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अनेकान्त
[वर्प
दोनों तथा बाबू मङ्गलचन्दजी सा० भाबकको मिलना उनके वसीयतनामामें लिखा है पाठशाला, अनाथालय चाहिये । अब पुनः ६ मितम्बरको जब धारासभा और बहनोंको सहायता करना । ट्रस्टकी मूल सम्पत्ति खुलेगी तब यह बिल उपस्थित किये जानेकी संभावना १ लाख २५ हजारसे भी अधिक है। इसके ब्याजसे है इस प्रसङ्गपर जैनोंको विरोध करना चाहिये । यदि ही यदि काम किया जाय तो बिहार-प्रान्तमें जैनधर्म बिल जैनोंपर लागू हुआ तो जैनोंकी जो धार्मिक और गंस्कृतिको ज्योति जलाई जासकती है। स्व० स्वतन्त्रता है वह मदाके लिये नष्ट होजायगी, कारण जौहरीजीका तो यही ध्यान था, पर आज तक कुछ भी कि बोर्डको जो अधिकार दिये गये हैं वे जैनांके लिये काम नहीं हश्रा। न जाने कुछेक ट्रस्टी लोग अपने घातक हैं। उदाहरणके लिये बोर्ड में जैन तो एक परिवारवालोंके साथ क्या-क्या कर रहे हैं । आज जैन सदस्य रहेगा और सरकारी ११ रहेंगे. काम बहुमतसे जनता इसे सहायता कर उन्नत बनाना चाहती है तो होंगे और जिस मन्दिरमें अधिक सम्पत्ति है उसका वे सहायता इसलिये नही लेते कि उनको हिसाब पेश परिवर्तन भी संभव है। ऐसी परिस्थितिमे जैनोको बड़ा करना पड़ेगा। सामाजिक सम्पत्तिका मनमाना उपनुकसान उठाना पड़ेगा. अतः क्यों नहीं सार भेदभाव योग करना मूर्खताकी पराकाष्ठा है । जनताको हिमाब भुलाकर एक स्वरसे सरकारका विरोध करते। मुझे न बताना, ऐसे ट्रस्टोकी व्यवस्थासे जैन युवक स्वाभाअपने धार्मिक और सामाजिक ट्रस्टोंके ट्रस्टियोसे भी विक रूपसे क्षुब्ध रहते है । मैने तो केवल दो उदाहरण दो बातें कहनी हैं। मान लीजिये कि जैनी उपरि कथित ही दिये हैं। न जाने कितने जैनट्रस्टोकी भी वैसी ही काननसे पृथक होगये तो इसका अर्थ यह न होना दुरवस्था होगी। समयका तकाजा है कि अधिकारीगण चाहिये कि आप अपनी दुव्यवस्थाकी परम्पराके प्रवाह- अब अपनेको वह सम्पत्तिका स्वामी न समझे, बल्कि को आगे बढ़ाते जाये। यह बड़ी भूल होगी, तीथस्थानांके जनताका सेवक समझे. वरना आगामी युगका वायुरुपयोका उपयोग यदि अन्य प्राचीन जैन मन्दिरोक मण्डल उनके सर्वथा प्रतिकूल होगा। जीर्णोद्धारमें व्यय हो तो क्या बुरा है ? विहारकी ही प्रान्तमें हम सूचित करत है कि बिलका विरोध मै बात करूँगा, उदाहरण रूपमे मैने यहॉकी कलापूर्ण किया जाय उसकी प्रति सेठ मङ्गलचन्द शिवचन्द प्रतिमाएँ देखी । मेरा विचार था कि यदि पावापुरी चौक सिटीके पतेपर सूचना दें। भण्डारसे इनका एक सचित्र आल्बम निकल जाय तो ता० २६ को मै बिहारसरकारके अर्थसचिव कितना अच्छा हो । साथमें बिहार-प्रान्तीय जैन- श्रीश्रनग्रहनारायणसे मिला था जैनसंस्कृतिकी दृष्टि संस्कृतिके इतिहासको पालाकित करनेवाली कुछ से मैंन उनको समझाया कि जैन पृथक.ही रखे जायें। पंक्तियाँ भी रहें. पर मुझे दुःख है कि यह सांस्कृतिक आपने कहा कैविनेटमै मैं आपके विचार उपस्थित विकासकी बात भी उनकी समभम नहीं आई यदि करूँगा. आप निश्चिन्त रहे मझसे बनेगा उतना मैं
आई है तो क्यो नहीं उसे क्रियान्वित करते ? यह तो करूंगा। मरा तो विश्वास है कि वे अवश्य जैनोंको हई धार्मिक ट्रस्टकी बात । दूसरी बात यह है कि पटना बिलसे पृथक रखेगे। में स्व. सुराना किमनचन्द जौहरीने १६३४ माचमें २६-8-ye
मुनि कान्तिसागर एक जैन श्वेताम्बर सुकृत फण्ड' स्थापित किया था, पटना सिटी