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किरण ह]
मथुरा-संग्रहालयकी महत्त्वपूर्ण जैन पुरातत्त्व-मामग्री
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५. नो अरह (ता) यतने स (हा) मातरे भगिनीये नं० डी ६ ऋषभदेवकी यक्षिणी चक्रेश्वरीकी धिताप पुत्रेण
मूर्ति है । इसके आठ हाथ हैं और आठोंमें चक्र है। ६. सर्वेन च परिजनेन अरहतपूजाये
इसका वाहन गरुड है जो नीचे दिखाया गया है। इसी प्रकारके और भी अनेक आयागपट्र मथुरा
ऊपर ऋषभनाथकी पद्मासन ध्यानस्थ मूर्ति है। की खुदाईमें प्राप्त हुए हैं। नं० २५६३ भी एक
ये दोनों मूर्तियाँ मध्यकालकी हैं और कङ्काली आयागपटिका है जो शक सं० में दान की गई थी। टालस प्राप्त हुई है। क्यू ३ भी आयागपट्ट ही है। इसके सिवाय अनेक सर्वतोभद्रिका प्रतिमाए
आयागपट्ट लग्वनऊके प्रान्तीय संग्रहालयमे सुरक्षित है। मथुरा संग्रहालयमे अनेक सर्वतोभद्रिका प्रतिमाएं नैगमेष मूर्तियां
हैं। इन प्रतिमाओमे चारो ओर एक-एक तीर्थङ्करकी ___ दरीची नं० ३ (Court C)के दक्षिणी भागमें
मूर्ति बनी है । चारा आरसे दर्शन होने तथा चारों
आरसे कल्याणकारी होनेसे इन प्रतिमाओको 'प्रतिमा नं. ई १. ई • और २५४७ नं की तीन मूर्तियाँ रखी ,
सर्वतोभद्रिका' कहा जाता था । इनपर खुदे हुए हुई है। ये कुषाणकालीन है और इनके मुग्व बकरके
लेखोमे भी यही नाम मिला है। इस प्रकारकी कुषाणश्राकारके है । य नैगमेष है और जैन मान्यताके
कालीन प्रतिमाएँ अधिकतर खड़ी होती है। नं० बी अनुमार मन्तानोत्पत्तिके देवता है। इनके हाथोमे या कन्धोपर खेलते हुए बच्चे चित्रित किए गए है।
७. एक ऐसी ही मूर्ति है जो सं० ३५मे दान की गई
__ थी। अन्य मूर्तियोमें भी लेख है। नं० बी ७१ संवत प्रस्तुत मूर्तियांमे नं० ई - नैगमषका स्त्रीरूप है और
५ (ई०८३)की है। सर्वताभद्रिकाओके कुषाणकालीन ई १ तथा ०५४७ पुरुपरूप ।
अन्य नमूने बी ६७-६८ श्रादि हैं। पीछेकी सर्वतोमध्यकालमे जैन लोग सन्तानोत्पत्तिके लिए एक नए
भद्रिकाओके नमूने बी ६६ आदि है जो उत्तर गुप्तप्रकारकी मूर्तियांकी स्थापना और पूजा करने लगे थे। कालकी है। नं. बी ६६में चारो ओर चार तीर्थङ्कर इनमे जैन यक्ष और यक्षिणी कल्पवृक्षके नीचे विराज- पद्मासन और ध्यानमुद्राम स्थित हैं। इसका ऊपरी मान अङ्कित किए जाते थे। दरीची नं. ४ (Court भाग खण्डित है। D) दक्षिणी भागकी २७८ नं की मूर्ति इस प्रकारकी
तीर्थङ्करोंकी प्रतिमाएं मूर्तियोका नमूना है।
__यद्यपि कङ्काली टीलेसे प्राप्त उत्तमोत्तम मूर्तियाँ देवियोंकी मूर्तियां
लखनऊके प्रान्तीय संग्रहालयमे ले जाई गई हैं फिर मथुरा सग्रहालयके षट्कोण गृह नं० ४मे ब्राह्मण भी मथुरा संग्रहालयमे अनेक सुन्दर और कलापूर्ण धमकी अनेक मूर्तियोंके माथ दो जैन देवियोंकी मूर्तियाँ तथा विभिन्न शैलीकी नीर्थकर मूर्तियाँ अभी भी भी प्रदर्शित हैं। इनमे डी ७ बाईसवे तीर्थङ्कर नेमि- सुरक्षित हैं। स्थानकी कमीसे उनमेंसे मुख्य मुख्य ही नाथकी यक्षिणी अम्बिका है। इसके बाई जंघापर प्रदर्शन मन्दिरम सजाई गई हैं, अन्य सब गोदामोमें गोदमे बालक है और नीचे इसका वाहन सिंह भरी पड़ी हैं। उत्कीर्ण है। ऊपर ध्यानस्थ नेमिनाथके दोनो और मथुरासे प्राप्त तीर्थङ्कर मूर्तियाँ सबकी सब वैजयन्ती धारण किए वासुदेव कृष्ण और हलधारी दिगम्बर सम्प्रदायकी है । नग्न हानेके कारण ये बलरामकी मूर्तियाँ उत्कीण हैं । देवी लीलासनमें स्थित बुद्धमूर्तियोंसे महज ही अलग पहचानी जा सकती हैं। है और हार करधौनी आदि अनेक आभूषण धारण पद्मासन मूर्तियाँ श्रीवत्स चिह्नसे पहचान ली जाती किए हुए है। बालकके गलेमें भी कराठी है। हैं। पहचाननेका एक और साधन है. वह यह कि