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सम्पादकीय
दि विहार रिलिजियस ट्रस्ट बिल और जैन- देखकर कँपन हो पाता है। अचिंतित अनिष्ट तक हुआ ___ स्वाधीन भारतकी प्रान्तीय सरकारोंका ध्यान अब
करते हैं. यदि इम सम्पत्तिको समुचित व्यवस्था हो धार्मिक सम्पत्तिकी ओर आकृष्ट हुआ है। बम्बई
तो जानतिक सम्पत्तिका सदुपयोग हो और स्वतन्त्र सरकारने टेंदुलकर कमैटी बैठाई है जो आज जनता ।
भारत जो अपना सांस्कृतिक उत्थान अतिशीघ्र करने
जारहा है उसमें भी कुछ मदद मिले. ऐसे ही कारणों का मत प्राप्तकर. उनकी सुविधाओंको ध्यानमें रखकर
के वशीभूत होकर शायद सरकारने कथित सम्पत्तिकी कानून बनाया जाय, परन्तु बिहार सरकारने तो जन
सद्व्यवस्थाके लिये ही कानून बनाया हो. इससे स्पष्ट मत लेना आवश्यक न समझकर मीधा बिल ही तैयार
प्रतीत होता है. द्रस्टियोकी लापरवाहीने ही कानून करवा डाला जो कानुनका रूप धारण करने जारहा है.
बनानेका मरकारको एक प्रकारसे मौन निमन्त्रण प्रथम अधिकार स्वीकार करनेपर ही इसका निर्माण काँग्रेस सरकारने किया था पर जैनोंके तीव्र विरोधके
दिया. कोई भी सुसंस्कृत हिन्दू इसका सहर्ष स्वागत
करगा। कारण या तोराजनैतिक या भूमण्डल प्रतिकूल होनेसे यह उसे पास न करा सकी, १९४७ में पुनः यह बिल १६ प्रकरण ८० धाराएँ तथा सामान्य या समस्या खड़ी करदी गई है। इसकी प्रतिलिपि हमार विशेष कई धाराओंमे विभाजित है। प्रथम प्रकरणकी सम्मुग्व है । इसपर सूक्ष्मतासे दृष्टिपात करनेसे अव- दुसरी धारामें हिन्दूकी जो व्याख्याएँ दी हैं उनमें जैन गत होता है कि सरकार "बिहार प्रान्तीय धार्मिक ट्रस्टी बौद्ध और सिखोंको भी सम्मिलित कर लिया है, जो का एक मण्डल” स्थापित करना चाहती है। जो एक सवथा अनुचित और न्याय सङ्गत नहीं है। जैनोके
और बिहार सरकार और दूसरी ओर धार्मिक सम्पत्ति धार्मिक स्थानो और व्यवस्थापकोमें हिन्दुओं जैसी के व्यवस्थापकके बीच अधिकारी, उत्तरदायित्वपूर्ण । अव्यवस्था नहीं है। जैनी धार्मिक सम्पत्ति-देवद्रव्यको एजेंटके रूपमे काम करेगी. इस प्रकार अधिकारी अत्यन्त पवित्र मानकर उनका उपयोग फिर कभी मण्डल बनेगा, जिसका प्रधान कार्य होगा धार्मिक सामाजिक कार्योमे नहीं करते, ऐसी स्थितिमें गेहंके ट्रस्टोंपर सरकारकी ओरसे निगरानी रखना और साथ घुन पीसने जैसी कहावत चरितार्थ करना सरकारकी ओरसे उन्हे समय समयपर सलाह देत सरकारके लिये शोभास्पद नहीं । सांस्कृतिक और रहना, यहॉपर प्रश्न यह उपस्थित होता है कि सरकार सैद्धान्तिक दृष्टियोंसे हिन्दुओंसे जैन सर्वथा प्रथक हैंको किन परिस्थितियोंने कानून बनानेको बाध्य किया? आकाश-पातालका अन्तर है। गत अप्रेल को क्योकि पश्चात् भूमिकाको समझ लेनेसे कार्य आसान अखिल भारतवर्षीय जैन-प्रतिनिधि मण्डल इसके होजाता है और विरोधकी गुंजायश भी कम रहती है विरोधमें बिहार सरकारके प्रधानमन्त्री श्री कृष्णसिंह हमारी समझमे तो यही आता है कि आज हिन्दू और विकास मन्त्री श्री डॉ. सैयदमहमूदसे मिला था, मन्दिर मठ और तीर्थ स्थानोमें महंतों. पंडो और आप लोगोंने आश्वासन दिया है । प्रतिनिधि मण्डलमें तथाकथित व्यवस्थापको द्वारा जनता द्वारा प्रदत्त बाबू इन्द्रचन्दजो सुचन्नी (बिहारशरीफ) और बाबू धार्मिक सम्पत्तिका जैसा दुरुपयोग होता है उसे