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अनेकान्त
[ वर्षे ।
उपयोगी है। इसकी प्रस्तावनामें पं० परमानन्द ५-खण्डेलवाल जैन हितेच्छुका पुराणाङ्कजैन शास्त्री, वीरसेवामन्दिर, सरसावाने लेखकके सम्पादक और प्रकाशक-६० नाथूलाल जैन संक्षिप्त जीवन-परिचय और उनकी रचनाओं पर साहित्यरत्न इन्दौर, सहसम्पादक पं० भंवरलाल जैन प्रकाश डाला है। इससे ज्ञात होता है कि लेखक न्यायतीर्थ जयपर। विक्रमकी अठारहवीं सदीके अन्तिम चरण (१७७६) यह उक्त पत्रका विशेषाङ्क अभी हाल में प्रकाशित के एक अनुभवी श्राध्यात्मिक विद्वान हैं। यह हुआ है। इसमें पुराण और पुराणके विविध भागों, स्वाध्याय प्रेमियों के कामकी चीज़ है।
प्रयोजनों आदि पर सुन्दर प्रकाश डाला गया है। स्व० २- जैनबोधकाचा ६० वर्षाचा इतिहास- 40 टोडरमल्लजी, जैनेन्द्रजी, नेमिचन्द्रजी ज्योतिषा
चाय, बा० अजितप्रसादजी एडवोकेट, पं० कैलाशचन्द्र लेखक- फुलचन्द हीगचन्द शाह, सोलापुर । प्रकाशक ।
जी शास्त्री, बा० कामताप्रसादजी, पं० चैनसुखदासजी पं० ववैमान पाश्वनाथ शास्त्री, मंत्री-ध० रावजी
श्रादि अनेक लेखकोंको सुन्दर और महत्वपूगो रचनाएँ सखाराम दोशी स्मारकमडल, सोलापुर । मूल्य |-)।
इसमें निबद्ध हैं। अङ्क पठनीय व सराहनीय है। . प्रस्तुत पुस्तक मराठी जैन बोधकके साठ वर्षका संक्षिप्त इतिहास है। इसमें कब और किन सम्पादकों
ब और किन सम्पादकों ६- तत्वार्थसूत्र-(साथै)सम्पादक पं लालबहादुर ने सेवा कार्य किया, यह बतलाया गया है। सामा- शाखा, प्रकाश
म. शास्त्री, प्रकाशक भा०दि० जैन समथुरा । म०।-) जिक प्रवृत्तिका इससे कितना ही निदर्शन होता है।
यह संस्करण पिछले सब संस्करणोंसे अपनी ३- विवरण-पत्रिका- प्रकाशक-दि० जैन
अन्य विशेषता रखता है । वह यह कि पाठ करनेवाले
स्त्री-पुरुषों और पाठशालाओंके बालक बालिकाओंके शिक्षा संस्था, कटनी (मध्यप्रान्त) ।
लिये धारणयोग्य मूलाथै इसमें दिया गया है, जिससे यह पूज्य पं. गणेशप्रसादजी वर्णी न्यायाचार्य उन्हें इसको पढ़ते पढ़ते ही उसका भावज्ञान होजावेगा द्वारा संस्थापित व संरक्षित दिगम्बर जैन शिक्षा संस्था भाषा बहुत सरल और चालू है। कटनीकी वि० सं० १६८८ से वि० सं० २००२ तक पुस्तक-समाप्तिके अन्त में जो 'श्रज्ञरमात्रपदस्वरपन्द्रह वर्षोंकी रिपोर्ट है। इसमें संस्थाके विभिन्न होनं' 'दशाध्याये परिच्छिन्नो' 'तत्त्वाथसूत्रकरिं ये विभागों और उनके आय-व्यय, उन्नति आदिका तीन पद्य मूलमें ही मिला दिये गये हैं उनसे पाठकोंको संक्षिप्त विवरण दिया गया है जिससे ज्ञात होता है यह भ्रम हो सकता है कि वे तीनों पद्य सूत्रकारके ही कि संस्थाने थोड़े समयमें पर्याप्त प्रगति की है। बनाये हुये हैं ; परन्तु ऐसा नहीं है पहला पद्य ही ४- दिगम्बर जैनका स्वतन्त्रता अक- सूत्रकारका ह, अन्य दो पद्य तो पीछेसे सूत्रका माहा
म्य प्रदर्शित करने के लिये किन्हीं टीकाकारादि विद्वानों सम्पादक-मूलचन्द किशनदास कापड़िया, सूरत । द्वारा जोड़ दिये गये हैं। अत: उन्हें मूलमें नहीं दिगम्बर जैन अपने विशेषाङ्कोंके लिये प्रसिद्ध है। मिलाना था। हां उन्हें मूलसे पृथक् 'तत्त्वार्थसूत्रका यह विशेषांक भारतकी म्वतन्त्रता-प्राप्तिके उपलक्ष्यमें माहात्म्य' शीर्षक देकर उसके नीचे दिया जा सकता हाल में प्रकट हुआ है। कवरके मुख-पृष्टपर स्वाधीन था। सत्रकारका संक्षिप्त जीवन-परिचय भी रहता तो भारत और राष्ट्रीय झंडके चित्रों के साथ पं० नेहरू, और भी अच्छा था। फिर भी प्रस्तुत संस्करण जिस सरदार पटेल और राष्ट्रपति डा. राजेन्द्रप्रसादके उददेश्यकी पूर्ति के लिये प्रकट किया गया है उसकी निसुन्दर चित्र हैं । तृतीय पृष्ठपर अहिसाके पुजारी पूज्य श्चयही इससे पूर्ति होती है। ऐसा संस्करण निकालने वर्णी जी और महात्मा गांधोके भव्य चित्र हैं। लेख के लिये सम्पादक और प्रकाशक दोनों धन्यवादाह हैं। पठनीय हैं। कापड़ियाजीका प्रयत्न स्तुत्य है।
- दरबारीलाल कोठिया