महमूदने मीठा-खां धार्मिक युद्ध (जहाद) छेड़ा, और सोमनाथ मंदिरको नामके अफसरको नियुक्त किया जिसने सोमनाथ फिर एकबार ध्वस्त किया और इसकी जगह मसजिद मन्दिरको पूर्ण रूपसे नष्ट किया। परन्तु अनिहिलवाड बना दी । इतिहासकार फरिश्ता लिखता है कि पटन के महाराज भीमदेवने ( सन १०२१-१८७३) मुजफ्फरनाने जितन मान
मुजफ्फरखांने जितने मन्दिर तोड़े, उनकी जगह मीठा-खको.मार भगाया और सोमनाथके मन्दिरका मसजिद बनाता गया। इस्लाम धर्म के प्रचार और पुनर्निमाण किया। महाराज सिद्धराज (सन् १०४३- प्रसारके लिये मौलवियोंको नियुक्त किया, और इसोने ११४३) ने इसको भूपित और सुसज्जित किया और यहां पहली बार मन्दिरोंको मसजिदों में परिणत अन्त में महाराज कुमारपालने सन १९६८ में जैनाचार्य करने का काम शुरू किया था। श्री हेमचन्द्र सूरिके परामर्शानुसार ७२ लाख रुपये परन्तु हिन्दुओंने सोमनाथ मन्दिरको फिरसे बना (जो कि उनके राज्यकी एक वर्षको परीश्राय थी) लिया। इसके बाद सन १४१३ में मुजफ्फरखांके लगाकर इस मन्दिरको सम्पूर्ण किया। कई इतिहास
पोते अहमदशाहने, जो अहमदाबाद के अहमदशाही कारोंका मत है कि यह नया मन्दिर पुराने मन्दिरको वंशका संस्थापक था, जूनागढके राजापर आक्रमण जगहमें बना था। कई लेखक इसको कल्पना मानते कियाऔर सोमनाथके मन्दिरको नष्ट किया जहांसे हैं। उनका मत है कि सरस्वती नदीके मुहानेसे तीन उसे बहुमूल्य सम्पत्ति प्राप्त हुई। मील पश्चिमकी ओर, और भीडिया मन्दिरसे प्रायः गुजरातके शासक महमूद बेगरा (मुजफ्फर२०० गज दूरीपर जो भग्नावशेष हैं. वहींपर सोमनाथ द्वितीय) ने भी सोमनाथ मन्दिर के अवशेषोंपर आक्रका मूल मन्दिर था।
मण किये।
सन् १७०२-३ में जब औरङ्गजेब ८४ वका हवा अन्य अाक्रमण
तो उसने अहमदाबाद के अपने सूबेदार शुजातखांको महमूदके बाद भी इस मन्दिरपर मुसलमानों के फरमान भेजा कि उसके जीवित रहते रहते सोमनाथ