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श्रद्धांजलि
[यह श्रद्धाञ्जलि पूज्य श्री १०५ क्षुल्लक गणेशप्रसादजी वर्णी के मुरार (ग्वालियर)से
प्रस्थान करनेके अवसरपर पढ़ी गई] (रचयिता-श्रीब्रजलाल उर्फ भैयालाल जैन "विशारद" मुगर)
हे पूज्यवर्य गुरुवर तुम हो, विद्या निधान मानव महान ! शचि शान्ति-सुधा वर्षण करके, जन-मनमें प्रेम बढाया है । मानव-कर्तव्य स्वयं करके, युगधर्म हमें दर्शाया है । देकर ज्ञान-दान, जगका तुम करने चले आत्म कल्याण ॥ हे पूज्य० अज्ञान मिटा करके तुमने लघु-जनको विद्या दान दिया । निजवरद हस्त देकर हमको आत्मोन्नतिका सद्ज्ञान दिया । तुम धर्मस्नेह लेकर आये करने मानवको दीप्तिमान ॥ हे पूज्य० निज जीवन कर अर्पण तुमने मानव-संस्कृति-विस्तार किया । "स्याद्वाद" "सत्तर्क भवन" से जैन सिद्धान्त प्रसार किया । तुम ज्ञान-कोष लेकर आये देने जीवोंको अमर दान ॥ हे पूज्य उपहार नहीं ऐसा कुछ है, उत्साह बढ़ाऊँ मै जिससे । श्रद्धाञ्जलि भक्तीकी "भैया" ले मात्र उपस्थित हूँ इससे ॥ गुरुदेव इसे स्वीकार करो कर अपराधोका क्षमा दान ॥ हे पूज्य० चिरजीवो तुम युग-युग वर्णी शभ यही भावना है प्रतिक्षण । गुरुवर तेरे उपकारोसे है ऋणी हुआ जगका कण-कण ॥ अभिनन्दन करने हम आये कर भावोंकी माला .प्रदान ॥ हे पूज्य छैह मास हुए जबसे हमने प्रिय वाणीका आस्वाद लिया ॥ दिल्ली प्रस्थान दिवस सुनकर, है हमे मोहने घेर लिया । हृद्गत सुभक्ति नयनोंमे अश्रु , हे देव ! सफल हो तव प्रस्थान ॥ हे पूज्य