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________________ किरण ह] जैन अध्यात्म अमुक पदार्थको ही देखनेकी उसमे योग्यता है शेषकी पुराने संस्कारोंके परिणामस्वरूप कुछ ऐसे निश्चित नही या अमुक पदार्थ में उस समय उसके द्वारा ही कायकारणभाव बनाए जा सकते है जिनसे यह नियत देखे जानेकी योग्यता है अन्यके द्वारा नहीं। मतलब किया जा सकता है कि अमुक समयमें इस द्रव्यका ऐसा यह कि परिस्थितिवश जिम पर्यायशक्तिका द्रव्यमे परिणमन होगा ही पर इस कारणताकी अवश्यंविकास हुआ है उस शक्तिसे होनेवाले यावत्कार्योंमेंस भाविता सामग्रीकी विकलता तथा प्रतिबन्धकजिम कार्यकी मामग्री या बलवान निमित्त मिल जायेंगे कारणकी शून्यता पर ही निर्भर है। जैसे हल्दी और उसक अनुमार उसका वैसा परिणमन होना जायगा। चूना दाना एक जलपात्रमे डाले गय ना यह अवश्यंएक मनुष्य गह पर बैठा है उस समय उमम हॅमना- भावा है कि उनका लालरङ्गका पारणमन हा। एक गेना, आश्चर्य करना.गम्भीरतासे मोचना श्रादि अनेक बात यहॉ यह खासतौरमध्यानमे रखनेकी है कि अचेतन कार्योकी योग्यता है। यदि बहुरूपिया सामने आजाय परमाणुओंमें बुद्धिपूर्वक क्रिया नहीं हो सकती । और उसकी उसमें दिलचस्पी हो तो हंसनेरूप पर्याय उनमे अपने मंयोगांके आधारसे क्रिया तो हाती हो जायगी। कोई शोकका निमित्त मिल जाय तोसे रहती है। जैसे पृथिवीमे कोई बीज पड़ा हो तो मरदी भी सकता है। अकस्मात् बात सुनकर आश्चर्यमें डूब गरमीका निमित्त पाकर उसमें अंकुर आजायगा और मकता है और तत्त्वचर्चा सुनकर गम्भीरतापूर्वक वह पल्लवित, पुष्पित होकर पुनः बीजको उत्पन्न कर सोच भी सकता है। इसलिए यह समझना कि देगा। गरमांका निमिन पाकर जल भाप बन जायगा। प्रत्येक द्रव्यका प्रतिसमयका परिणमन नियत है उसमें पुनः भाप सरदीका निमित्त पाकर जलके रूपमे कुछ भी हेर-फेर नहीं हो सकता और न कोई हेर फेर बरमकर पृथिवीको शस्यश्यामल बना देगा । कुछ एसे कर सकता है, द्रव्यके परिणमनस्वभावको गम्भीरतासे भी अचेतन द्रव्योके परिणमन है जो चेतन निमित्तसे न सांचनेके कारण भ्रमात्मक है। द्रव्यगत परिणमन होते हैं जैसे मिट्टीका घदा बनना या रुईका कपड़ा नियत है अमुक स्थूलपर्यायगत शक्तियोंके परिणमन बनना । तात्पर्य यह कि अतीतके संस्कारवश वर्तमान भी नियत हो सकते हैं जो उस पर्यायशक्तिके अवश्यं- क्षणमे जितनी और जैसा योग्यताएँ विकसित होगी भावी परिणमनोमेंसे किसी एकरूपमें निमित्तानुमार और जिनके विकासके अनुकूल निमित्त मिलेंगे द्रव्योसामने आते हैं। जैसे एक अंगुली अगले समय टेढी का वैमा वैसा परिणमन होता जायगा। भविष्यका हो सकती है सीधी रह मकती है. टूट सकती है. घूम कोई निश्चित कार्यक्रम द्रव्योका बना हुआ हा सकती है. जैसी सामग्री और कारण-कलाप मिलेंगे और उसी सुनिश्चित अनन्त क्रमपर यह जगत चल उममें विद्यमान इन सभी योग्यताप्रामसे अनुकूल रहा हो यह धारणा ही भ्रमपूर्ण है। योग्यताका विकास हो जायगा । उस कारणशत्तिसे नियताऽनियतत्ववादवह अमुक परिणमन भी नियत कराया जा मकता है जैन दृष्टिसे द्रव्यगत शक्तियाँ नियत हैं पर उनके जिसकी पूरी सामग्री अविकल हो प्रतिबन्धक कारणको प्रतिक्षणके परिणमन अनिवार्य है। एक द्रव्यकी उम सम्भावना न हो ऐसी अन्तिमक्षणप्राप्त शक्तिमे ममयकी योग्यतासे जितने प्रकार के परिणमन हो वह कार्य नियत ही होगा पर इसका यह अर्थ कदापि मकते हैं उनमेंसे कोई भी परिणमन जिसके कि निमित्त नही है कि प्रत्येक द्रव्यका प्रतिक्षणका परिणमन और अनुकूल सामग्री मिल जायगी हो जायगा । सुनिश्चित है उसमें जिसे जा निमित्त हाना है नियनि- तात्पर्य यह कि प्रत्येक व्यकी शक्तियों तथा उनसे चक्रके पेटमें पड़कर ही वह उसका निमित्त बना होनेवाले परिणमनोकी जाति सुनिश्चित है। कभी भी रहेगा । यह अतिसुनिश्चित है कि हराएक द्रव्यका प्रति- पुद्गलके परिणमन जीवमे तथा जीवके परिणमन पुल समय कोई न कोई परिणमन होना ही चाहिए। में नहीं हो सकते । पर प्रतिममय कैमा परिणमन होगा
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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