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के भडार में मौजूद है। उन्होंने उस स्थानका नाम परिवर्तनकर वहाँकी कुण्डलाकार पर्वत श्रेणियोंके आधारपर श्रीकुण्डलपुरजी रखा और तालाबका नाम वर्द्धमानसागर । तबसे पुनः बाबाकी ख्याति बढ़ने लगी और धीरे-धीरे यह स्थान जनसाधारणकी जानकारी में फिरसे गया। श्रीकुण्डलपुरजीके आसपास के ग्रामीणोंने भगवान महावीरकी इस विशालकाय जैनप्रतिमाको बड़े बाबाके सुन्दर नामसे सम्बोधन करना शुरू कर दिया । इस जीर्णोद्धारकी तिथिकी स्मृतिस्वरूप सम्राट्की आज्ञासे माह सुदी ११ से १५ तक प्रतिवर्ष यहाँ विशाल मेला भरने लगा जिसका प्रबन्ध राज्यकी तरफ से रहता था। आज भी मेलेमें जैन और जैन आकर बड़े बाबाके दर्शनकर अपनी
अनेकान्त
[ वर्ष
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भक्ति प्रकट करते और पुण्य लाभ उठाते हैं बुन्देलखण्डको इस प्राकृतिक सौन्दर्यपूर्ण महान क्षेत्रके अपनी गोदमें होनेका अभिमान है। मन्दिरजीके प्रवेशद्वार पर जिनशासनरक्षकदेवता क्षेत्रपाल भी वृहताकारमें उसीसमयसे स्थित हैं जबसे कि बड़े बाबा ।
इस वर्ष शिमला जैनसभाके मन्त्री लाला जिनेश्वरप्रसादजी जैनके निमंत्रण और प्रमपूर्ण आग्रह पर मैं पर्यूषण पर्व में शिमला गया था । ६ सितम्बरको चलकर ७ मिनम्बरको सुबह ८-२० पर शिमला पहुंचा स्टेशनपर उतर कर रिम झिम वर्षा, कुहर और महाच्च पर्वतीय दृश्योंका अवलोकन करता हुआ जैनधर्मशाला पहुंचा, जहाँ जैन श्रजैन सभी यात्रियोके ठहरनेकी बड़ी ही अच्छी सुख-सुविधा तथा व्यवस्था है ।
शिमला में रात्रिको ७३ बजेसे १० बजे तक शास्त्रप्रवचन होता है । दिनमे प्रायः सभी धर्मबन्धुआं के ऑफिस में कामपर जानेके कारण उक्त समय ही धर्मचर्चाके लिये वहाँ उपयोगी होता है । पञ्चमीसे द्वादशी तक मेरेद्वारा शास्त्र-प्रवचनादि होता रहा । त्रयोदशीको अस्वस्थ हो जानेर अन्तिम दोनो दिन शास्त्रप्रवचन ला० मिहरचन्दजी खजाञ्ची इम्पीरियल बैंक ने किया ।
शिमला का पर्युषण पर्व
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चतुर्दशीको दिन ३ बजे एक आम सभा की गई जिसके अध्यक्ष बा० मन्तलालजी देहली थे । जैनधर्म की विशेषताओं पर मेरा करीब एक घण्टा भाषण हुआ। मेरे बाद मोनपत के एक धर्मबन्धु और उनकी धर्मपत्नी भी भाषण हुए। अन्तमें ला जिनेश्वर प्रसादजीने सभाकी वार्षिक रिपोट सुनाई ।
संवत् २०००से श्रीकुण्डलपुरजी क्षेत्रपर बड़े बाबा का एकाधिपत्य होगया है । इस क्षेत्रका प्रबन्ध जनतन्त्रीय कमेटीद्वारा होता है । क्षेत्रमें यात्रियोकी सुविधा हेतु विशाल धर्मशालाएँ बन गई हैं। क्षेत्रका प्रबन्ध सुव्यवस्थित होनेपर भी अर्थाभावके कारण यहाँ जीर्णोद्धार कार्य इतना पड़ा हुआ है कि यदि लाखो रुपया भी खर्च किया जावे तो थोडा होगा फिर भी जीर्णोद्धार बारहमासी चालू ही बना रहता है ।
पर्युपपर्व के प्रसङ्गसे शिमला के कई अपरिचित उत्साही और लगनशील युवकबन्धुओसे परिचय हुआ । इनमें बा० अयोध्याप्रसादजी. ला० जिनेश्वरप्रसादजी, निरञ्जनलालजी, पं० बालचन्दजी, डॉ० एस० मी० जैन आदिके नाम उल्लेखनीय है । इनकी शक्ति और उत्साहसे सभाको पूरा लाभ उठाना चाहिये ।
शिमला अखिल भारतवर्षीय और पञ्जाब गवर्नमेण्टकी प्रवृत्तियोंका महत्वपूर्ण स्थान है । दूर-दूरसे सहस्रों व्यक्ति उसे देखने के लिये जाते हैं जो प्रायः शिक्षित ही होते हैं, उनमे जैनधर्मके ज्ञानका अभिरुचि पैदा कर जैन साहित्य और जैन धर्मका अच्छा प्रचार किया जा सकता है। अतः सभाका ध्यान निम्न तीन कार्योकी ओर आकर्षित कर रहा हूँ
१. जैन-लायब्रेरीकी स्थापना, जिसमें प्रचारयोग्य जैन - साहित्यके अलावा जैन-ग्रन्थोका वृहत् सग्रह हो ।
२. जैनकॉलानी, जहाँ बाहरसे कामके लिये श्राये हुए जैन बन्धुओ को किराये पर स्थान मिल सके ।
३. जैन पाठशाला की स्थापना, इसके द्वारा स्थानीय बालक-बालिकाओंको जैनधर्म तथा अन्य विपयोकी स्वच्छ वातावरणमे शिक्षा दी जा सकेंगी। ४-१०-१६४८, - कोठिया ।