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________________ किरण ] व्यक्तित्व [३५७ गये । किन्तु पता उनके आनेसे पहले ही हमें चल मैं उनका मतलब ताड़ गया। यदि वास्तविक गया और हममेंसे एक साथीका जेलमें उनसे पत्र घटना बतलाता हूँ तो एक माथी मुसीबतमें फँसता है. द्वारा विचारांका आदान-प्रदान होने लगा। माथी मर दामनपर देशद्रोहका दारा लगता है। इमलिय सी० आई० डी०के संकेतपर एक पत्र जेलवालांने बातको बचाकर बोला-'बेशक. जैन कोई ऐसी बात पकड़ लिया और उससे बड़ी खलबर्ला मच गई। उस नहीं कहते जिससे किसीका दिल दुग्वे या काई मंकट वक्त मैं और एक वे पत्र व्यवहार करने वाले साथी में फंसे ।" दो ही जेलमें थे । पत्र पकड़े जाते ही उन्हें अन्यत्र भेज "बेशक. जैनियोकी ऐसी ही तारीफ सुना है ।" दिया और मुझे फॉसीकी १८ नं० कोठरीमे इसलिये फिर वह इधर-उधर की बात करके बाले-"क्यो भई भेज दिया कि मै घबराकर मब भेद खोल दूं। इस जैन साहब, वह बात आखिर क्या थी?" १० नं. की कोठरी में फाँसीकी मजा पाने वाला वही “जी. कौनमी ?" व्यक्ति एक रात रखा जाता था जिसे प्रातः फॉसी "भई वही. तुम तो बिल्कुल अजान बनत हो?" देना होती थी। कोठरिया में बन्द मृत्युकी सजा पाये मेरे होटसे सूख गये. मैं थूकको निगलता हुआ फिर हुए बन्दियोका करुण क्रन्दन नीद हराम कर देता था बोला-'मैं आपकी बातोंको क़तई नहीं समझा।" सा मालूम होता था कि श्मशानभूमिमे बठे धू-धू जैनसाहब, सच-सच कह दो हम तम्हे यकीन जलती चिताओको देख रहा हूँ। ३-४ गेज बन्द रहने दिलाते हैं तमपर जरा भी ऑच न आयगी। जैन पर जब अधिकारियोका विश्वास होगया. मार भयके . होकर झूठ न बोलो।" अब सब उगल देगा तो कलकर जेल सुपरिन्टेन्डेन्ट के साथ मेर पाम आया। मै उम वक्त कोठरीक "मुझ अफसोम है कि मेरे कारण आपको हमारी बाहर बंटा चरग्वा कात रहा था। वे मुझसे बिना बाले जातिपरसे विश्वास उठ रहा है। मैं आपको क्रमम ग्वाकर यकीन दिलाता हूँ कि भूठ बोलना तो दरमुआयनेक बहाने मेरी कोठरीमे गय और किमी काम किनार जिससे किमीका दिल दुग्वे हम एमा एक भी लायक काँगजकी ग्वाजके लिय मेग किताबोको इस तरह देखने लग जैसे लाइब्रेरीमे पुस्तकोंका यूँही उलट शन्न नहीं बालन.?" पलटकर देखा जाता है। फिर बोलनका बहाना ढूंढ ___ कलकर खुद अपने जालमे फॅम गया था वह क्या बात चलाये लाचार मुँह लटकाय चला गया। काई कर कलकर बोले- अच्छा ना आप दीवानं ग़ालिब भेट न मिलनेके कारण जब वे मर माथी रिहा कर समझ लेते हैं।" दिय गय तब ५ माह बाद मर्ग मजा पूरी होनेपर "जी ममझा ता नहीं हूँ ममझनेकी बेकार कोशिश उन्हें मुझको भी छोड़ना पड़ा। करता रहता है।" ___ मी० आई० डी० मुपरिन्टेन्डन्ट और जेल सुप"आप तो जैन हैं न?" रिन्टेन्डेन्टन काफी तरकीबे लडाई पर मफलता "जा। न मिली। “भई. सुना है जन झूठ नहीं बोलत ... १७ नवम्बर सन १६४८
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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