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________________ सम्पादकीय जैन-साहित्यपर विहारके शिक्षामन्त्री इतिहास, पुरातत्वकी तमाम शाखा. जैन. साहित्य, शिलालिपि, टेराकोटा, मुद्रा, प्रतिमाएँ आदि जितनी जबसे मैंने बिहार प्रान्तमे प्रवेश किया है तभीसे भी मौलिक साधन-सामग्री समुपलब्ध हो रही है मनमें एक बात बहुत ही खटक रही है कि इस उनका विस्तत वैज्ञानिक रूपसे गम्भीर अध्ययन किया प्रान्तका सवागपूण इतिहाम क्यान तयार कराया जाय, तदनन्तर संक्षिप्त रूपमे उपर्युक्त साधनोको जाय, क्योकि नालन्दा राजगृह, पावापुरी. वैशाली, उपयोगिता. महत्ता और उनके जन-जीवनसे सम्बन्ध गया आदि दर्जनो प्राचीन ऐतिहासिक स्थान ऐसे है; ज्ञापक साहित्य तैयार करवाकर एक ग्रन्थ संग्रहीत जिनका मूल्य न केवल विहार प्रान्तीय दृष्टिसे हा ह कर प्रकाशितकर जनताके सम्मुख उपस्थित किया अपित शिक्षा और संस्कृतिका जहाँ तक सम्बन्ध है, जाय यह काम कुछ श्रम और अथसाध्य तो अवश्य उनका अन्तराष्ट्रीय महत्व भी अधिक है। मुझे कुछेक हा है पर सरकारका सर्वप्रथम कार्य भी यही होना खण्डहरोम घूमनेका पौभाग्य प्राप्त हुआ है. उसपरसे चाहिय । यह विहारका सवोगपूर्ण इतिहास नहीं मै कह सकता हूँ कि वहाँ विचारोका प्रवाह इतने होगा पर आगामी लिखे जाने वाले इतिहासकी पूर्व जागसे बहता है कि दो-दा शाट हेण्ड रखें तो भा भूमिकाका एक मागदशक अङ्ग हागा, हमारा कार्य उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता । उनके कण- साधनोंका संग्रह होना चाहिये, लेखन कार्य अगली कणम माना विहारका सांस्कृतिक आत्मा बाल रही है पीढी करी जो मानसिक स्वातन्त्र्यके युगमें शिक्षा जहाँपर विहार और विभिन्न प्रान्तीय या देशीय पाकर अपनी दृष्टिसे अपने पूर्वजाक कृत्यांकी समीक्षा विदानाने बैठकर ज्ञान-विज्ञानको समस्त शाखाश्रीका करनेकी योग्यता रखता हो। गम्भार बहुमुखी अध्ययन किया, जहाँ के पण्डितोंने विदेशोमे आयसंस्कृतिकी विजय-वैजयन्ती फहराई। आज हम जो कुछ भी लिखते-सोचते हैं केवल परन्तु आज अतिखेदकं साथ मूचित करना पड़ रहा अँग्रेजोद्वारा प्रस्तुत किये तथ्योंके आधारपर ही । जो है कि उपर्युक्त ऐतिहासिक विशाल-माधन सामग्रीकी उनकी अपनी एक दृष्टिसे प्रस्तुत किय गय हैं । परन्तु उपेक्षा, जितना बाहर वाले नहीं करते उससे कहीं अबतो समयने बहुत परिवर्तन ला दिया है। हमार अधिक विहारके विद्वानो द्वारा हो रही है। मै यहाँ प्रान्त या सारे देशमे ऐसे कितने प्रतिभा-सम्पन्न देग्यता हूँ कि किसीको पुरातत्वके माधनाके प्रति विद्वान है; जो खंडहरोंकी खाक छानकर ऐतिहासिक हमदर्दी ही नहीं है। मै यह भी स्वीकार करता हूँ कि स्थानोंमें परिभ्रमणकर, जंगलोमें यातना सहकर, यह विषय इतना सूग्वा है कि कहानी-कविनाकी उपा- वहॉकी पुरातन सामग्रीको अपनी दृष्टिसे देखकर मना करने वाला वर्ग इनको नहीं समझ सकता। लिखनेकी योग्यता रखते है, जिनमें अपनी स्वकीयता वर्षीकी ज्ञान उपासना करनेके बाद ही उनकी मार्व- हो। किसी भी वस्तुके वास्तविक मर्मको बिना समझे भौमिक महत्ताको आत्मसात किया जामकता है। यह उसे आत्मसात् करना असम्भव है और बिना उपेक्षा अग्रिम निर्माणमे बड़ी घातक सिद्ध होगी। आत्मसान् किये कुछ लिखना-पढ़ना कोई अर्थ नहीं गत दिसम्बर मासमें मैं इस सम्बन्धमें विहार रखता. जिनमें अनुभूति न हो । सच कहना यदि सरकारके अर्थमन्त्री डाफर अनुग्रहनारायणसिंहसे उलटा न माना जाय तो मैं जोरदार शब्दोंमें कहेंगा मिला था उनके सम्मुख मैंने अपनी एक योजना कि अभी तो विहारके विद्वानोने विहारकी संस्कृति रखी. जिसमें बताया गया था कि विहार प्रान्तके और इतिहासके विभिन्नतम साधनोंका समचित
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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