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________________ अनेकान्त ३६० ] उज्ज्वल आदर्शको उन्नत किया था। मुनिजीने हिन्दी पद्योंमे उन्हींकी बड़े सुन्दर ढङ्गसे गुण गाथा गाई है । पुस्तक अच्छी बन पड़ी है और लोकरुचिके अनुकूल है । भाषा और भाव सरल तथा हृदयग्राही हैं। ८. सामायिकसूत्र -- लेखक उक्त उपाध्याय मुनि श्री अमरचन्द कविरत्न. प्रकाशक, सन्मतिज्ञानपीठ आगरा। मूल्य ३ | | ) | मुनिजीने इसमें सामायिकके सम्बन्ध में विस्तृत विवेचन किया है और अपनी स्थानकवासी परम्परानुसार सामायिकसूत्रोंका सङ्कलन और सरल हिन्दी व्याख्यान दिया है । पुस्तकके मुख्य तीन विभाग है । पहले-प्रवचन विभागमें विश्व क्या है चैतन्य मनुष्य और मनुष्यत्व, सामायिकका शब्दार्थ आदि सामाकिसे सम्बन्ध रखनेवाले कोई २७ विपयोपर विवेचन है । दूसरे 'सामायिकसूत्र' में नमस्कारसूत्र आदि ११ सूत्रोंका अर्थ है और अन्तिम तीसरे विभागमे परिशिष्ट है, जिनकी संख्या पाँच है । प्रन्थकं प्रारम्भ में पं० वेचरदासजीका विद्वत्तापूर्ण अन्तर्दर्शन' (भूमिका) है । श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्पराओंके सामायिकापर भी संक्षेपमें प्रकाश डाला है । दिगम्बर परम्परा के आचार्य अमितगतिका सामायिकपाठ भी अपने हिन्दी अर्थ के साथ दिया है। पुस्तक योग्यतापूर्ण और सुन्दर निर्मित हुई है । भाषा और भाव दोनो और आकर्षक है। सफाई - छपाई अच्छी है। लेखक और प्रकाशक दोनो इसके लिये धन्यवादके पात्र है । ९. कल्याणमन्दिर - स्तोत्र - लेखक और प्रकाशक, उपर्युक्त मुनिजी तथा पीठ । मूल्य ।। ) । [ वर्ष अच्छा और सरल हुआ है। पं० बनारसीदासजीका भाषा कल्याणमन्दिर - स्तोत्र भी इसके साथ में निबद्ध है । कल्याणमन्दिर - स्तोत्र जैनोंकी तीनो परम्पराओं में मान्य है। यह स्तात्र बड़ा ही भावपूर्ण और हृदय - ग्राही है। प्रस्तुत पुस्तक उसीका हिन्दी अनुवाद है । ग्रन्थके आरम्भ में मुनिजी ने इसे सिद्धसेन दिवाकरकी कृति बतलाई है जो युक्तियुक्त नही है। यह दिगम्बराचार्य कुमुदचन्द्रकी रचना है, जैसा कि ग्रन्थके अन्तमें 'जननयनकुमुदचन्द्र' इत्यादि पदके द्वारा सूचित भी किया गया है। मुनिजीका यह अनुवाद भी प्रायः १० श्रीचुतविंशति - जिनस्तुति (वृत्ति सहित) - लेखक विद्यावारिधि श्रीसुन्दरगरिण । प्रकाशक, श्रीहिन्दीजैनागम - प्रकाशक- सुमतिकार्यालय, जैन- प्रेस काटा (राजपूताना )। मूल्य ।) । इसमे ऋषभादि चौबीस जैन तीथङ्करो की संस्कृत भाषा में गरणीजीने स्तुति की है और स्वयं उसकी संस्कृत वृत्ति भी लिखी है । पुस्तक उपादेय है । ११. श्रीभावारिवारण-पादपूर्त्यादिस्तोत्र संग्रहसंग्राहक और संशोधक मुनिविनयसागर । प्रकाशक. उक्त जैनप्रेस कोटा । मूल्य भेट । इस संग्रहसें तीन छोटे-छोटे सवृत्ति स्तोत्रोंका संकलन हैं | पहला समसंस्कृत और अन्य दोनों संस्कृत भाषामे है । प्रथम भावारिवारणपादपूर्ति और दूसरे पार्श्वनाथलघुस्तोत्र तथा दोनोंकी वृत्तियों के रचयिता वाचनाचार्य श्रीपद्मराजगण है । और तीसरी 'सवृत्त जिनस्तुति' रचनाकं कर्ता श्रीजिनभुवनहिताचार्य है । तीनो रचनाएँ प्राय: अच्छी है। १२. चतुर्विंशति - जिनेन्द्रस्तवन - रचयिता, वाचनाचार्य श्रीपुण्यशील गणी । प्रकाशक, उपर्युक्त प्रेम कोटा । मूल्य भेंट | नाना रागो और रागनियों में रची गई यह एक संस्कृतप्रधान रचना है। इसके कुछ स्तवनोंमे देशियोका भी उपयोग किया गया है। इस रचनामे कुल २५ स्तवन हैं । २४ तो चौबीस तीर्थङ्करो के हैं और अन्तिम लोकरुचि-प्रदर्शनका रहा है। पुस्तक प्राह्य है। सामान्यतः जिनेन्द्रका स्तवन है । लेखकका उद्देश्य 1 - कोठिया । १३. कुन्दकुन्दाचार्यके तीन रत्न - लेखक, गोपालदास जीवाभाई पटेल | अनुवादक पंडित शोभाचन्द्र भारिल्ल । प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ. काशी । पृष्ठ संख्या १४२ । मूल्य सजिल्द प्रतिका २) ।
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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